हालांकि इन बवालों के पीछे छिपी राजनीति को पुलिस भी समझ रही है और आम लोग भी, लेकिन संडे को होने वाली पोलिंग को देखते हुए स्थिति संवेदनशील है। इसलिए मेरठ में पुलिस और प्रशासन के लिए चुनाव शांतिपूर्वक कराना चुनौती बन गया है.

फेसबुक की राजनीति

निकाय चुनावों के चलते शहर के कुछ नेताओं के लिए फेसबुक सोशल प्लेटफॉर्म की जगह पॉलिटिकल प्लेटफॉर्म बन गई है। पहले एक आपत्तिजनक फोटो को लेकर और फिर बाद में एक कमेंट को लेकर शहर में बवाल करने की कोशिश की गई। फेसबुक पर लगातार एक खास संप्रदाय को टार्गेट किया गया।

नेताओं ने नब्ज पकड़ ली और उन्हें चुनावों में वोटों का पोलराइजेशन करने का मौका मिल गया। लेकिन ये बवाल सुनियोजित ढंग से रात के अंधेरे में मेरठ में ही हो रहे हैं। पर सूबे के दूसरे जिलों से इस तरह के किसी बवाल की सूचना नहीं है।

पुलिस रही नाकाम
चुनावी मौसम में फेसबुक को लेकर सिटी में उठे बवाल पर पुलिस का रवैया लगातार ढीला रहा। पुलिस उस आरोपी को पकड़ पाई जिसने फेसबुक पर आपत्तिजनक सामग्री डाली और न उन लोगों को पकड़ पाई जिन्होंने बवाल को हवा दी। साइबर क्राइम के एक्सपर्ट फेसबुक के आरोपी को खोजने में लगे हैं।

चार दिन में पुलिस फेसबुक प्रोफाइल के यूजर का पता नहीं लगा पाई और चौथे दिन फिर हंगामा खड़ा हो गया। केशव कौशिक नाम का जो आरोपी मिला वह फर्जी निकला। और वह आईडी भी बंद हो गई। दो लोगों को हिरासत में भी लिया गया, लेकिन सफलता न मिलते देख पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया।

चुनाव में न हो जाए पंगा
वोटिंग में एक दिन का समय बचा है। और फेसबुक सिटी पुलिस के लिए थ्रेट बनकर खड़ी है। फेसबुक प्रकरण से नेता वोटों का पोलराइजेशन करने में काफी हद तक सफल रहे, लेकिन वोटिंग के दिन फेसबुक फिर बवाल न करा दे। देखना यही है कि प्रशासन फेसबुक कॉन्ट्रोवर्सी को फिर खड़े होने से कैसे रोकता है।