- गरीब स्वाभिमान रैली में मांझी ने दिखायी अपनी ताकत

- कड़ी धूप के बावजूद रैली मेंबड़ी संख्या में पहुंचे लोग

PATNA : नीतीश कुमार मुझे आगे कर अपना चेहरा चमकाना चाहते थे। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। इसके पहले कर्पूरी ठाकुर, भोला पासवान शास्त्री और राम सुंदर दास के साथ भी ऐसा किया जा चुका है। मांझी ने सीएम के रूप में लिए अपने फैसलों को समाज के बड़े तबके के हित में बताया। वे हम मोर्चा की ओर से गांधी मैदान में आयोजित गरीब स्वाभिमान रैली में बोल रहे थे।

तंगी का रोना रोती है सरकार

गरीब स्वाभिमान रैली के दौरान मांझी ने कहा कि सरकार के पास पैसे नहीं है तो दलाली और फिजूलखर्ची के लिए पैसे कहां से आ रहे हैं। तात्कालिक स्थितियों के दबाव और अपना चेहरा बचाने के लिए नीतीश कुमार ने मुझे सीएम बनाया। कुछ समय के लिए मुझे भी लगा कि नीतीश कुमार अपने रिश्तेदार को मुख्यमंत्री न बना कर महान काम किया है, लेकिन जल्द ही मेरी यह गलतफहमी दूर हो गयी। वे मुखौटे के रूप में मेरा इस्तेमाल कर रहे थे। दूसरी तरफ मुझे मुख्यमंत्री बनाकर दलितों के बीच श्रेय लेने का प्रयास किया जा रहा था।

हमने समाज के लिए किया काम

मांझी ने कहा कि एक दो माह तक हमने ठीक वही किया जो उन्होंने कहा। तब तक हम नीतीश कुमार को बहुत अच्छे लगते थे। हमें लगने लगा कि समाज की भलाई के लिए कुछ नहीं किया तो आने वाला समय हमें माफ नहीं करेगा। हमारे पास यही एक मौका था समाज के लिए काम करने का। जब हमने काम करना शुरू किया तो नीतीश कुमार को लगा मुझे उन्होने सीएम बनाकर बहुत गलत किया।

सब जानते हैं, किसका राज चलता है

दलितों के साथ ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। इसके पहले भी राजनीतिक उथलपुथल के दौर में भोला पासवान शास्त्री, कर्पूरी ठाकुर, राम सुंदर दास आदि का उपयोग किया जा चुका है। स्थितियां शांत होने के बाद इन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाता था। सब जानते हैं कि बिहार में किसका सिक्का चलता है।

आनन-फानन में हमें हटाया

जब लीक से हटकर हमने काम शुरू किया तो सब हड़बड़ा गए। आनन फानन में हमें हटा दिया गया। हमें तो पंद्रह महीनों के लिए सीएम बनाया गया था। ये तय था कि जदयू मेरे ही नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ेगा। मैंने कहा भी था कि यदि ऐसा होता तो मैं मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश का नाम पेश करने वाला पहला व्यक्ति होता।

गरीब को गरीब रखने की साजिश

समाज की बुनावट में दलितों महादलितों की स्थिति को बेहद दयनीय बताते हुए मांझी ने कहा कि गरीब की बेहतरी के लिए बनाई जाने वाली योजनाएं हाशिए पर डाल दी जाती है। गरीबों को जानबूझ कर गरीब बनाए रखने के लिए चालें चली जाती है। हमने तय किया कि ऐसा नहीं होने देंगे।

प्रभावित हो रही बच्चों की शिक्षा

मांझी ने कहा कि सरकारी विद्यालयों के शिक्षक सड़क पर डटे हैं, ऐसे में गरीब बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है। सक्षम तबके के लोग अपने बच्चों को बड़े-बड़े स्कूलों में पढ़ा कर उन्हें सक्षम बना देते हैं। इसी वर्ग का सरकारी नौकरियों पर कब्जा हो जाता है। इसलिए हमने शिक्षकों के लिए नियत वेतनमान की घोषणा की। युवाओं में बेरोजगारी को देखते हुए पांच साल तक बेरोजगारी भत्ता देने का निर्णय भी लिया था।

कहां से आते हैं पैसे

महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं। महिलाओं को आरक्षण तो दिया गया लेकिन अशिक्षा की वजह से वे इसका लाभ नहीं उठा पा रहीं। उनके लिए एमए तक की शिक्षा निशुल्क करने की घोषणा की गयी थी। सभी तरह की नौकरियों में उनके लिए पैंतीस प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था। सिपाहियों को यदि हमने एक माह का अतिरिक्त वेतन देने का फैसला किया तो इसमें गलत क्या था। हमने किसानों के बिजली बिल माफ करने का निर्णय लेकर कौन सा गलत काम किया था.पैसों की कमी बता कर हमारे निर्णयों की आलोचना की जाती है। हम पूछना चाहते हैं कि बेइमानों, दगाबाजों पर उड़ाने के लिए सरकार के पास पैसे कहां से आते हैं।

मांझी मिलें तो गलत, नीतीश मिलें तो ठीक

मौके पर नीतीश मिश्रा ने कहा कि अपने ही सीएम के लिए अमर्यादित शब्द का इस्तेमाल किया गया। मांझी नरेन्द्र मोदी से मिले तो गलत और नीतीश कुमार मिलें तो ठीक ये कहां का न्याय है। वहीं सम्राट चौधरी ने कहा कि कुछ ने 15 साल तो छोटे भाई ने 9 साल शासन किया। मोर्चा को इतनी ताकत दें कि 2015 में सीएम की कुर्सी पर जीतन राम मांझी हों। रैली में नरेन्द्र सिंह, जगदीश शर्मा, शाहिद अली खां, महाचंद्र सिंह, पूनम देवी, विनय बिहारी आदि कई नेताओं ने हिस्सा लिया।

The other side

गर्मी, धूप में डटे रहे लोग

गांधी मैदान की गरीब स्वाभिमान रैली में बहुत गर्मी व धूप के बावजूद अच्छी भीड़ जुटी। लोग जहां खड़े थे, वहां नीचे पंडाल में पंखे आदि भी नहीं थे, फिर भी काफी लोग जीतन मांझी के भाषण तक डटे रहे।

खाली पैर में सैकड़ों महिलाएं

इतनी गर्मी और रैली में ढेरों महिलाएं खाली पैर दिखीं। इसने ये दिखाया कि अभी भी दलितों-महादलितों की स्थिति बहुत खराब है। महिलाएं बड़ी संख्या में इस रैली में पहुंची थीं।

मांझी नहीं, ये आंधी है

जीतन राम मांझी ने नीतीश कुमार, लालू प्रसाद सहित बीजेपी को भी अपनी ताकत दिखाई। ये दिखा कि मांझी वोट बैंक के बड़े फैक्टर को प्रभावित कर सकते हैं। कुछ पोस्टरों पर मांझी की तुलना गांधी से दिखा। कहा गया मांझी नहीं ये आंधी है देश का दूसरा गांधी है।

सब दावे करते रहे

जीतन राम मांझी पहले कहते रहे कि पांच लाख की भीड़ न हुई तो वे राजनीति छोड़ देंगे। पांच लाख से काफी कम भीड़ थी, अब मांझी राजनीति छोड़ेंगे कि नहीं वही जाने पर दावे खूब हुए। शाहिद अली ने कहा कि लोगों को पटना आने से रोका गया। तमाम दावों के बीच लोग ये कहते देखे गए कि एक लाख भी नहीं पार हुई होगी भीड़