- डीएनए फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट पद्मश्री प्रो। लालजी सिंह से आई नेक्स्ट की खास बातीचीत

- डीएनए फिंगर प्रिंटिंग टेक्नीक के थ्रू अमरमणि त्रिपाठी, प्रेमानंद और एनडी तिवारी जैसे दिग्गजों के केसेज का हुआ है खुलासा

GORAKHPUR : पकड़े जाने के बाद कातिल के जुर्म को साबित करने के लिए यूं तो खून की एक बूंद ही काफी है, लेकिन अगर कातिल का नामोनिशां पता न हो तो ऐसी कंडीशन में क्या? इसका परमानेंट सॉल्युशन जल्द ही मिलने वाला है। अब खून की एक बूंद से कातिल का स्केच भी बन सकेगा। यह बातें शेयर की डीएनए फिंगर प्रिंटिंग में इंडिया का डंका बजाने वाले साइंटिस्ट प्रो। लालजी सिंह ने। वह इंडियन गवर्नमेंट की ओर से ऑर्गेनाइज इंस्पायर इंटर्नशिप कैंप में नन्हें साइंटिस्ट को मोटीवेट करने के लिए सिटी के एमजीपीजी कॉलेज में पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि डीएनए फिंगर प्रिंटिंग इस तरह के मामलों में काफी कारगर साबित हो रही है, जिसकी वजह से लगातार पेचीदा मामलों के खुलासे हो रहे हैं।

डीएनए सीक्वेंस को लेकर जारी है रिसर्च

प्रो। सिंह ने बातचीत के दौरान बताया कि अगर हमारे पास कोई भी बायोलॉजिकल एविडेंस है, तो कातिल अब किसी भी कंडीशन में बच नहीं सकते। उन्होंने बताया कि इंडियन गवर्नमेंट अब और भी एडवांस टेक्नीक पर वर्क कर रही है। इससे डीएनए के सीक्वेंस को मैच कराया जाएगा। इसके बाद डीएनए में इनवॉल्व ख्भ्0 जीन के पॉलिमॉफिज्म को कंप्यूटर के थ्रू मैच कराया जाएगा, जिसके बाद कंप्यूटर उस आदमी का स्केच बना देगा, जिसका वह डीएनए है। उन्होंने बताया कि इसको लेकर अभी रिसर्च चल रही है।

अब 8 घंटे में हो जाता है आइडेंटिफिकेशन

उन्होंने बताया कि डीएनए के थ्रू आइडेंटिफिकेशन काफी आसानी के साथ हो जाती है। पहले यह टेक्नीक मैनुअली थी, जिसकी वजह से स्पेसिमेन से आइडेंटिफिकेशन में ख्-फ् माह से ज्यादा का वक्त लग जाता था। मगर अब महज 8 घंटे में ही झूठ और सच सभी के सामने होते हैं। उन्होंने बताया कि क्योंकि यह सारी प्रॉसेस अब कंप्यूटर के थ्रू होती है, इसलिए इसमें अब गलती की चांसेज काफी कम हो जाती है।

क्99क् में कोर्ट में एक्सेप्ट हुआ था पहला मामला

प्रो। सिंह ने बताया कि इस टेक्नीक का यूं तो काफी पहले ही पता चल चुका था, लेकिन इंडियन ज्यूडिशियरी में सबसे पहला केस क्99क् में पेटर्निटी डिस्प्यूट का एक्सेप्ट किया गया। उसके बाद केरला हाईकोर्ट में उसी साल से ऐसे केसेज एक्सेप्ट किए जाने लगे। डीएनए फिंगर प्रिंटिंग के थ्रू ही अमरमणि त्रिपाठी, स्वामी प्रेमानंद मामले का खुलासा हुआ था, वहीं बहुचर्चित एनडी तिवारी मामले में भी एक्सप‌र्ट्स ने कामयाबी पाई थी, जिसके बाद एनडी तिवारी ने अपनी गलती एक्सपेट की थी। यही नहीं इस टेक्नीक के और भी सैकड़ों एक्जामपल हैं, जिनसे न सिर्फ अपराधियों को अंजाम तक पहुंचाया गया है बल्कि पेटर्निटी डिस्प्यूट, वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन, चिकित्सीय अनुमान में भी यह काफी हेल्पफुल है।

टेस्टिंग के लिए पहले लंदन भेजना पड़ता था

इंडिया में डीएनए फिंगर प्रिंटिंग के जनक माने जाने वाले प्रो। लालजी सिंह का सिर्फ इंडिया में ही नहीं बल्कि एब्रॉड में भी जलवा है। उन्होंने यूके और यूएस के कई केसेज में डीएनए फिंगर प्रिंट टेक्नीक के थ्रू वहां के एक्सप‌र्ट्स को गलत साबित किया है। यह उन्हीं की देन है कि आज डीएनए फिंगर प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी इंडिया में यूज हो रही है। इससे पहले सिर्फ हाई प्रोफाइल केसेज के लिए इस टेक्नीक का इस्तेमाल किया जाता था, उसके लिए भी स्पेसिमेन लंदन भेजने पड़ते थे। जिससे वक्त तो लगता ही था, साथ में काफी पैसे भी खर्च होते थे। प्रो। सिंह की कड़ी मशक्कतों का ही नतीजा है कि अब यह टेक्नीक इंडिया में भी यूज हो रही है और इससे पैसे और वक्त दोनों की ही बचत हो रही है।

प्रोफाइल -

नाम - प्रोफेसर लालजी सिंह (फादर ऑफ डीएनए प्रिंटिंग)

अड्रेस - कलवारी, जौनपुर

क्वालिफिकेशन - एमएससी (गोल्ड मेडलिस्ट)-पीएचडी

अवा‌र्ड्स - पद्म श्री, शांति स्वरूप भटनागर फेलो, जगदीश चंद्र बोस फेलो