Anything in excess is poison

- आई नेक्स्ट के पैरेंटिंग सेमिनार में खुलकर बोले एक्सप‌र्ट्स और पैरेंट्स

- एक्सप‌र्ट्स ने टेक्नोसेवी बच्चों पर नजर रखने की दी सलाह

- सॉल्व हुई क्वेरीज, मिला हर सवाल का जवाब

ALLAHABAD: लाइफ में किसी भी चीज का जरूरत से ज्यादा उपयोग घातक हो सकता है। फिर वह मोबाइल, कम्प्यूटर या टेबलेट ही क्यों न हों। अगर आपका बच्चा टेक्नोसेवी है तो इसमें खुश होने की जरूरत नहीं, बल्कि होशियारी बरतनी होगी। कहीं ऐसा न हो कि आपसे नजरें चुराकर वह गलत रास्ते पर चल पड़े। आई नेक्स्ट के पैरेंटिंग सेमिनार में एक्सप‌र्ट्स ने कुछ ऐसी सलाह पैरेंट्स को दी। शिवकुटी स्थित नारायणी आश्रम महर्षि महाप्रभु इंटर कॉलेज में ऑर्गनाइज प्रोग्राम में एक्सप‌र्ट्स ने कहा कि बच्चों की बेहतर परवरिश से पहले खुद माता-पिता को एग्जाम्पल सेट करने होंगे। इसके बिना कुछ भी संभव नहीं है।

नहीं मिलती पैरेंटिंग की फॉर्मल ट्रेनिंग

पैरेंटिंग की फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं मिलती है, यह अपने अनुभव के आधार पर करते हैं। जैसे हमारे माता-पिता ने हमारी परवरिश की थी, वैसे ही हम अपने बच्चों की करते हैं। ये कहना था हमारे एक्सपर्ट और एसएन चिल्ड्रेन हॉस्पिटल के एचओडी डॉ। डीके सिंह का। उन्होंने कहा कि अब सिनेरियो चेंज हो रहा है। पहले परिवार बड़े होते थे और सुविधाएं कम लेकिन अब सुविधाएं अधिक हैं और परिवार छोटे। फिर भी पैरेंटिंग में पैरेंट्स को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अब परिवार में दादा-दादी का खौफ नहीं है, बल्कि पैरेंटिंग अंडर स्टैंडिंग बेस्ड हो गई है। अब बच्चे अपने पैरेंट्स को देखकर सीखते हैं, इसलिए हमें उनकी नजरों में रोल मॉडल बनना होगा।

पहले खुद को संभालें, फिर लगाएं उम्मीद

डॉ। सिंह ने कहा कि डिजीटल व‌र्ल्ड के इस दौर में बच्चों को टीवी और गैजेट्स से ज्यादा लगाव हो गया है। वह पूरा दिन टीवी के सामने बिताना चाहते हैं। एक इंटरनेशनल सर्वे के मुताबिक स्क्रीन टाइमिंग एक घंटे रखी गई है। मतलब बच्चों को ख्ब् ऑवर्स में एक घंटे टीवी देखने की परमिशन दीजिए, और इसके लिए पहले पैरेंट्स खुद का स्क्रीन टाइम सेट करें। खासतौर से एडोलसेंट चाइल्ड में अधिक मोबाइल यूज करने से हाथ की उंगलियों में दर्द, गर्दन में दर्द, अधिक ईयर फोन यूज करने से कान से कम सुनाई पड़ना, आउट डोर एक्टिविटी कम होने से मोटापा और जंक फूड अधिक खाने से कब्ज और पेट दर्द की शिकायतें सामने आती हैं।

पैरेंट्स को सिखाया थ्री ई फॉर्मूला

पैरेंटिंग में थ्री ई फॉर्मूले का बहुत महत्व है। ये कहना था एक्सपर्ट और मनोविज्ञानशाला की सीनियर सोशल साइकोलॉजिस्ट सुधा शुक्ला का। इनवॉयरमेंट, एजूकेशन और एक्सपीरियंस को ध्यान में रखकर ही बच्चों की बेहतर परवरिश की जा सकती है। अक्सर पैरेंट्स ये कहकर फूले नहीं समाते कि मेरा पांच साल का बच्चा तेजी से कम्प्यूटर चलाता है। लेकिन, वह यह नहीं देखते कि वह कम्प्यूटर पर कर क्या रहा है। पहले वीडियो गेम चलाता है और धीरे-धीरे डिफरेंट साइट्स विजिट करता है। बच्चे बहुत जिज्ञासु होते हैं और जरा सी लापरवाही बरतने पर इलेक्ट्रानिक गैजेट्स का मिसयूज करने में जरा भी नहीं चूकते। उन्होंने कहा कि पहले बच्चे अपने पैरेंट्स के साथ रिश्तेदारों के यहां जाना पसंद करते थे लेकिन अब वह घर पर अकेले रहते हैं। इससे उनका सोशल इंटरेक्शन कम होता जा रहा है। बहुत सी जरूरी चीजें सीखने वह वंचित रह जाते हैं।

स्कूल में अभिनव और घर में बबुआ?

वेल एजूकेटेड बनाने के लिए बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूलों में भेजा जाता है। बच्चे छह घंटे स्कूल में सीखते हैं और क्8 घंटे घर पर वैसा माहौल नहीं मिलने से भूल जाते हैं। स्कूल प्रिंसिपल रविंदर बिर्डी ने कहा कि फिर स्कूलों की ऐसी मेहनत का क्या फायदा जब बच्चे का नाम स्कूल में अभिनव हो और घर पर वह बबुआ हो जाए। बच्चों सही परवरिश देनी है तो घर का माहौल भी बेहतर बनाना होगा। उन्होंने कहा कि अक्सर पैरेंट्स छोटी-छोटी बातों पर बच्चों का स्कूल ड्रॉप करा देते हैं। यह बड़ी समस्या है। बच्चों को रेगुलर स्कूल भेजने की हैबिट डालनी होगी। पैरेंट्स मीटिंग में कम मा‌र्क्स आने पर सबके बीच डांटना शुरू कर देते हैं। ऐसी आदतों को बदलना होगा। टेक्नोलॉजी के इस युग में बच्चों की पैरेंटिंग बड़ा चैलेंज है और यह तभी संभव होगा जब पैरेंट्स समय के साथ खुद को बदलने को तैयार हो जाएं।

सुपरमैन नहीं है आपका बच्चा, उसे सीखने की आदत डालिए

अपेक्षाएं बढ़ती जा रही हैं। जो काम पैरेंट्स अपनी लाइफ में नहीं कर पाए, उसकी उम्मीद बच्चों से लगाए बैठे हैं। अगर उनकी मनोकामना पूरी नहीं हो पाती तो वह बच्चों को डांटते हैं। जिससे वह डिप्रेशन में आ जाते हैं। एक्सपर्ट और मनोविज्ञानशाला के साइकोलॉजिस्ट डॉ। कमलेश तिवारी ने कहा कि हमारे यहां आने वाले पैरेंट्स अपने बच्चों को लेकर तरह-तरह की शिकायत करते हैं। मैं यह पूछता हूं कि हर बच्चे का मेंटल स्टेटस एक नहीं हो सकता। कोई बच्चा एक बार में सीख जाता है तो किसी को दस बार बताने की जरूरत पड़ती है। इसलिए बच्चों को बार-बार सिखाइए। अगर पड़ोस के बच्चे के नंबर अच्छे आ रहे हैं तो तुलना या रिजेक्शन करने से अच्छा होगा कि बच्चे को एप्रिशिएट करिए। नंबरों की दौड़ से बाहर निकलिए। रिजल्ट आने पर बच्चे के नंबर गिनने से अच्छा होगा कि उसे सालभर पढ़ाइए।

बच्चों की पसंद का खाना बनाएं

एसएन चिल्ड्रेन हॉस्पिटल की डायटीशियन शशि दुबे ने बच्चों की जंक फूड हैबिट पर अपनी राय दी। उन्होंने कहा कि बच्चों का घर का बना खाना नहीं खाना आज की बड़ी प्रॉब्लम है। वह मार्केट में बिकने वाले बर्गर, मैगी, पिज्जा जैसे जंक फूड को ज्यादा प्रिफर करते हैं। पैरेंट्स भी उनकी जिद के आगे झुक जाते हैं और इन चीजों को रूटीन बना देते हैं। डेली ऐसी चीजें खाने में नहीं देना चाहिए, सप्ताह में एक बार दे सकते हैं। मदर्स चाहें तो घर में बने खाने को कलरफुल और अट्रेक्टिव बना सकती हैं। किचन में जाने से पहले बच्चे की पसंद जरूर पूछें। टिफिन में भी वैरिएशन बनाए रखें। अलग-अलग चीजें देने से उसकी च्वॉइस बनी रहती है। जब बच्चा फिजिकली फिट होगा तभी उसका मेंटल डेवलपमेंट भी होगा। बच्चे की पसंद का खाना जरूर बनाएं लेकिन उसमें न्यूट्रिशन का पूरा ध्यान रखें।

बड़ी संख्या में पहुंचे पैरेंट्स

आई नेक्स्ट की पैरेंटिंग सेमिनार में पैरेंट्स का जबरदस्त क्रेज देखने को मिला। स्कूल के सेमिनार हाल मॉर्निग में ही खचाखच भर गया था। दूसरे स्कूलों से भी पैरेंट्स एक्सप‌र्ट्स की राय जानने के लिए आए थे। प्रोग्राम की शुरुआत दीप प्रज्जवलन के साथ हुई। इस मौके पर हमारे एक्सप‌र्ट्स के साथ स्कूल प्रिंसिपल मौजूद रहीं। वोट ऑफ थैंक्स एक्टिविटी इंचार्ज प्रतिभा शुक्ला ने दिया। आई नेक्स्ट इलाहाबाद यूनिट के न्यूज एडिटर श्याम शरण श्रीवास्तव ने एक्स‌र्ट्स का वेलकम किया तो सरकुलेशन इंचार्ज आदर्श अग्रवाल ने को मोमेंटो भेंट किया। स्कूल की ओर से एक्टिविटी इंचार्ज कृतिका चंदेल, असिस्टेंट टीचर हेमा शुक्ला, हेड गर्ल सताक्क्षी श्रीवास्तव और हेड ब्वॉय दिव्यांशी जायसवाल का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

टिप्स जो एक्सप‌र्ट्स ने दिए

- बच्चों को गिफ्ट में इलेक्ट्रानिक गैजेट्स देने के बजाय क्रिएटिव गेम्स या स्टोरी बुक दी जाए।

- उनके सामने आपस में लूज टॉक और नशा करने से बचें।

- बच्चों को सामने ट्रेफिक रूल्स न तोड़ें, इस का गलत प्रभाव पड़ता है।

- टीवी और कम्प्यूटर के सामने ज्यादा वक्त बिताने से बेहतर बच्चों के साथ आउट डोर गेम्स खेलें।

- फ्रिज में जंकफूड और कोल्ड ड्रिंक्स रखने से परहेज करें।

- बच्चों के सामने मोबाइल का एक्सेस यूज न करें। उसे केवल सूचना के आदान-प्रदान तक सीमित रखें।

- छह महीने से बड़े बच्चे को ऊपर की चीजें खाने को दें। जंक फूड की आदत न डालें।

- सिविक सेंस को लेकर सेंसेटिव रहें। केवल एजूकेशन नहीं, बल्कि बच्चे को अच्छा नागरिक बनाने की कोशिश करें।