बन रही बड़ी समस्या

मनोचिकित्सकों का कहना है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स के बढ़ते इस्तेमाल के कारण मानसिक समस्याएं पैदा होने के मामले भारत में भी बढ़ रहे हैं और ये साइट्स देश में मानसिक रोगियों की संख्या में इजाफा होने के एक प्रमुख कारण हो सकते हैं.  देश में मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों की संख्या पांच करोड़ तक पहुंच चुकी है। अब सिटी के डॉक्टर्स के पास ऐसे युवकों और बच्चों के इलाज के लिये आने वालों की तादात बढ़ रही है जो देर रात तक इंटरनेट सर्फिंग एवं चैटिंग करने के कारण अनिद्रा, याददाश्त में कमी, चिड़चिड़ापन और डिप्रेशन जैसी समस्याओं से ग्रस्त हो चुके हैं। ये बात तो पहले भी सिद्ध हो चुकी है कि महानगरों में बड़ी संख्या में युवा नींद संबंधी समस्याओं के शिकार हैं। कई युवा इन समस्याओं के इलाज के लिये मानसिक चिकित्सक के पास पहुंचते हैं, लेकिन कई खुद-ब-खुद नींद की गोलियां लेने लगते हैं जो काफी घातक सिद्ध होता है। इन गोलियों के इस्तेमाल से याददाश्त में कमी, लीवर की बीमारी, दवा का रिएक्शन हो जाना, दौरे पडऩा जैसी बीमारियां हो सकती है।

ज्यादा टाइम स्पैंड करते हैं

सोशल नेटवर्किंग पर व्यक्ति जब तक रहता है तो उसका कई लोगों के साथ वर्चुअल रिलेशनशिप बनता है, लेकिन इस दुनिया से बाहर आते ही व्यक्ति अकेलेपन के शिकार हो जाता हैं। इन साइट्स के कारण वास्तविक संबंध भी प्रभावित होते हैं जिससे लाइफ में समस्याएं आती है। ये समस्याएं व्यक्ति को मानसिक तनाव और अन्य मानसिक बीमारियों से ग्रस्त कर सकती हैं। यही नहीं इन साइट्स पर बहुत ज्यादा एक्टिव रहने पर व्यक्ति के करियर पर भी प्रभाव पडता है।

जीन्स पर होता असर

इस समय दुनिया भर में फेसबुक के 90 करोड़ और ट्विटर के 50 करोड़ से अधिक यूजर्स हैं और इनकी संख्या में हर घंटे तेजी से वृद्धि हो रही है। बच्चे, किशोर एवं युवा स्मार्टफोन, लैपटॉप एवं डेस्कटॉप के जरिये  सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर चैटिंग  करने अथवा तस्वीरों और मैसेज का आदान-प्रदान करने में अधिक समय बिताते हैं। डॉ। सुनील मित्तल बताते हैं कि बच्चे और युवा इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स के स्वास्थ्य पर पडऩे वाले दुष्प्रभाव से अनजान हैं। वे तो अनजाने में ही इसके प्रति एडिक्ट हो जाते हैं और अपनी जिंदगी को खतरे में डाल लेते हैं। इस विषय में हुए वैज्ञानिक शोधों के अनुसार सामाजिक अलगाव और अकेलेपन के कारण जीन की कार्यप्रणाली के तरीके, रोग प्रतिरोध संबंधी जैविक प्रतिक्रिया, हार्मोन के स्तर तथा धमनियों के कार्यों में बदलाव आता है जिसकी वजह से कई गंभीर रोग आ घेरते हैं। इसके अलावा इससे मानसिक क्षमता भी प्रभावित होती है।

ये हैं सॉल्यूशन

पैरेंट्स रखें ख्याल

काउन्सलिंग और थेरेपी की मदद से भी इंटरनेट यूज करने की आदत को कम किया जा सकता है।

-बच्चों में नई हॉबीज को डेवलप करें।

-पैरेंट्स को चाहिए कि वो बच्चे को बताएं कि उसे कहां नेट सर्च करना चाहिए। बेहतर तो ये होगा कि आप घर में ही इंटरनेट कनेक्शन लें। ताकि उस दौरान बच्चा आपकी आंखों के सामने रहे।

-कंप्यूटर बच्चे के रूम में न रखकर लिविंग एरिया में रखें। ताकि आते-जाते आप देख सकें कि वो क्या सर्फिंग कर रहा है।

-इस बात का ख्याल रखें कि बच्चा फेक साइट्स को सर्च न करे। इसके लिए साइट्स को ब्लॉक किया जा सकता है।

-बच्चा जो पीसी यूज कर रहा है उसका पासवर्ड आपको भी पता होना चाहिए। ताकि आप इंटरनेट देख सकें।

-बच्चा जब भी अपना इंटरनेट एकाउंट चेक करता है तो कोशिश करें कि आप उसके पास ही बैठें। कोई भी अंजान शख्स उसे मेल कर रहा है तो आप उसे रिप्लाई करने से मना करें। जिन लोगों को आप जानते हैं या

-जिस कंप्यूटर को बच्चा यूज करता है उस पर चाइल्ड-सेफ ब्राउजर इंस्टॉल करें। ये ब्राउजर कलरफुल और फनी होने के साथ ये भी गाइड करेगा कि वो सेफ साइट्स पर ही विजिट करे।

-उसके इंटरनेट यूज करने के लिए कुछ समय निर्धारित कर दें।