वह महज आठ साल की थीं, जब उन्होंने अने दून के सभी फ्रेंड्स का साथ छोड़ दिया था. उनका बचपन आज भी उनके जेहन में ताजा है. आज जबकि वह इतने बड़े मुकाम पर पहुंच गई हैं तो दून में बिताए हुए वह पल बहुत मिस करती हैं. देश में पहली बार आयोजित होने जा रही फार्मूला वन इंडिया रेस में वह एक टीम की एमडी के तौर पर शिरकत कर रही हैं. उनकी स्विस बेस्ड टीम सौबर को लेकर जीत की तमाम संभावनाएं जताई जा रही हैं.

मेल नहीं female का राज

फार्मूला वन के इतिहास में आज तक हर महत्वपूर्ण पद पर केवल पुरुषों का ही राज होता था. ड्राइवर से लेकर इंजीनियर तक और क्रू से लेकर ट्रैक पर काम करने वाले हर ऑफिशियल तक केवल पुरुष को ही स्थान दिया जाता था. दून की बेटी मनीषा नारंग को दुनिया की किसी भी एफ-वन टीम में पहली वुमन बॉस बनने का गर्व प्राप्त हुआ है. उनकी टीम स्विस बेस्ड है. मोटो स्पोट्र्स जैसे महंगे गेम में कॉम्पिटीशन के बीच मनीषा नारंग अपने काम को बखूबी अंजाम दे रही हैं. 40 वर्षीय मनीषा का कहना है कि वह अपने काम को ईजीली करती हैं और महिला होने के नाते खुद पर किसी भी तरह का एक्सट्रा प्रेशर महसूस नहीं करती हैं. उनका तर्क है कि वह बखूबी जानती हैं कि सक्सेस मंत्रा क्या है. यूनिवर्सिटी ऑफ विएना से लॉ की डिग्री प्राप्त करने वाली मनीषा कहती हैं कि उनका लॉ बैकग्राउंड भी उनके इस काम में काफी हेल्प करता है.

क्या बात है boss!

8 साल की उम्र में दून से विदाई

मनीषा नारंग जब आठ साल की थी तो उनके पैरेंट्स दून से विएना में वर्क करने के लिए शिफ्ट हो गए थे. उनका कहना है कि यह उनके लिए मुश्किल समय था, क्योंकि वहां की लैंग्वेज समझने के लिए उन्हें दो साल का वक्त लगा है. उन्हें उस दौरान क्लास में जाने और बिहेव करने का भी कोई आइडिया नहीं था. हालांकि उनका ओरिजनल नेम मनीषा है, लेकिन विएना में  साथी उन्हें मोनीषा कहकर पुकारने लगे. इसके बाद उनकी पहचान इसी नाम से बन गई. मनीषा का कहना है कि वह आज भी दून की उन गलियों को और यहां बिताए गए अपने उस वक्त को बहुत मिस करती हैं.

अपने घर में पहला मुकाबला

भारत में 28 से 30 अक्टूबर के बीच ग्रेटर नोएडा के बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट में आयोजित होने जा रही इंडियन ग्रैंड प्रिक्स उनके लिए और भी रोमांच से भरपूर है. अपने घर में यह उनका पहला ऐसा मुकाबला है, जिसमें वह बॉस के तौर पर पार्टीसिपेट कर रही हैं. मनीषा का कहना है कि यह उनके लिए बेहद गर्व का पल है. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि नई दिल्ली और देहरादून में उनके तमाम रिश्तेदार हैं, जिनसे वह मिलना चाहती हैं, लेकिन टाइट शेड्यूल होने की वजह से यह काम आसान दिखाई नहीं दे रहा है.

दून से F1 तक का सफर

दून से अपनी प्राइमरी एजूकेशन लेने के बाद मनीषा के पैरेंट्स विएना शिफ्ट कर गए थे. विएना में आगे की एजूकेशन लेने वाली मनीषा ने यूके से लॉ की डिग्री ली. इसके बाद वह यूनाइटेड नेशंस और जर्मनी व आस्ट्रिया की लॉ फम्र्स में अपनी सेवाएं दी. इसके बाद मनीषा ने 1998 में फ्रिज कैसर ग्रुप के साथ एफ वन के सफर की शुरुआत की. यह ग्रुप रेड बुल सौबर एफ वन टीम के लीगल और कारपोरेट अफेयर्स को हैंडल करता है. इसके बाद 2000 में वह हेड ऑफ द लीगल डिपार्टमेंट चुनी गई. लगातार अपनी बेहतर सेवाओं के चलते वर्ष 2010 में उन्हें मैनेजिंग डायरेक्टर का पद मिला. मनीषा का कहना है कि वह इस बात से कतई इत्तेफाक नहीं रखती हैं कि एक महिला मोटो स्पोट्र्स में बड़े ओहदे पर काम नहीं कर सकती. उनका कहना है कि आज भी दुनिया में तमाम गल्र्स हैं जो कि इसे कॅरियर के तौर पर चुनना चाहती हैं, लेकिन फैमिली सपोर्ट न मिलने के चलते वह बीच में ही छोडऩे को मजबूर हो जाती हैं.

Profile

Date / place of birth: 10th May 1971 / Dehradun, India   

Nationality: Austrian   

Marital status: Married to Jens, one son (2002), one daughter (2005)   

Hobbies: Yoga, tennis, opera   

1990-1995: Law degree at the University of Vienna (AT), qualified as Magister iuris

1995: Research assistant at the UN Organisation for Industrial Development in Vienna; research work for the UN Commission for International Trade Law in Vienna

1996: Master of Law, International Business Law, at the London School of Economics (GB)   

1998/1999: Fritz Kaiser Group, legal and corporate affairs of the Red Bull Sauber F1 Team.

2000: Sauber Group, Head of the Legal Department   

2001: Member of the Board of Management    

From January 2010: CEO Sauber Motorsport AG