लंगड़ा ही सही लोकतंत्र आ गया
'लंगड़ा ही सही लोकतंत्र आ गया' 'बिहार का सुदूर अतीत बहुतों को गर्वबोधक जंचता है, पर इसका आज तो नकारात्मक हासिलों से लबरेज हुआ जाता है' कुछ ऐसी ही टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं डॉ मुसाफिर बैठा। डॉ बैठा काउंसिल में असिस्टेंट के पद पर काम करते हैं। उनके साथ ही यहां काम करते हैं अरुण नारायण। अरुण नारायाण दरअसल पढऩे-लिखने के अलावा रंगकर्म से भी जुड़े रहे हैं। इन दोनों को अलग-अलग कारण बताकर लास्ट सैटर डे को सस्पेंड कर दिया गया। इन दोनों लोगों को काउंसिल सेक्रेटेरिएट की ओर से एक-एक सस्पेंशन लेटर थमाया गया है।

लेटर एक, पर मजमून थोड़ा जुदा-जुदा
दोनों की लेटर में मजमून अलग-अलग है। डॉ बैठा को दिए गए लेटर में लिखा गया है कि डॉ बैठा को काउंसिल के अफसरों के विरुद्ध असंवैधानिक भाषा का प्रयोग करने और 'दीपक तले अंधेरा, यह लोकोक्ति जो बहुत से व्यक्तियों, संस्थाओं और सत्ता प्रतिष्ठिानों पर पर लागू होती है, विधान परिषद में नौकरी करता हूं, वहां विधानों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं', इस तरह की टिप्पणियां करने के कारण तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है।

क्या सच्चाई कुछ और है
हालांकि सूत्रों की मानें, तो काउंसिल में डॉ बैठा के खिलाफ कई कारणों से हवा बन रही थी। बताया जाता है कि डॉ बैठा ने कुछ दिनों पूर्व अपने जीपीएफ से लोन के लिए आवेदन किया, तो उन्हें जानकारी दी गई कि उनका जीपीएफ एकाउंट लगभग छह, सात साल से अपडेट नहीं है। जब इसका कारण उन्होंने जानना चाहा, तो यहां उनकी ही गलती बताई गई। इस मामले से आहत डॉ बैठा ने उसी दिन फेसबुक के स्टेटस पर लिखा 'दीपक तले अंधेरा'। लेकिन दीपक तले अंधेरा लिखने की सजा इतनी महंगी होगी, इसका अंदाजा उन्हें भी ना था।

चेक बुक की हेराफेरी या
अरुण नारायण का मामला थोड़ा अलग है। काउंसिल ने अरुण पर आरोप लगाया कि उन्होंने काउंसिल के एक्स चेयरमैन प्रो अरुण कुमार के नाम से आए चेकबुक के साथ हेराफेरी की है। अरुण नारायण को मिले लेटर में आगे लिखा गया है कि इस हाउस के सदस्य प्रेमकुमार मणि की सदस्यता समाप्त करने के संबंध में सरकार और सभापति के विरुद्ध असंवैधानिक टिप्पणी देने के कारण तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है। डॉ बैठा और अरुण नारायण को जो सस्पेंशन लेटर जारी किए गए हैं, वे काउंसिल के चेयरमैन ताराकांत झा के आदेश पर जारी हुए हैं।

तो क्या जानकारी मांगना जुर्म है?
काउंसिल के सोर्सेज की मानें, तो अरुण नारायण ने 2005 में असेंबली में ऐज ए असिस्टेंट ज्वाइन किया था। उनकी सर्विस तीन साल में कंफर्म होनी थी, लेकिन हमेशा टाल दिया जाता रहा। कोई रास्ता ना सूझने पर उन्होंने आरटीआई से कंफर्मेशन के संबंध में जानकारी मांगी। मामला दस दिन पहले का है। इसी बीच, फेसबुक पर प्रेमकुमार मणि से रिलेटेड उनकी टिप्पणी उनके लिए परेशानी का सबब बन गई।

अपने आप में पहला मामला
सोशल नेटवर्किंग साइट पर बेबाक टिप्पणी करने के लिए किसी के सस्पेंशन का यह पहला मामला है। मुसाफिर बैठा एक सजग साहित्यकार और जगे हुए इंसान हैं। डॉ बैठा फेसबुक पर जितना सक्रिय हैं, उससे कम वे साहित्य जगत में नहीं हैं। देश की कई पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख और कहानियां प्रकाशित होते रहे हैं। हाल ही में उनका एक पॉयट्री कलेक्शन पब्लिश्ड हुआ है 'बीमार मानस का गेहÓ। उन्होंने 'दलित साहित्य और हिन्दी दलित आत्म कथाएं' सब्जेक्ट पर पीएचडी की है। मजेदार पहलू यह है कि डॉ बैठा इससे पहले कॉपरेटिव अफसर हुआ करते थे। पढऩे-लिखने के शौक के कारण उन्होंने अफसर की नौकरी छोड़ असिस्टेंट की नौकरी ज्वाइन की, क्योंकि यहां लिखने की स्वतंत्रता थी। पर, यही लिखना-पढऩा अब जी का जंजाल बन गया है। अरुण नारायण की गलती भी कोई बड़ी गलती नहीं है। पर, फिलहाल दोनों सस्पेंड हैं और ये जानने की कोशिश में हैं कि क्या जिस देश में बोलने की स्वतंत्रता है, उस देश अपने मन की कहने की क्या इतनी बड़ी सजा हो सकती है?

हम तेरे साथ हैं
जिस फेसबुक पर गवर्नमेंट के विरुद्ध कमेंट करने के लिए डॉ मुसाफिर बैठा और अरुण नारायण को सस्पेंड किया गया, उसी फेसबुक पर इनके फेवर में एक सिग्नेचर कैंपेन शुरू किया गया है। इसे बिहार के गवर्नर को सौंपा जाएगा। इस निर्णय को अमल में लाने के लिए 18 सितंबर को दिल्ली के प्रेस क्लब में इंटरलेक्चुअल्स की एक मीटिंग अरेंज कर यह फैसला लिया गया। इंटरलेक्चुअल्स 23 सितंबर को दिल्ली स्थित बिहार भवन के बाहर प्रदर्शन करेंगे और इसी प्रदर्शन के बाद अपना मेमोरेंडम बिहार के गवर्नर को सौंपेंगे।

मुसाफिर बैठा का निलंबन राइट ऑफ प्राइवेसी का उल्लंघन है। सोशल साइट पर की गई टिप्पणी एक तरह से अपने लोगों के बीच की गई टिप्पणी है। इसे वही लोग पढ़ पाते हैं, जो केवल और केवल जान-पहचान के होते हैं। इसके अलावा उन्हें अपनी बात कहने का भी मौका दिया जाना चाहिए था। नेचुरल जस्टिस के तहत सबों को अपनी बात रखने का अधिकार है।
इब्राहिम कबीर
एडवोकेट, पटना हाईकोर्ट