फिसड्डी रहे donation camps

ब्लड बैंक में खाली पड़ी फ्रीजिंग मशीन भरने के लिए कई बार ब्लड डोनेशन कैंप लगाए गए। हालांकि ये अभियान कागजों और मुंहजबानी तैयारियों का हिस्सा ही ज्यादा नजर आए। जो ब्लड डोनेशन कैंप किसी तरह अस्तित्व में आए भी, उनमें ब्लड डोनेट करने कोई आया ही नहीं। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के ब्लड बैंक में पिछले 3 महीनों में 20 यूनिट ब्लड भी नहीं जुटाया जा सका। ये फैक्ट ब्लड बैंक के इंचार्ज भी एक्सेप्ट करते हैं। दरअसल जून में ब्लड बैंक के इंचार्ज डॉ। जीडी कटियार ने कॉलेज और इंस्टीट्यूशंस में ब्लड बैंक कैंप लगवाने के दावे किए पर जुलाई में उनके रिटायरमेंट तक ये दावे ही रह गए। फिर आए नए इंचार्ज डॉ। केपी सिंह ने इसी मुहिम के तहत 19 यूनिट ब्लड स्टोर करवा लिया था। बीते दिनों डिमांड के चलते इस स्टॉक में फिर कमी आ गई।

जरूरी मशीनें ताले में बंद

डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में डेंगू के कंफर्म टेस्ट के लिए एलाइजा रीडर मशीन, पीआरबीसी,   प्लाज्मा और प्लेटलेट्स बनाने के लिए ब्लड सेपरेशन मशीन अवेलेबल है, लेकिन करोड़ों की ये मशीनें स्टाफ क्राइसिस के चलते ताला बंद कमरों की शोभा बढ़ा रही हैं। कई बार कंप्लेन हुईं, आलाअधिकारियों ने जल्द कार्रवाई और इंतजाम कराने का आश्वासन दिया, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। न तो जंग खा रही इन मशीनों को क्राइसिस के समय शुरू किया जा सका और न ही ट्रेंड टेक्निशियन की व्यवस्था हो पाई।

एक employee निभा रहा 3 role

अपनी दीवार पर 24 घंटे एक्टिव रहने का दावा करने वाला ब्लड बैंक अक्सर डिएक्टिवेट मोड में दिखता है। स्टाफ की कमी का असर ब्लड बैंक पर सबसे ज्यादा नजर आता है। लैब टेक्निशियन की कमी जांच में आड़े आती है। जगह तीन पैथोलॉजिस्ट की है पर एक ही अवेलेबल है। डॉ। केपी सिंह पैथोलॉजिस्ट होने के साथ ब्लड बैंक इंचार्ज का रोल भी निभा रहे हैं। यही नहीं उनकी ड्यूटी इमरजेंसी वार्ड की ओपीडी में बतौर ईएमओ भी लगा दी जाती है।

Only 'b positive'

तमाम दुश्वारियों के बावजूद डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल का ब्लड बैंक लोगों को 'बी पॉजिटिव' का मैसेज दे रहा है, पर इससे भी लोग निराश ही हो रहे हैं। दरअसल ब्लड बैंक में फिलहाल जो 5 यूनिट ब्लड मौजूद है, वो सिर्फ बी पॉजिटिव ब्लड ग्रुप का है। जबकि ए पॉजिटिव, ओ पॉजिटिव, एबी पॉजिटिव और निगेटिव ब्लड ग्रुप की एक भी यूनिट अवेलेबल नहीं है। इस वजह से जरूरतमंदों    को आईएमए या दूसरे ब्लड बैंक्स का रुख करना पड़ रहा है।

'ब्लड डोनेशन कैंप्स में लोग आते ही नहीं। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं। अधिकारियों को इस बारे में रिपोर्ट की गई है, जिससे जरूरी सुधार किए जा सकें। इमरजेंसी में अगर फिलहाल मौजूद सारा ब्लड देना भी पड़ा, तो हम पेशेंट्स के परिजनों से ब्लड लेकर 2-4 घंटे में उन्हें ब्लड चढ़ा सकते हैं.'

- डॉ। केपी सिंह, इंचार्ज ब्लड बैंक