फ्लैग- चीड़ के पीरुल को थर्मल पॉवर प्लांट्स में कोयले की जगह ऊर्जा के रुप में करेंगे उपयोग

- टिहरी और पौड़ी में तैयार हो चुके हैं इसके लिए थर्मल पॉवर प्लांट्स

- आसपास के ग्रामीणों को भी पीरुल एकत्र करने से जोड़कर दिया जाएगा रोजगार

- उत्तराखंड में 3,94,383 हेक्टेयर एरिया में फैले हैं चीड़ के जंगल

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उत्तराखंड के जंगलों के लिए अभी तक अभिशाप मानी जाने वाली चीड़ के पेड़ की पत्तियां यानि पीरुल जल्द ही यहां के लिए वरदान साबित हो सकती हैं। पीरुल को थर्मल पॉवर प्लांट्स में कोयले के विकल्प के रूप में इस्तेमाल कर बिजली बनाने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए जहां अन्य राज्यों के थर्मल पॉवर प्लांट्स से बात की जा रही है, वहीं उत्तराखंड में भी टिहरी और पौड़ी में पीरुल से ही चलने वाले निजी क्षेत्र के दो थर्मल पॉवर प्लांट्स तैयार भी हो चुके हैं। सबकुछ ठीक रहा तो बिजली संकट से जूझ रहे उत्तराखंड के दुर्गम क्षेत्रों के गांव चीड़ की पीरुल से बनने वाली बिजली से रोशन होंगे और पीरुल के कारण हर साल जंगलों में लगने वाली आग से होने वाले नुकसान पर भी रोक लगेगी।

ऊर्जा का स्रोत है चीड़ की पीरुल

चीड़ के वृक्ष से गिरने वाली पत्तियां यानि पीरुल बहुत ही ज्वलनशील होती हैं। इस कारण यह ऊर्जा का बहुत अच्छा श्रोत है। हर साल चीड़ की पीरुल की ज्वलनशीलता के कारण ही उत्तराखंड के वनों में भयंकर आग लगती है। पिछले वर्ष गढ़वाल क्षेत्र में इसी कारण भयंकर आग लगी थी। टिहरी क्षेत्र में 579 हेक्टेयर जंगल इस आग से बुरी तरह प्रभावित हुआ था। साथ ही करीब 36 हेक्टेयर पौधारोपण भी जलकर राख हो गया था। पूरे उत्तराखंड की बात करें तो आंकडे़ इससे कहीं अधिक हैं। इसलिए वन विभाग में तैनात विशेषज्ञ अधिकारी इस ऊर्जा को बिजली उत्पादन में प्रयोग करने की तैयारी कर रहे हैं।

स्टेट में 3,94,383 हेक्टेयर में चीड़

उत्तराखंड में चीड़ का क्षेत्रफल लगातार बढ़ा है। उत्तराखंड वन सांख्यिकी 2010-2011 की रिपोर्ट के अनुसार वन विभाग के अधीन चीड़ का 3,94,383 हेक्टेयर जंगल है। परसेंटेज में बात करें तो अन्य प्रजाति के वृक्षों के मुकाबले करीब 17 परसेंट क्षेत्रफल पर चीड़ का ही जंगल है।

निशुल्क होगा पीरुल का उठान

वन विभाग पहले चीड़ के जंगलों से पीरुल उठाने के लिए दाम वसूलता था, इस कारण इसे जंगलों से उठाने में कोई रुचि नहीं ले रहा था। इसके चलते टिहरी और पौड़ी में बने थर्मल पॉवर प्लांट्स को भी पीरुल उपलब्ध नहीं हो पा रही थी और वो नहीं चल पा रहे थे। हाल ही में वन विभाग के उच्चाधिकारियों ने पीरुल को निशुल्क करने का निर्णय लिया है, ताकि इसे जंगलों से हटाया जा सके और आग लगने के कारण को दूर किया जा सके।

स्थानीय ग्रामीणों को रोजगार भी

पीरुल का निशुल्क उठान करवाने के लिए वन विभाग की योजना स्थानीय ग्रामीणों को इसके उठान से जोड़ने की है। इसके तहत ग्रामीण पीरुल को जंगलों से एकत्र कर कंपनियों को बेचेंगे, जिससे कंपनी का खर्च भी कम होगा और स्थानीय स्तर पर रोजगार भी डेवलप होगा।

ऐसे बनाई जाएगी पीरुल से बिजली

- अभी तक थर्मल पॉवर प्लांट को चलाने के लिए कोयले का उपयोग किया जाता है।

- पीरुल की ज्वलनशीलता के कारण प्लांट में इसे कोयले के स्थान पर बायोऊर्जा के रुप में प्रयोग किया जाएगा।

- इसके लिए विभिन्न राज्यों के थर्मल पॉवर प्लांट्स से टाईअप की तैयारी की जा रही है।

इन नुकसान से छुटकारा भी

- चीड़ की पत्तियों की ज्वलनशीलता के कारण जंगलों में लगती में है हर साल भयंकर आग।

- आग में खाक हो जाती हैं कई प्रकार की कीमती वनस्पतियां और जड़ी-बूटी।

- पीरुल के फैले होने से बारिश का पानी जमीन तक नहीं पहुंचता और वाटर लेवल गिर जाता है।

- वाटर लेवल लगातार गिरने के कारण ही उत्तराखंड के सैकड़ों प्राकृतिक जलस्रोत हो चुके हैं बंद

मुझे इस प्रोजेक्ट का नोडल अधिकारी बनाया गया है। इसमें गढ़वाल सीसीएफ को भी शामिल किया गया है। चीड़ के पीरुल का प्रयोग ऊर्जा के रुप में करके बिजली उत्पादन के लिए होगा। अभी तक पीरुल के दाम वसूले जाते थे, लेकिन पिछले दिनों इसके उठान को निशुल्क कर दिया गया है।

--एनवी सिंह, सीसीएफ, हल्द्वानी-