दुनिया ने नकारा

इंडिया में वोटिंग के लिए इस्तेमाल होने वाली इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशींस को वल्र्ड लेवल पर डायरेक्ट रिकॉर्डिंग मशीन (डीआरई) के नाम से जाना जाता है। इस तरह की मशीनों को जर्मनी, नीदरलैंड, आयरलैंड ने बैन कर रखा है। यूएस में इस मशीन का इस्तेमाल अगर किया जाता है तो वोटिंग का पेपर बैकअप भी बैलेट के रूप में सुरक्षित किया जाता है। इस मामले में इंडिया एक्सेप्शन है।


इवीएम का इस्तेमाल असंवैधानिक!

देश के हर नागरिक को संविधान वोटिंग का मौलिक अधिकार देता है। संविधान के आर्टिकल 19 (1) (ए) के तहत यह अधिकार हर सिटीजन को हासिल है। वोटिंग के इस प्रॉसेस में इवीएम को मान्यता मिलनी अभी बाकी है। 1984 में सुप्रीम कोर्ट ने इवीएम को 'इललीगल' कहा था। रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट (आरपी एक्ट)-1951 में इवीएम के इस्तेमाल की अनुमति नहीं थी। 1989 में इस एक्ट में संशोधन किया गया और सेक्शन 61 ए के तहत इवीएम के इस्तेमाल की बात कही गई, वह भी कुछ शर्तों के साथ।


इवीएम सॉफ्टवेयर सेफ नहीं

इवीएम का सॉफ्टवेयर सिक्योर नहीं है, क्योंकि इसके 'सोर्स कोड' विश्वसनीय नहीं। इस बुक के अनुसार इवीएम की मैन्यूफैक्चरर इंडियन कंपनीज 'बीइएल' और 'ईसीआईएल' ने यूएसए की कंपनी माइक्रोचिप और जापान की कंपनी रेनेसैस से यह 'टॉप सिक्रेट' शेयर किया था। इन दो कंपनियों ने जब इवीएम के सॉफ्टवेयर में जरा सी छेड़छाड़ की तो इवीएम कंटेंट को रीड करने में फेल हो गया. 


हार्डवेयर भी सेफ नहीं

इवीएम के सॉफ्टवेयर के साथ ही हार्डवेयर पर भी सवालिया निशान हैं। मिशिगन यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर साइंस डिपार्टमेंट के प्रोफेसर अलेक्स हैल्डरमन ने इस पर टिप्प्णी की थी, 'पश्चिमी देशों में इस्तेमाल किए जाने वाले इवीएम के हार्डवेयर असानी से नहीं बदले जा सकते, जबकि इंडियन इवीएम आसानी से रिप्लेस किए जा सकते हैं.इसके माइक्रोकंट्रोलर, मदरबोर्ड बहुत आसानी से बदले जा सकते हैं'। भारत में इलेक्शन कमिशन या फिर इवीएम के मैन्यूफैक्चरर्स ने कभी इवीएम के सॉफ्टवेयर या हार्डवेयर का ऑडिट नहीं कराया।


आसान है आंकड़ों से छेड़छाड़

कमजोर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर होने के साथ ही इवीएम में स्टोर डाटा में आसानी से छेड़खानी की जा सकती है। जीवीएल नरसिंहाराव ने अपनी पुस्तक 'डेमोक्रेसी एट रिस्क: कैन वी ट्रस्ट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशींस' में विशेषज्ञों के हवाले से बताया है कि हर इवीएम में दो ईई पीआरओएम लगे होते हैं, जिसमें वोटिंग का डाटा सुरक्षित होता है। इंडियन इवीएम को हैक करना बेहद सरल है। मात्र दो मिनट में एक चिप के सहारे इसके कंट्रोल यूनिट में छेड़खानी संभव है। इसे हैक करने वाली डिवाइस सौ-दो सौ रुपए में तैयार की जा सकती है।

अंदरखाने का 'खेल'

जीवीएल नरसिंहाराव ने अपनी पुस्तक में कुछ रसूखदार सूत्रों के हवाले से यह भी लिखा है कि हर चुनाव में इलेक्शन प्रॉसेस से जुड़े कुछ इनसाइडर इलेक्शन रिजल्ट फिक्स करने का ठेका लेते हैं। इसके लिए पांच करोड़ रुपए प्रति असेंबली तक की डिमांड होती है। उन्होंने इशारा किया है कि यह इनसाइडर भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल), इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया से जुड़े हो सकते हैं।


सुरक्षा और गणना भी सवालों के घेरे में

इलेक्शन के बाद इवीएम डिस्ट्रिक्ट हेडक्वार्टर पर रखे जाते हैं, एडमिनिस्ट्रेशन इसकी सुरक्षा की व्यवस्था करता है। वोटिंग और काउंटिंग के बीच वक्त का लंबा फासला होता है। राव ने इस बारे में अमेरिकन एक्टिविस्ट बेव हैरिस का हवाला दिया है कि वोटिंग तो हर व्यक्ति की निगाह होती है, लेकिन इवीएम में काउंटिंग पर किसी की निगाह नहीं होती। इलेक्शन कमिशन वोटिंग के लिए तीन महीने तक लेता है, लेकिन काउंटिंग चाहता है कि तीन घंटे में हो जाए।


वोट ऑफ नो कॉन्फिडेंस

इंडिया में इलेक्शन में बड़ पैमाने पर इवीएम का इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन बड़ी पॉलिटिकल पार्टीज भी इसे संदेह से देखती हैं। बीजेपी, टीडीपी, एआईएडीएमके, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल, जनता दल युनाइटेड ने इवीएम के थ्रू वोटिंग को 'वोट ऑफ नो कॉन्फिडेंस' कहा है। कांग्रेस ने भी 2009 इलेक्शन में उड़ीसा में इवीएम में छेड़छाड़ के आरोप लगाए थे।


ईसी को नहीं है टेक्निकल नॉलेज

जीवीएल नरसिंहाराव ने बुक में सवाल उठाए हैं कि इलेक्शन कमिशन व्यापक स्तर पर इवीएम का इस्तेमाल तो कर रहा है, लेकिन वह इवीएम की टेक्नोलॉजी से वाकिफ नहीं है। उन्होंने इलेक्शन कमिशन की इवीएम टेक्नोलॉजी पर एक रिपोर्ट का हवाला दिया है, जिसमें आधी-अधूरी जानकारी कमिशन ने दे रखी है। जीवीएल नरसिंहाराव ने सवाल उठाए हैं कि इलेक्शन कमिशन तकनीकी जानकारी का सा्रेत एक्सपट्र्स की एक कमेटी के जिम्मे है, जिसे प्रोफेसर पीवी इंडरसन लीड करते हैं।


विश्वास खोता गया कमिशन

जीवीएल नरसिंहाराव ने चुनाव में इवीएम के इस्तेमाल पर अंत में सबसे जरूरी सवाल उठाया है। उनका कहना है कि इलेक्शन कमिशन लगातार अपनी विश्वसनीयता खोता जा रहा है। इवीएम को लेकर समय-समय पर वह सफाई देता रहता है। आखिर ऐसी नौबत क्यों आई कि इवीएम से नेताओं और वोटर्स दोनों का विश्वास उठता गया। उनका कहना है कि कमिशन लगातार ट्रांसपेरेंसी खोता जा रहा है।


दिल्ली हाईकोर्ट ने भी जताई सहमति

इवीएम पर अविश्वास की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। इसके यूज पर सवालिया निशान पहली बार खुलकर 2009 के जनरल इलेक्शन में सामने आए। लास्ट इयर सुब्रहमण्यम स्वामी ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें यह आशंका जताई गई थी कि इवीएम में छेड़छाड़ संभव है। कोर्ट ने यह याचिका तो खारिज कर दी थी, लेकिन इससे पूरी तरह सहमति जताई कि इवीएम में टेंपरिंग पॉसिबल है। गोहाटी हाईकोर्ट में असम गणपरिषद की ओर से इस संबंध में एक रिट पेंडिंग है।

फिल्मों में भी दिखा इवीएम का सच

लास्ट इयर सिल्वर स्क्रीन पर आई मेगा स्टारर फिल्म में भी इवीएम से छेड़छाड़ के मुद्दे का प्रमुखता से उठाया गया था। फिल्म थी राजनीति। प्रकाश झा जैसे डायरेक्टर ने भी इस फिल्म के अंत में इस संवाद को तवज्जो दी थी, जिसमें मनोज वायपेयी द्वारा यह कहा जाता है कि एक सेकेंड की हेरफेर से सबकुछ संभव है।