जितेन्द्र मर्डर केस में विधायक पूजा के करीबी उमेश और उसका भाई हुआ है नामजद

जनवरी में हुए सर्राफा कारोबारी की हत्या में विधायक हुई थीं नामजद

डर्टी पॉलिटिक्स पहले आ चुकी है सामने, इस बार क्या होगा?

जयंतीपुर के रहने वाले जितेन्द्र पटेल को किसने और क्यों मारा? यह तो पुलिस का इंवेस्टिगेशन पूरा होने और आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद सामने आएगा। लेकिन, घटना और रिपोर्ट दर्ज कराने के बीच जो एक्टिविटीज हुई? उससे यह आशंका फिर से प्रबल हो गई कि दो पक्षों के बीच चल रही जंग में एक और मोहरा अपनी जान गंवा बैठा। संभव है कि छह महीने पहले हुई कहानी फिर से दोहराई मिल जाए। पुलिस फिलहाल खामोशी से अपना काम कर रही है। प्रेशर जबरदस्त है। बड़ा सवाल यह बन गया है कि वह इस प्रेशर से निकल भी पाएगी या नहीं?

मुकदमे चल रहा तो हत्या क्यों?

जितेन्द्र हत्याकांड की धूमनगंज थाने में दर्ज कराई गई रिपोर्ट से ही सियासत की गंध महसूस की जा सकती है। विधायक पूजा पाल के करीबी और पूर्व विधायक राजू पाल हत्याकांड के प्रत्यक्षदर्शी और गवाह उमेश पाल को साजिशकर्ता बताया गया है। उमेश के भाई रमेश और उन्हीं से जुडे़ अशरफ के अलावा तीन अन्य को हत्यारोपी बनाया गया है। इन सभी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की पृष्ठभूमि में है जितेन्द्र के परिवार का वह मकान जिसके एक हिस्से पर उमेश अपना दावा करता है। इस हिस्से में शराब की दुकान संचालित होती है।

क्या है जमीन का विवाद

जितेन्द्र के पिता की मौत हो चुकी है। जयंतीपुर के जिस मकान में यह परिवार रहता है उसका मालिकाना हक दो हिस्सों में था। मृतक के पिता दो भाई थे और दोनों आधे-आधे के मालिक थे। आधे हिस्से पर जितेन्द्र कुमार पटेल की मां सूरलकली अपना दावा करती है। उनके मुताबिक इस हिस्से की उन्होंने रजिस्ट्री करा रखी है। उमेश ने भी इसी हिस्से की रजिस्ट्री का दावा किया है। दोनों पक्षों को रजिस्ट्री करने वाला व्यक्ति एक है। इसका मुकदमा न्यायालय में पेंडिंग है। 13 को इस मामले में कोर्ट में सुनवाई है। जितेन्द्र की मां का कहना है कि 13 को फैसला आने वाला है इसलिए उनके बेटे की हत्या का दी गई ताकि उन पर दबाव बनाया जा सके। अब सवाल यह खड़ा होता है कि मुकदमे का तो फैसला कोर्ट को करना है। मुकदमे के निर्णय से फर्क सूरजकली को पड़ना है। फिर जितेन्द्र को क्यों कोई मारेगा।

बाक्स

उमेश को घेरने की साजिश

जितेन्द्र की हत्या जिस स्थान पर हुई उस पूरे रास्ते में किसी भी स्थान पर न तो कोई सीसीटीवी कैमरा लगा है और न ही कोई ऐसा रोड है जिस पर ट्रैफिक मूव करता हो। इस रास्ते पर तो कार चल भी नहीं सकती। सिर्फ बाइक सवार आते-जाते हैं? फिर कैसे पता चल गया कि गोली किसने मारी। स्पॉट पर तो किसी ने गोली चलने की आवाज सुनने की भी पुष्टि नहीं की है। इससे शक और गहरा गया है। अब इससे जुड़ा एक और तथ्य सामने आता है, प्लांड रिपोर्ट दर्ज कराना। इसमें काफी गुंजाइश नजर आती है। राजू पाल हत्याकांड का उमेश मुख्य गवाह है। 16 जुलाई को उमेश को गवाही देनी है। यह मामला सीधे-सीधे पूर्व सांसद अतीक अहमद, उनके भाई पूर्व विधायक अशरफ और वर्तमान बसपा विधायक पूजा पाल से जुड़ा है। उमेश पूजा के साथ है और इस पूरे प्रकरण की फाइल सीबीआई भी खोल चुकी है। इससे उमेश को घेरने का संदेह ज्यादा मजबूत होता है। तो सवाल यहां यह खड़ा हो जाता है कि क्या जितेन्द्र की मौत को सिर्फ एक मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है?

बाक्स

मिलती-जुलती है ललित हत्याकांड की कहानी

जितेन्द्र हत्याकांड में रिपोर्ट दर्ज कराने में हुई सियासत ने इस साल पांच फरवरी को सिविल लाइंस एरिया में हुए ललित वर्मा हत्याकांड की यादें ताजा कर दी है। ललित गली के भीतर गोली मारी गई थी। इसमें उसका भतीजा विक्रम सोनी उर्फ सोनू घायल हुआ था। घटना की रिपोर्ट में विधायक पूजा पाल को नामजद किया गया था। घटना का कारण धूमनगंज में स्थित पूजा पाल के कार्यालय की जमीन का विवाद बताया गया था। इस मामले का पुलिस खुलासा किया तो सब चौंक गए। पता चला कि विक्रम ने ही ललित को गोली मारी थी और सियासी दखल के चलते पूजा पाल और उनके करीबी को जबरन नामजद करा दिया गया।

बाक्स

कब तक चलेगा रिपोर्ट-रिपोर्ट का खेल

शहर पश्चिमी की विधायक पूजा पाल के करीबी उमेश पाल के खिलाफ सोमवार की रात धूमनगंज में हत्या की साजिश का मुकदमा दर्ज होने से पूर्व सांसद अतीक और विधायक पूजा पाल के बीच चल रहे रिपोर्ट-रिपोर्ट के खेल में एक कड़ी और जुड़ गई। एक्चुअली दोनों पक्ष शहर पश्चिमी की सीट पर कब्जे को लेकर जंग लड़ रहे हैं। इस सीट पर अतीक अहमद की बादशाहत थी। पूजा के पति राजू पाल ने अतीक के इस तिलस्म को तोड़ा था। चुनाव के साथ बाकी क्षेत्रों में राजू का बढ़ता दखल राजू की मौत का कारण बना। राजू पाल की हत्या एक दशक पहले हुई थी। उन पर धूमनगंज से लेकर सिविल लाइंस तक पीछा करके गोली बरसाई गई थी। इस मामले का उमेश मुख्य गवाह है। इस इसमें अतीक और उनके सगे भाई अशरफ नामजद हैं। इस मामले की सीबीआई जांच शुरू हो चुकी है और अदालत में चल रहे केस में गवाही चल रही है। जाहिर है इसका प्रेशर दोनों पक्षों पर है। एक को निर्दोष साबित करना है और दूसरे को अपनी रिपोर्ट को सही साबित करना है। दोनों पक्ष अपनी-अपनी गोटियां चल रहे हैं। इसी का असर है कि कभी उमेश पक्ष अतीक एंड कंपनी के खिलाफ तो कभी अतीक पक्ष पूजा-उमेश एंड कंपनी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराता है।