गृह मंत्रालय का कहना है कि यह कदम अपराध और आतंकवाद से निपटने के मकसद से उठाया जा रहा है, वहीं नागरिक अधिकार समूहों ने इसकी आलोचना की है। कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद डेविड डेविस ने सरकार के इस कदम को आम आदमी की जिंदगी में सरकारी हस्तक्षेप की अनावश्यक कोशिश बताया है।

अभूतपूर्व कदम

नए कानून की घोषणा मई महीने में रानी के भाषण के वक्त हो सकती है। इसके तहत खुफिया विभाग को ईमेल, फोन कॉल्स या फिर मोबाइल संदेशों के ब्योरे को बिना वारंट पढ़ने की इजाजत नहीं होगी। लेकिन इन्हें या पता लगाने की अनुमति होगी कि कोई व्यक्ति किन लोगों के संपर्क में है और इनसे उसके किस तरह के रिश्ते हैं।

खुफिया विभाग के अधिकारियों को ये भी अनुमति होगी कि वे किसी व्यक्ति के बारे में पता लगा सकें कि उसने किन वेबसाइटों को देखा है। ब्रिटेन के गृह मंत्रालय ने एक वक्तव्य जारी करके कहा है, “तकनीकी बदलाव के चलते संचार आँकड़ों की उपलब्धता को बनाए रखने के लिए ये जरूरी हो गया था.”

गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता के अनुसार, “ये जरूरी है कि कुछ विशेष परिस्थितियों में पुलिस और सुरक्षा बलों को संचार आँकड़े मिल सकें, ताकि गंभीर अराध और आतंकी मामलों की जांच में सहूलियत हो और आम जनता की सुरक्षा सुनिश्चित हो.” लेकिन डेविड डेविस का कहना है, “ये कानून सरकार के लिए बड़े पैमाने पर आम लोगों की बातों को छिपकर सुनना आसान कर देगा.”

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि इस तरह जो भी बातें सुनी जाएंगी, उन्हें दो साल तक रिकॉर्ड में रखा जाएगा और सरकार बिना किसी की अनुमति के इसे अपने कब्जे में रख सकेगी। उन्होंने कहा कि अभी तक ऐसा करने के लिए पहले मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होती है।

निजता पर हमला

बिग ब्रदर वॉच कैंपेन ग्रुप के निदेशक निक पिकल्स ने इसे एक अभूतपूर्व कदम बताया है और कहा है कि इससे ब्रिटेन में निगरानी रखने का वही तरीका अपनाया जाएगा जैसा कि चीन और ईरान में होता है।

उन्होने कहा, “लोकतंत्र के लिए ये बहुत ही घातक कदम है। यह ऑनलाइन निजता पर प्रहार है और ये कहना कि इससे आम लोगों की सुरक्षा में सुधार होगा, सच्चाई से दूर है.”

वहीं, इंटरनेट सेवा प्रदाता संगठन ने कहा है कि कानून में किसी भी तरह का बदलाव अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाला और उपभोक्ताओं की निजता का सम्मान करने वाला होना चाहिए।

यदि नए कानून की घोषणा महारानी के भाषण में कर दी जाती है तो भी इसे अभी संसद में जाना होगा। और संसद के दोनों सदनों- हाउस ऑफ लॉर्ड्स और हाउस ऑफ कॉमन्स में इसे काफी विरोध झेलना होगा।

इससे पहले लेबर पार्टी की सरकार ने भी ऐसा ही एक कानून बनाने का प्रयास किया था। लेकिन व्यापक जन-विरोध के चलते उसे वापस ले लिया गया था।

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