'हैलो! पाकिस्तान' का लॉन्च कराची में चार दिन के फ़ैशन शो के साथ हुआ। प्रकाशकों को उम्मीद है कि विदेशियों के बीच पाकिस्तान की जो एक उदास सी छवि है, उसे ये पत्रिका ग्लैमर और चकाचौंध के जरिए एक नई पहचान देगी।

पाकिस्तान के आभिजात्य वर्ग के सप्ताहांत कार्यक्रमों के बारे में जानकारी देने वाली पहले से ही कई स्थानीय पत्रिकाएं मौजूद हैं लेकिन पाकिस्तान में अपने तरह की पहली अंतरराष्ट्रीय फ्रेंचाइज़ हैलो की टीम का कहना है कि उनकी पत्रिका कुछ अलग होगी।

पत्रिका के प्रधान संपादक महावेश अमीन का कहना है, "हमारे देश में पहले से ही सक्रिय टेलीविज़न उद्योग और कला जगत और उभरता हुआ साहित्यिक माहौल है। हम इन सबके बारे में लिखने के अलावा राजनीतिज्ञों, उद्यमियों और खेल जगत के लोगों को भी शामिल करेंगे."

'सेलेब्रिटी कल्चर' की कमी

अमीन कहती हैं कि जहां अमरीका या ब्रिटेन में किसी मशहूर हस्ती का महज़ सड़क पर चलना ही ख़बर बन जाता है, पाकिस्तान में ऐसा नहीं है।

उन्होंने कहा, "इसलिए हमने फैसला किया है कि हम नतीजों को ध्यान में रखकर कवरेज करेंगे। इससे हमारी नई हस्तियां बनेंगी और हमारे यहां एक 'सेलेब्रेटी कल्चर' बढ़ेगा."

पत्रिका से जुड़ी ज़हारा सैफ़ुल्लाह ने बचपन से अपनी मां और नानी को हैलो के अंतरराष्ट्रीय संस्करण पढ़ते देखा और वो कहती हैं कि उन्हें पत्रिका के अंतरराष्ट्रीय प्रकाशकों को पाकिस्तानी संस्करण शुरु करने के लिए मनाने में दो साल तक मशक्कत करनी पड़ी।

इसकी वजह शायद ये भी हो कि पाकिस्तान में अंग्रेज़ी-भाषा की पत्रिकाओं का सीमित बाज़ार है। 'हैलो पाकिस्तान' के सलाहकार संपादक वजाहत एस खा़न के मुताबिक पत्रिका मासिक होगी और इसकी कीमत 500 रुपये होगी जो पाकिस्तान के लिहाज़ से छोटी रकम नहीं है।

फ्रीलांस फ़ैशन पत्रकार मोइज़ काज़मी का मानना है कि इस पत्रिका को दो तरह के लोग पढ़ेंगे। वो कहते हैं, "एक तो वो लोग इस पत्रिका को खरीदेंगे जिनके अपने बारे में या उनकी पहचान के किसी इंसान से जुड़ी ख़बर इसमें छपी हो। दूसरे वो लोग होंगे जो पत्रिका में केवल यही देखते हैं कि किसने, क्या पहना है और फिर वही परिधान अपने दर्ज़ी के पास ले जाकर सिलवाते हैं."

चिंताएं

लेकिन इस पत्रिका की आलोचना करने वाले लोग भी हैं। लाहौर-स्थित धार्मिक संगठन, तंज़ीम-ए-इस्लामी की स्थानीय शाखा के मुनावर बॉउनी कहते हैं कि वो खुद भी ये पत्रिका नहीं पढ़ेंगे और अपने बच्चों को भी इसे घर में लाने से रोकेंगे।

बॉउनी कहते हैं, "इस तरह की पत्रिकाएं उन विचारधाराओं को बढ़ावा देती हैं जो न तो इस्लामी हैं और न ही हमारी संस्कृति का हिस्सा। " लेकिन जा़हिरा सैफ़ुल्लाह कहती हैं कि उनकी पत्रिका सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार और सांस्कृतिक रूप से जागरूक होगी।

वो कहती हैं, "आपको हमारे कवर पर 'टॉपलैस' वीना मलिक कभी नहीं दिखेगी." लेकिन चिंताएं कुछ और भी हैं।

आभिजात्य और संपन्न जीवनशैली दर्शाने वाली पत्रिका छापना पाकिस्तान जैसे देश में, जहां फ़िरौती के अपहरण के किस्से बढ़ते जा रहे हैं, परेशानी को न्यौता देना होगा। साथ ही इस तरह की पत्रिका एक विभाजित समाज भी दर्शाती है जिसमें संपन्न वर्ग का आम आदमी, ग़रीबी से जूझ रही अधिकतर आबादी से कुछ लेना-देना नहीं है।

लेकिन सैफ़ुल्लाह कहती हैं, "समय आ गया है कि हम इस सब नकारत्मकता से आगे बढ़ें। पाकिस्तान में बहुत कुछ सकारत्मक हो रहा है जिसके बारे में कोई बात नहीं करता."

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