सावन के प्रत्येक सोमवार को अलग-अलग तरीके से होता है भगवान शिव का श्रृंगार

ALLAHABAD: यमुना किनारे स्थित भगवान शिव का मनकामेश्वर मंदिर पौराणिक महत्व का है। यमुना की स्वर लहरियों के बीच यह मंदिर पौराणिक महत्व के साथ ही वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को भी अपने भीतर समाहित किए हुए है। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के सानिध्य में आते ही मंदिर के परिसर में सावन माह के प्रत्येक सोमवार को देश व दुनिया के अलावा पशु-पक्षियों के जीवन को बचाने के लिए भगवान शिव का अनोखे तरीके से श्रृंगार किया जाता है।

1986 में शुरु हुई परंपरा

मनकामेश्वर महादेव मंदिर में वसुधैव कुटुम्बकम की भावना का संचार शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने 1986 में किया था। जब उन्होंने मंदिर की जिम्मेदारी संभाली थी। तब से लगातार देश-दुनिया में आपसी भाईचारा बढ़ाने और समाज में एक-दूसरे के प्रति वैमनस्य की भावना को दूर करने के लिए मंदिर परिसर में सावन माह के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव का विशेष तरीके से श्रृंगार किया जाता है।

सवा मन गुलाब से श्रृंगार

इस बार सावन माह का शुभारंभ ही सोमवार से हुआ है। मनकामेश्वर मंदिर में विगत वर्षो की भांति भगवान शिव का सावन के पहले सोमवार को सवा मन गुलाब के फूलों से किया गया था। मंदिर के प्रभारी श्रीधरानंद ब्रह्माचारी की देखरेख में पांच आचार्यो ने रात आठ बजे से लेकर नौ बजे तक गुलाब के फूलों से शिवलिंग का श्रृंगार किया था।

भांग व गुड़हल के फूलों से श्रृंगार

मंदिर प्रबंध समिति की मानें तो सावन के दूसरे सोमवार को दस किग्रा भांग से भगवान शिव का श्रृंगार कराया जाएगा। तीसरे सोमवार को गुड़हल का फूल, चौथे को सफेद फूल और अंतिम सोमवार को गुलाब व बेलपत्र से श्रृंगार किया जाएगा।

हम लोग पूज्य शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। ताकि सावन के सोमवार को भगवान शिव के अद्भुत श्रृंगार के जरिए विश्व बंधुत्व की भावना को साकार किया जा सके।

श्रीधरानंद ब्रह्माचारी, प्रभारी मनकामेश्वर मंदिर