- शहर के लोगों को निर्बाध बिजली दिए जाने की योजना फेल

BAREILLY:

कभी बिजली न जाना-बरेली का यह सपना जल्द पूरा होने वाला नहीं। हां, इसे पूरा करने की कोशिश तो की गई। वो भी पूरे 400 करोड़ की लागत से। 300 करोड़ खर्च भी कर दिए गए। प्रोजेक्ट का नाम था सुपरवाइजरी कंट्रोल एंड डाटा एक्वीजीशन (स्काडा )। इसमें 24 घंटे बिजली सप्लाई जारी रखने के लिए तारों का एक पैरलल जाल बिछाकर इसे एक अत्याधुनिक कमांड एंड कंट्रोल स्टेशन 'रिंगमैन' से संचालित होना था। तार बिछा दिए गए, बिल्डिंग बना दी गई, लेकिन अफसरों की लापरवाही के चलते आधुनिक 'रिंगमैन' की बिल्डिंग आज एक तबेला बन चुकी है।

उपभोक्ताओं को मिलनी थी निबर्ाध बिजली

स्काडा के तहत सब स्टेशन ठप होने, ट्रांसफार्मर फुंकने या तार टूटने जैसे लोकल फाल्ट की वजह एक इलाके की बिजली गुल होने पर पैरलल सप्लाई सिस्टम के जरिए बिजली आपूर्ति जारी रखी जानी थी। इसके लिए शहर के सभी 19 सब स्टेशनों को जोड़ने का काम होना था। जिसे बिजली विभाग ने रिंगमैन नाम दिया था। जहां से सभी सब स्टेशन कंट्रोल होने थे। इसका परपज यह था कि किसी कारणवश एक सब स्टेशन खराबी आने से बैठ भी जाता है, तो रिंगमैन में लगे पैनल को दूसरे सब स्टेशन से जोड़ प्रभावित सब स्टेशन वाले एरिया में बिजली की सप्लाई तुरंत शुरू कर दी जाए। वहीं अंडर ग्राउंड केबिल बिछाने का उद्देश्य आंधी-बारिश से होने वाले फॉल्ट को रोकना था।

3 वर्ष पहले शुरू हुआ था प्रोजेक्ट

3 वर्ष पहले जब प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ तो, लोगों को यह उम्मीद जगी कि अब उन्हें बिजली कटौती की समस्या नहीं झेलनी पड़ेगी। प्रोजेक्ट के अंतर्गत शहर में अंडर ग्राउंड केबल, पोल, रिंगमैन की बिल्डिंग बनाने का काम तेजी से शुरू हुआ। 300 करोड़ रुपए खर्च भी हो गए। रिंगमैन की बिल्डिंग बनाने में करीब 2 करोड़ रुपए खर्च हुए, लेकिन लखनऊ मुख्यालय ने बिल्डिंग में सिस्टम लगाने के लिए अप्रूवल देने से मना कर दिया। इतना ही नहीं पूरे प्रोजेक्ट पर ही रोक लगा दी। जिसके चलते बरेली और लखनऊ दोनों ही जगहों पर प्रोजेक्ट लटक गया।

केंद्र सरकार ने भी की थी मदद

योजना के तहत केबल और पोल लगाने की जिम्मेदारी केईआई कम्पनी को सौंपी गई थी। जबकि, बिल्डिंग बनाने का काम बिजली विभाग के ही सिविल सेक्शन को सौंपा गया था। अधिकारियों ने बताया कि प्रोजेक्ट में इंटर्नल काम मध्यांचल विद्युत वितरण खंड लिमिटेड का था। शहर को निर्बाध बिजली मिले इसके लिए 400 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट बना कर मुख्यालय को सौंपा गया था। प्रोजेक्ट को अमली जामा पहनाने के लिए केंद्र सरकार ने भी पॉवर फाइनेंस स्कीम के तहत फंड जारी किया था। प्रोजेक्ट का 80 फीसदी काम भी पूरा हो चुका है। मुख्यालय ने प्रोजेक्ट को बीच में ही क्यों रोक दिया इस बात पर अधिकारी भी साफ-साफ नहीं बता पा रहे हैं। उनका कहना है कि मुख्यालय ने स्कॉडा प्रोजेक्ट को क्यों खत्म कर दिया वहीं बता सकती है।

अब बांधी जा रही हैं भैंस

स्काडा हाउस के मेन गेट और बाउंड्री वॉल के चारों ओर दर्जनों भैंस बंधनी शुरू हो गई हैं। इतना ही नहीं स्काडा हाउस के आस-पास प्रोजेक्ट में इस्तेमाल होने के लिए रखे गये पोल में भी भैंस बांधी जा रही है। गंदगी के चलते गेट और पोल में जंग लग गया है।

एक नजर

- प्रदेश में बरेली और लखनऊ में शुरू हुआ स्कॉडा प्रोजेक्ट।

- 400 करोड़ रुपए का था बरेली में स्काडा प्रोजेक्ट।

- जनवरी 2015 में प्रोजेक्ट के तहत काम हुआ शुरू।

- 300 करोड़ रुपए रामपुर गार्डेन में रिंगमैन के लिए बनी बिल्डिंग, अंडर ग्राउंड केबल, पोल और वायर में खर्च हुआ है।

- डेढ़ वर्ष पहले मुख्यालय ने सिस्टम लगाने से कर दिया मना।

- रिंगमैन में सिस्टम नहीं लगने से प्रोजेक्ट का नहीं मिल रहा लाभ।

- शहर के सभी सब स्टेशनों को एक ही सिस्टम से जोड़ निर्बाध बिजली दिए जाने की थी योजना

सिस्टम लगाने का मुख्यालय से अप्रूवल नहीं मिलने के कारण काम बंद है। जहां तक भैंस बांधे जाने की बात है कई बार कार्रवाई की गई, लेकिन वह लोग इतने दबंग है कि कार्रवाई का कोई फायदा नहीं हुआ।

वीके चंदेला, एक्सईएन सिविल, बिजली विभाग

केंद्र सरकार ने पावर फाइनेंस स्कीम के तहत मदद की थी। पहले जो अधिकारी थे उन्होंने 400 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट तैयार कर मुख्यालय को भेजा था। जो स्वीकृत भी हो गया। 300 करोड़ का काम भी हो चुका है, लेकिन अब मुख्यालय ने प्रोजेक्ट को बंद कर दिया है।

नंदलाल, नोडल अधिकारी, स्काडा प्रोजेक्ट