डॉ। पलाश सेन के नेतृत्व में ये बैंड था यूफ़ोरिया और उनका पहला एलबम था ’धूम’। यूफ़ोरिया का ये आगमन भारतीय संगीत के परिदृश्य पर एक सुखद समाचार था, इसलिये भी कि यूफ़ोरिया ने रॉक संगीत को हिंदी का जामा पहना कर एक नए रूप में प्रस्तुत किया और युवाओं के अतिरिक्त हिंदी रॉक के स्वर आमजन तक पहुंचे.आधुनिक रॉक संगीत में, अपरिपक्व से, गैर पारम्परिक से स्वर और लोक संगीत की खुशबू ने यूफ़ोरिया की प्रस्तुतियों को एक अलग रंग दिया।

दो वर्षों बाद यूफ़ोरिया का एक और धमाकेदार एलबम आया ’फिर धूम’ जिसका ’माई री’ बेहद लोकप्रिय रहा.सन 2006 में उनका पिछला मुख्य एलबम आया ’महफ़ूज़’ जिसके स्वर पहले के मुकाबले परिपक्व थे और बदले हुए स्वर भी काफ़ी पसंद किये गये।

कुछ वर्ष पहले उनका एक एलबम और आया रीधूम लेकिन वो उनकी पुरानी हिट प्रस्तुतियों को ही नया रूप देने की कोशिश थी और लोगों को उनका ये प्रयोग ज्यादा पसंद नहीं आया।

पाँच वर्ष के बाद यूफोरिया अपने नये एलबम के साथ प्रस्तुत हैं ’आइटम’, और स्वाभाविक है यूफ़ोरिया के प्रशंसक वर्ग में लंबे अंतराल के बाद आए एलबम से अपेक्षाएं स्वाभाविक हैं। यूफोरिया ने ’आइटम’ में तेवर बदलने की कोशिश की है और इस ’कान्सेप्ट एलबम’ में अलग अलग रसों के 10 ट्रैक्स समाहित किये हैं।

एलबम की पहली प्रस्तुति ’राम अली’, एलबम को एक साधारण सी शुरुआत देती है। बोल कहीं-कहीं पर अच्छे बन पड़े हैं पर गायकी और संयोजन यूफोरिया की पुरानी प्रस्तुतियों की याद दिलाता है। गीत में गुंजाइश बहुत थी मगर एलबम को एक प्रभावी शुरुआत देने में नाकाम है ’राम अली’।

अगला गीत ’सी यू लेटर’, एक धीमी और प्रभावी शुरुआत के बाद इंडी-रॉक के जाने पहचाने क्षेत्र में पहुंच जाता है। बहुत सुना-सुनाया सा गीत लगता है।

’सजना’ यूफोरिया के प्रसिद्ध, चिर परिचित अंदाज़ का गीत है। ’माई री’ के जॉनर का जिसमें लोक संगीत और रॉक के स्वर समाहित हैं। एक ठीक-ठाक सी प्रस्तुति है लेकिन बहुत असरदार नहीं है और ’माई री’ के मकाम तक पहुंचने में असफ़ल रहा है।

यूफोरिया के कई गीत अपने म्य़ूजिक-वीडियोज़ की वजह से भी बहुत लोकप्रिय हुए हैं। सजना में भी शायद म्युजिक वीडियो पर निर्भर करेगी इसकी लोकप्रियता।

’तुम ही थे’ एलबम की एक अच्छी प्रस्तुति है। वाद्य संयोजन में गिटार के साथ, मार्चिंग बैंड का आधार है जो गीत को एक माहौल देने में कामयाब हुआ है। गीत में बोल भी प्रभावी हैं और पलाश के स्वरों में दोस्ती टूटने का दर्द उभर कर सामने आया है।

’गुमसुम’ एक अलग रंग का गीत है। पलाश की गायकी बेहतर है और शब्दों को अभिव्यक्ति देने में कामयाब रही है। फिर भी गीत उतना असर नहीं छोड़ पाता शायद इसलिये कि यूफोरिया बिना जोखिम उठाये, अपने पुराने ट्रीटमैंट पे ही निर्भर रहे हैं।

’जीने दो’ आतंकवाद के खिलाफ़ एक आवाज़ है मगर अंदाज़ पुर-असर नहीं है। गम्भीर विषय के बावजूद इंटैंस नहीं हो पायी ये प्रस्तुति।

’कबूतर’ फिर से एलबम के एक अलग रस की रचना है। उग्र तेवरों के साथ संगीत में मैटल रॉक हावी है। एलबम में बहुत प्रभावी नहीं हैं मगर युवाओं के लिये लाईव रॉक कान्सर्ट्स में लोकप्रिय होने की गुंजाइश रखता है।

’अकेला’ हार्ड रॉक के शोर से दूर एक मधुर प्रस्तुति है लेकिन पलाश सेन की गायकी की सीमाएं, गीत का असर कम करती हैं। पलाश की अपरिपक्व सी गायकी अगर अगर रॉक संगीत के शोर के बीच रंग जमाती दिखती है तो सुरीली प्रस्तुतियों में कमज़ोर उनकी गायकी, रंग फ़ीके भी कर देती है और इसीलिये ’अकेला’ अन्त में एक साधारण सी प्रस्तुति साबित होती है।

’आइटम’ एलबम का शीर्षक गीत है, बॉलीवुड के ’आईटम गीतों’ को कटाक्षनुमा श्रद्दंजलि है। एक हल्का फुल्का गीत है और बॉलीवुड के ’आइटम गीतों’ के संदर्भो के आस पास रचा गया है मगर बहुत मज़ेदार गीत नहीं बन पड़ा है।

गीत के बोलों में मस्ती की कमी है और धुन भी थिरकाने वाला दम नहीं रखती। हो सकता है म्युजिक वीडियो में हो सकता है कुछ रंग जमाने में कामयाब हो।

कुल मिला कर यूफोरिया का ये नया एलबम अपेक्षाओं पे खरा नहीं उतरता और निराश ही करता है। एलबम के रस नये हैं पर ट्रीटमैंट वही पुराना है।

पिछले कुछ वर्षों में भारतीय संगीत के परिदृश्य, खासकर फ़िल्म संगीत में भी, हिन्दी रॉक अपनी पैर जमाने में सफ़ल रहा है और नये दौर के कई संगीतकार अपने प्रयोगों से हिंदी रॉक को यूफोरिया से आगे ले गये हैं। उसके मुकाबले यूफोरिया का ये एलबम ’डेटेड’ सा लगता है।

यूफोरिया के इस एलबम में बोल और रस नये हैं पर गायकी, धुन और वाद्य संयोजन में अपनी पुरानी सफ़लताओं को दुहराने की कोशिश में एलबम के स्वर बासी से लगते हैं।

अफ़सोस कि प्रतिभा, लोकप्रियता और सम्भावनाएं होने के बावजूद यूफोरिया का ये एलबम अपेक्षाओं पे खरा नहीं उतरा और उनके पिछले एलबमों जितनी ’धूम’ मचाने में सफ़ल नहीं होगा!

रेटिंग के लिहाज़ से ’आइटम’ के संगीत को 2/5(पाँच में से दो)

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