वाशिंटन (पीटीआई)। एक रिसर्च से पता चला है कि मलेरिया, निमोनिया और अन्य बड़ी बीमारियों की इलाज के लिए ज्यादातर नकली और घटिया दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है और इससे दुनियाभर में हजारों बच्चों की मौत हो जाती है। सीएनएन ने अपनी एक रिपोर्ट में सोमवार को एक शोध का हवाला देते हुए बताया कि खराब क्वालिटी या नकली दवाओं से हर साल हजारों बच्चे मर रहे हैं। रिपोर्ट के को-ऑथर और अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ का फोगार्टी इंटरनेशनल सेंटर में सीनियर वैज्ञानिक सलाहकार जोएल ब्रेमन ने कहा, 'हम 300,000 ऐसे बच्चों के बारे में जानते हैं, जो अपराधियों द्वारा वितरित की गई नगली और घटिया क्वालिटी की दवाओं से मरे हैं।'

घटिया दवाओं की बढ़ रही संख्या

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने तीन प्रकार के गलत और घटिया मेडिकल प्रोडक्ट्स को परिभाषित किया है। 'गलत मेडिकल प्रोडक्ट' इन दवाओं में जानबूझकर अपनी पहचान यानी सोर्स या कम्पोजीशन को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। 'घटिया मेडिकल प्रोडक्ट' ये रेगुलेटेड दवाएं हैं, जो किसी तरह गुणवत्ता मानकों को पूरा करने में सफल नहीं रहती हैं, उदाहरण के लिए, इन मेडिसिन के अंदर निर्धारित दवाओं की मात्रा कम होती हैं, इसलिए ये बेअसर होने के साथ मानकों पर खरा नहीं उतरती हैं। 'अनरजिस्टर्ड  या बिना लाइसेंस की दवाएं', ये मेडिसिन अनटेस्टेड और किसी संस्था द्वारा अप्रूव नहीं होते हैं। रिपोर्ट में ब्रेमेन और उनके सह-लेखकों ने बताया कि गलत और घटिया दवाओं की संख्या बढ़ रही है। सीएनएन ने ब्रेमेन के हवाले से बताया कि 2008 में, नकली दवाओं पर नकेल कसने वाले ड्रगमेकर की टीम 'फाइजर ग्लोबल सिक्योरिटी' ने 75 देशों में अपने 29 उत्पादों की गलत मेडिकल प्रोडक्ट के रूप में पहचान की। इसके 10 साल बाद फाइजर ने 113 देशों में 95 फेक प्रोडक्ट्स पाया, जो बड़े खतरे का संकेत है।

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