-एसआरएमएस के आईबैंक में एक अदद आंख के लिए लोगों ने किए हैं आवेदन

-अवेयरनेस की कमी के चलते इन लोगों को रौशनी देने के लिए नहीं मिल रहे डोनेटर

BAREILLY :

बरेली में 4 हजार लोग ऐसे हैं, जिनके लिए दुनिया काली है। वह जन्म से अंधे हैं या फिर हादसे में आंख की रौशनी खो बैठे हैं। इनकी आंखों को रौशनी का इंतजार है। एसआरएमएस मेडिकल कॉलेज के आईबैंक में इस उम्मीद से आवेदन किए हैं कि उनकी जिंदगी में उजाला भर देने वाले संदेश कभी आ जाएगा। अफसोस, मेडिकल कॉलेज को ऐसे लोग नहीं मिल रहे हैं, जो अपने को खो देने वाले की आंखें दान कर सकें।

डेढ़ दशक में करीब डेढ़ सौ ट्रांसप्लांट

मेडिकल कॉलेज में वर्ष 2002 में आई बैंक ओपन हुआ था। करीब डेढ़ दशक हो गए, लेकिन अब तक करीब डेढ़ सौ आंखों का ट्रांसप्लांट हो सका है। यह आंकड़ा बताने के लिए काफी है कि लोग आंखों को दान करने के लिए अवेयर नहीं हैं। जबकि, हादसे या स्वाभाविक बीमारी से डेथ होने पर आंखों को दान किया जा सकता है। ऐसा करके अपनों की आंख से किसी को रौशनी दे सकते हैं।

6 हजार प्लेजिंग

अपनी आंखें दान करने के लिए एसआरएम मेडिकल कॉलेज के आई बैंक में 6000 लोगों ने प्लेंजिंग फॉर्म फिलअप किया है। इनकी आंखें तभी मिलना संभव होता है, जब यह अपनी उम्र पूरी कर लेते हैं और निधन के वक्त बरेली में ही हों। अन्यथा इनके कार्ड से दूसरे शहरों के आईबैंक में डोनेशन का काम हो जाता है।

आईबैंक चलाता अवेयरनेस कैंप

आईबैंक लोगों को आंखें दान करने के लिए अवेयरनेस कैंपेन भी चलाता है। ताकि, लोगों के मन में आंखें दान करने को लेकर जो झिझक है वह दूर हो सके कि निधन के बाद शरीर अंग-भंग क्यों कराएं। आईबैंक का डॉक्टर्स का कहना है कि आंखों का दान करके आप किसी के जीवन में खुशियां भर सकते हैं। यह एक सबसे बड़ा पुण्य है।

यह लोग नहीं कर सकते डोनेट

यंगस्टर्स की आंखें डोनेट करना ज्यादा सफल माना जाता है। ओल्ड एज की आंखों को डोनेट करने से रिजल्ट बेहतर आने की संभावना कम होती है। इसमें भी एचआईवी पॉजिटिव, हेपेटाइटिस बी और सी के पेशेंट की आंखें ट्रांसप्लांट नहीं हो सकती हैं।

1919 नंबर करें डॉयल

यदि कोई व्यक्ति अपने परिजन के निधन के बाद आंखों को दान करना चाहता है, तो वह तुरंत 1919 पर कॉल कर सकता है। आईबैंक के डॉक्टर तुरंत पहुंचते हैं। 4 से 6 घंटे के अंदर कॉर्निया निकालना होता है। डोनेट आईज को चार दिन तक प्रिजर्व रखा जा सकता है। हालांकि, इससे पहले आंखों को ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है।

परिजन के निधन के लोगों को आई डोनेट के लिए आगे आना चाहिए। यह सबसे बड़ा पुण्य है। यदि समय से आईबैंक को सूचित करते हैं, तो टीम तुरंत पहुंचती है।

डॉ। नीलिमा मेहरोत्रा, हेड ऑफ डिपार्टमेंट ऑप्थोमॉलजी एंड डायरेक्टर आईबैंक एसआरएमएस