क्यों नही छिपाएं सच

पूरे देश की नजर इस वक्त उत्तराखंड पर लगी है। हजारों लोग अपनों की तलाश में भटक रहे हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्यों उत्तराखंड सरकार को लापता लोगों की जानकारी देने में इतनी देर लगी। साथ ही क्यों सरकार मौत का सही-सही आंकड़ा देने में असमर्थ है। दरअसल अभी तक जो आंकड़ें दिए जा रहे हैं वो सब अनुमान पर आधारित हैं। क्योंकि सरकार के पास कोई ऐसा तंत्र ही विकसित नहीं है कि कोई भी ठोस डाटा या जानकारी दी जा सके।

खुद ही व्यवस्था की खत्म

आंकड़ों के खेल में उत्तराखंड सरकार की खूब फजीहत हो रही है। सरकार के अपने मंत्री और संतरी दोनों इस फजीहत की आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। अपनी फजीहत करवाने में खुद सरकार ने ही व्यूह रचना कर डाली थी। इसकी नींव पड़ी थी इसी साल यात्रा शुरू होने से पहले।

खत्म कर दिया रोटेशन सिस्टम

दरअसल पिछले साल तक चार धाम यात्रा पर जाने के लिए ऋषिकेश को बेस कैंप बनाया जाता था। यहां से संयुक्त रोटेशन प्रणाली के तहत हजारों बसों का संचालन होता था। यहां बकायदा यात्रियों का रजिस्ट्रेशन होता था। बसों को परमिट दी जाती थी। यात्रियों का डाटा रिकॉर्ड रखा जाता था। इसके अलावा छोटी गाडिय़ों की भी प्रॉपर मॉनिटरिंग की जाती थी। इस बार सरकार के अपने लोगों ने ही इस रोटेशन सिस्टम को खत्म करवाने में बड़ी भूमिका निभाई।

क्या है रोटेशन सिस्टम

करीब चार दशक पूर्व वर्ष 1972 से संयुक्त रोटेशन प्रणाली के तहत श्रद्धालु चारधाम यात्रा करते थे, जिनका रजिस्ट्रेशन ऋषिकेश में किया जाता था। वर्तमान सरकार की गैर जिम्मेदाराना नीति के कारण संयुक्त रोटेशन प्रणाली में फेरबदल कर दिया गया। नई व्यवस्था में कोई भी कंपनी बिना नंबर के यात्रियों को कहीं से भी बुक कर सीधे यात्रा पर ले जा सकती थी। सबसे अधिक फायदा पहुंचाने का काम किया गया हरिद्वार के लिए।

गेट सिस्टम होता तो बचती जान

गंगोत्री जाने के लिए भटवाड़ी व उत्तरकाशी में, यमुनोत्री के लिए बड़कोट, केदारनाथ के लिए गुप्तकाशी और बद्रीनाथ के लिए पांडुकेश्वर और जोशीमठ में गेट सिस्टम होता था। गेट सिस्टम होने से मंदिर में उतने ही श्रद्धालु पहुंचते थे, जितनों की वहां व्यवस्था होती थी। रोटेशन सिस्टम में छेड़छाड़ के कारण यह व्यवस्था भी खत्म हो कर दी गई। इस साल की यात्रा में गेट सिस्टम को बंद कर दिया गया और मनमाने तरीके से लोग अपनी गाडिय़ां लेकर चारों धाम में पहुंचने लगे। रोटेशन सिस्टम में छेड़छाड़ के कारण सरकार के पास कोई डाटा ही नहीं रहा जिससे यह पता चल सके कि इस वक्त चार धाम पर कितनी गाडिय़ां गईं और उसमें कितने यात्री गए। साथ ही यह भी पता नहीं चल सका कि कितने लोग कहां से आए थे। उनमें से कितने यात्रियों को बचाया जा सका और कितने लापता हैं।

बॉक्स लगाएं.सरकारी आंकड़ों में पांच हजार यात्री

जब तक चारधाम यात्रा मात्र संयुक्त रोटेशन सिस्टम के माध्यम से चलती थी तो प्रत्येक वर्ष लगभग ढ़ाई से तीन लाख लोग चारधाम यात्रा करते थे। इनका ठोस डाटा भी मौजूद है। इस वर्ष के सरकारी आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि संयुक्त रोटेशन के अंतर्गत मात्र पांच हजार लोगों ने यात्रा की है।  

बॉक्स लगाएं

क्यों कर दिया रोटेशन सिस्टम में छेड़छाड़?

दरअसल इस साल जब यात्रा सीजन की तैयारी शुरू हुई उसी वक्त रोटेशन सिस्टम को लेकर खूब बहसबाजी हुई। तमाम लोग इस सिस्टम के विरोध में खड़े थे, जबकि कुछ लोग पुरानी व्यवस्था के प्रति सजग थे। जानकार बताते हैं कि रोटेशन सिस्टम में छेड़छाड़ के पीछे दलाली का सबसे बड़ा खेल था। इस सिस्टम के हटने से कोई भी एजेंट कहीं से भी गाड़ी बुक कर चार धाम यात्रा पर श्रद्धालुओं को ले जा सकता था। इसमें भी सबसे बड़ा गोलमाल हरिद्वार को लेकर था। यहां के ट्रेवल एजेंट ही चाहते थे कि सिस्टम को खत्म किया जाए और हरिद्वार से भी यात्रा शुरू की जा सके। हुआ भी यही। हरिद्वार विधानसभा क्षेत्र से मंत्री मंडल में दखल रखने वाले कद्दावर मंत्री और पूर्व मंत्री की कृपा हरिद्वार के एजेंट्स पर खूब बरसी। मंत्रियों के दबाव में ऋषिकेश से संचालित होने वाली संयुक्त रोटेशन प्रणाली भंग कर दी गई। इसी बीच मई महीने में रोटेशन प्रणाली सिस्टम को पूर्व की तरह चालू रखने की मांग एक बार फिर से शासन तक पहुंची। ट्रांसपोर्ट कंपनियों ने रोटेशन व्यवस्था भंग होने से आने वाली परेशानियों से जब मुख्य सचिव को अवगत कराया तो उन्होंने एक सरकारी अधिकारी की अध्यक्षता में समिति बनाने का फैसला किया। साथ ही रोटेशन सिस्टम को पूर्व की तरह चालू रखने पर सहमति दे दी। हालांकि तब तक इस सिस्टम में काफी छेद हो चुके थे। मुख्य सचिव ने रोटेशन सिस्टम तो लागू रखा, लेकिन हरिद्वार के एजेंट्स को भी यात्रा संचालित करने की अनुमति मिल गई। साथ ही सबसे बड़ा खेल यह हुआ कि ऋषिकेश और हरिद्वार म्यूनिशपल से भी आसानी से रजिस्टे्रशन शुरू कर दिया गया। पहले सिर्फ ऋषिकेश रोटेशन कार्यालय से ही रजिस्टे्रशन होता था।

तो क्यों बनाई समिति

जब मई मंथ में रोटेशन सिस्टम पर विवाद हुआ तो इस पर नजर रखने के लिए आनन फानन में एक समिति गठित कर दी गई। इस समिति का अध्यक्ष एसडीएम ऋषिकेश रामजीशरण को बनाया गया। सदस्य सचिव एआरटीओ ऋषिकेश शैलेश तिवारी, सीओ ऋषिकेश महिपाल सिंह व ओएसडी  यात्रा प्रशासन वाईके गंगवार को इस समिति का सदस्य बनाया गया। इसके अलावा समिति में रोटेशन से जुड़ी 9 कंपनियों के एक-एक सदस्य भी शामिल किए गए। हालांकि यह महज खानापूर्ति थी, क्योंकि रजिस्ट्रेशन ऋषिकेश और हरिद्वार म्यूनिसिपल से हो रहा था। इसके अलावा लोग मनमाने तरीके से चारधाम यात्रा करने पहुंच रहे थे, जिनका शायद ही कहीं रजिस्ट्रेशन होता होगा। इसी के साथ पहाड़ों में गेट सिस्टम भी ध्वस्त हो गया। परिणाम पूरे देश के सामने है कि आज तक न तो यात्रियों का सही आंकड़ा मिल सका है और न ही मृतकों और लापता लोगों का।

बॉक्स लगाएं

यह तो होना ही था

यूपी सरकार के समय चारधाम यात्रा में कुछ ध्यान दिया जाता था, लेकिन उत्तराखंड बनने के बाद यहां के प्रशासन ने चाारधाम यात्रा की व्यवस्था को नजर अंदाज कर दिया। एक जगह रजिस्ट्रेशन होता और गेट सिस्टम लागू होता था। आज यह सिस्टम होता तो शायद कई लोगों की जान बचती और कितने लोग यात्रा पर गए थे इसके आंकड़ो का भी पता चल पाता। कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकारी मशीनरी ने वर्षों पुराने सिस्टम से छेड़छाड़ कर दी। इसी का परिणाम है कि आज हमारे पर सही डाटा उपलब्ध नहीं है।

-बृजभानू प्रकाश गिरी,

प्रशासनिक अधिकारी, संयुक्त रोटेशन सिस्टम