जरूरी नहीं कि हर काम में सफलता मिले

हम हर दिन रोजमर्रा के काम को लेकर बहुत सारे प्रयास करते हैं. जरूरी नहीं कि हर काम में सफलता मिले. इसका मतलब यह नहीं कि हम हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाएं. ऐसा करते भी नहीं. फिर कुछ बड़े मामलों में हम ऐसा असफलता को गले से क्यों लगा लेते हैं? अब हेनरी फोर्ड को ही ले लीजिए. उन्होंने अलग-अलग तरह के पांच तरह बिजनेस में हाथ आजमाया. सबमें उन्हें भारी घाटा हुआ. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और वाहन का छठवां धंधा शुरू किया. आज फोर्ड का नाम पूरी दुनिया जानती है.

असफलता से मिली प्रेरणा, बनाई सीढ़ी

अब आप थॉमस अल्वा एडिसन को ले लीजिए. दुनिया को रौशन करने के लिए बल्ब का आविष्कार करने वाले इन महाशय को भला कौन नहीं जानता. 1000 असफल प्रयास के बाद वे बल्ब बना सके थे. हर असफलता से हार मान कर बैठ जाने की बजाए वे बल्ब बनाने में लगे रहे. एक सज्जन ने उनकी असफलता पर तंज कसते हुए पूछा, '1000 बार असफल हुए इससे क्या फायदा मिला?' तो एडिसन ने तपाक से जवाब दिया, 'मैं अब ये जान गया हूं कि इन 1000 तरीकों से तो बल्ब नहीं बनाया जा सकता.' और उनके अगले प्रयास ने दुनिया को रौशन करने वाला बल्ब दे दिया.

हर एक व्यक्ति होता है जीनियस

अब अल्बर्ट आइंस्टीन को ही ले लीजिए वे 4 साल की उम्र तक कुछ बोल नहीं पाते थे. इतना ही नहीं 7 साल की उम्र तक वे एक अक्षर भी नहीं पढ़-लिख पाते थे. सब उन्हें मंद बुद्धि समझते थे. लेकिन सापेक्षता का सिद्धांत देने वाले इस साइंटिस्ट को भला कौन नहीं जानता. आइंस्टीन का कहना था कि हर एक व्यक्ति जीनियस होता है. लेकिन उसका फील्ड दूसरे से अलग होता है. जिस दिन हम सबको उसके हिसाब से कसौटी पर कसने लगेंगे दुनिया में काबिल लोगों की कमी नहीं रहेगी. लेकिन हमारी परीक्षा पद्धति ऐसी है कि हर किसी की काबिलियत मार्क्स और डिग्री से आंकी जाती है.