हम सभी के भीतर एक दिव्य चिंगारी छिपी हुई है। विस्मयकारी सौंदर्य के मंडल, अकल्पनीय दृश्य और ध्वनियां, असीम विवेक और पूर्ण रूप से आलिंगित करता प्रेम हमें अंतर में आमंत्रित करते हैं। दिव्य ज्योति निरंतर प्रकाशित रहती है। हम इसकी खोज अधिकतम दूरी पर स्थित एटम के न्यूनतम क्वार्कों में करते हैं, किंतु इसके रहस्य हमारे भीतर छिपे रह जाते हैं।

हमारे भीतर एक ज्वाला विद्यमान है, जो हमारे जीवन में कायाकल्प कर सकने की सामथ्र्य रखती है। एक ज्योति है, जो हमें विवेक, शाश्वत सुख, पूर्ण प्रेम, निर्भयता तथा अमरत्व दे सकती है। यह ज्वाला हमारे हृदय और मन को आलोकित करती है और ऐसे प्रश्नों के उत्तर दिलाती है, जिनसे मानवता युगों-युगों से जूझती आई है, जैसे कि हम यहां क्यों आए हैं? कहां से आए हैं? मृत्योपरांत हम कहां जाएंगे? वैज्ञानिकों की भांति हम इनके उत्तरों को तारों से भरे आसमान में ढूंढते रहते हैं।

हम इनके उत्तरों को धर्मस्थानों, धर्मग्रंथों और तीर्थस्थानों में भी ढूंढते हैं परंतु इस ज्ञान को कहीं बाहर खोजने की आवश्यकता नहीं; यह ज्वाला हम सबके भीतर है। जब हम उस धधकते अंगारे को खोज लेते हैं, तो अंतर के अचरजों को देखने वाले बन जाते हैं और सौंदर्य, असीम प्रेम, अविरल आह्लाद तथा अकथनीय हर्षोन्माद का अनुभव करने लगते हैं। शाश्वत धूप का आनंद लेने के लिए हमें अपने भीतर झांकना होगा।

ध्यानाभ्यास से देख सकते हैं आंतरिक ज्योति

ध्यानाभ्यास द्वारा हम आंतरिक ज्योति तथा श्रुति को देख व सुन सकते हैं। ध्यानाभ्यास के लिए किन्हीं कठोर आसनों या मुद्राओं की आवश्यकता नहीं है। इस आरामदेह अवस्था में बैठकर हम अपनी आत्मा की शांत गहराइयों में अद्भुत ज्योतिर्मय आंतरिक दृश्यों का अनुभव करते हैं। इसके द्वारा हम असीम चेतनता, शाश्वत शांति तथा अनवरत सुख का अनुभव कर सकते हैं।

प्रज्ज्वलित करें शाश्वत ज्योति

जिस प्रकार गर्माहट हेतु हम अग्नि प्रज्ज्वलित करते हैं, उसी प्रकार हमें अंतर में आत्मिक चिंगारी प्रज्ज्वलित करने की जरूरत है। जैसे—जैसे यह हमें प्रदीप्त करती है, हम अपनी शाश्वत ज्योति से ऐसे प्रकाशवान होते हैं कि यह हमसे सभी मिलने वालों की ओर प्रसारित होती जाती है, जब तक समस्त विश्व दिव्य ज्योति से भरपूर नहीं हो जाता।

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

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