- इंसेफेलाइटिस से 38 की मौत

- 100 बेड वाले वार्ड में 11 का चल रहा इलाज

GORAKHPUR: इंसेफेलाइटिस की कहर से पूर्वाचल में कई हजार मासूम काल के गाल में समा चुके हैं। फिर भी मौतों के आंकड़े पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। जिम्मेदारों की लाख कोशिशों के बाद इंसेफेलाइटिस का कहर अब भी बरकरार है। अभी तक महज कुछ मंथ में तांडव दिखाने वाली यह बीमारी अब सीजनल नहीं रह गई है। पूर्वाचल के लोगों पर इस बीमारी का खतरा पूरे साल बना रह रहा है। यह हम नहीं बल्कि मेडिकल कॉलेज के आंकड़े इस बात को बयां कर रहे हैं। हर महीने इंसेफेलाइटिस की चपेट में आने से करीब आधा दर्जन से ज्यादा लोग काल के गाल में समा रहे हैं।

ऑफ सीजन में भी कहर

इंसेफेलाइटिस का कहर है कि थमने का नाम नहीं ले रहा है। साल 2014 में इस बीमारी की चपेट में यूं तो हजारों आए, लेकिन इनमें से 673 की मौत की आगोश में चले गए। ऑफ सीजन कहे जाने वाले जनवरी से अप्रैल के दौरान भी मौतों का सिलसिला थमा नहीं। इंसेफेलाइटिस ने इन मंथ्स में भी कहर बरपाते हुए 38 लोगों को अपनी आगोश में ले लिया। इतना ही नहीं 100 बेड वाले वार्ड में अब भी इस बीमारी से ग्रसित करीब 11 मरीजों को उपचार चल रहा है। वहीं जनवरी से लेकर अब तक 123 का इलाज हो चुका है।

समय पर आते हैं जन प्रतिनिधि

इंसेफेलाइटिस बीमारी का सीजन आते ही एरियाज के जन प्रतिनिधी भर्ती मरीजों का हाल जानने वार्ड पहुंचते हैं। इसके पीछे वे सिर्फ अपनी राजनीति चटकाते है, मगर उनके लिए जरूरी संसाधन अब तक नहीं जुटाए जा सके। इस बीमारी को जड़ से कैसे समाप्त किया जाए और उससे के लिए क्या जरूरी इंतजाम किए जाएं, इस पहलु पर किसी का ध्यान नहीं जाता। आलम यह हैं कि आज भी नेहरू चिकित्सालय के वार्ड में एडमिट जेई व एईएस के मरीज दम तोड़ रहे हैं, मगर जिम्मेदार हाथ पर हाथ धरे बैठे हुए हैं।

इस एरियाज से आते हैं पेशेंट्स

देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, बिहार, झारखंड, नेपाल, बस्ती, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, आजमगढ़, बलरामपुर, गोंडा, मऊ, बहराइच, बलिया, चंदौली, गाजीपुर

यह है आंकड़ा

वर्ष जेई व एईएस से ग्रसित मौत

2014 3293 673

2013 3013 650

2012 3549 608

2011 3769 655

2010 3766 543

यह आंकड़ा जनवरी से दिसंबर तक का है।