- फसल की बर्बादी के बाद खेत में ही सड़ रहा है गेहूं

- किसानों के घर में खाने के लाले पड़े, गेहूं बुआई का मूल धन भी नहीं निकल रहा

BAREILLY: आंवला और दातागंज तहसील के बीच स्थित गांव गहर्रा में किसान बाबूराम रहते हैं। इस बर्बादी ने उनको जिंदगी भर न भरने वाले जख्म दे दिए। बाबूराम के चार बेटे हुआ करते थे, लेकिन अब उनके तीन बेटे ही है। फसल की बर्बादी के सदमे में एक बेटे ने उनका साथ छोड़ दिया। सात मार्च को उनके बेटे माखन की सदमे से मौत हो गई। माखन के चार लड़कियां और एक दुधमुंहा बच्चा है। मौत के बाद ठीक ढंग से घर का चूल्हा भी नहीं जल पाया है। जवान बेटे की मौत और बर्बादी ने बाबूराम को तोड़कर रख दिया है। आलम यह है कि घर में गेंहू का दाना तक नहीं है। बातचीत में वह अपने अंदाज में कहते हैं कि अब जीने की तमन्ना ही नहीं रह गई है।

गेंहू के दाने बीनकर जल रहा है चूल्हा

बातचीत में पता चला कि घर में गेहूं का एक दाना तक नहीं है। जो फसल बची हुई है वह खेत में ही पड़ी हुई है। कटाई और कटी फसल से गेहूं निकालने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे तो माखन की पत्‍‌नी लज्जावती और उसके छोटे बच्चे खेत से गेहूं के दाने बीनते हैं, तब कहीं जाकर घर में दो-चार वक्त में एक बार चूल्हा जल पाता है। परिवार के लिए खाने के लाले तो पड़े ही साथ ही दुधारू जानवर को खिलाने के लिए चारा नहीं बचा है। बाबूराम बताते हैं कि जब से बेटे की मौत हुई है भैंस ने दूध देना बंद कर दिया है। बेटा ही चारे का जुगाड़ करता था। अब तो घर में चारा भी नहीं बचा है। रोजाना भैंस 8 किलो दूध देती थी। अब दूध देना बंद कर दिय है।

पूरे गांव की कहानी कुछ ऐसी ही है

यह कहानी सिर्फ बाबूराम की ही नहीं है। गांव में जिस किसान के घर जाएंगे, वहां पर बर्बादी के कुछ ऐसे ही हालत मिल जाएंगे। बस, फर्क होगा तो दर्द में। थोड़ा कम या फिर ज्यादा। कुदरत की मार ने किसानों को तोड़ दिया है। उनको समझ ही नहीं आ रहा कि क्या करें, क्या न करें। इस बर्बादी पर भी सिर पर कर्ज की तलवार लटक रही है।

न उम्मीद न आस

गांव में हालत यह है कि बच्चे भूख से बेहाल है। दूध की जगह पर मां उनको चाय बनाकर दे रही है, ताकि बस पेट की भूख खत्म हो जाए। टूटे किसानों की हालत यह है कि इस बर्बादी के साथ ही अगली बर्बादी की आहट भी उनको साफ नजर आ रही है। क्योंकि इस बार अब उनके पास इतने पैसे भी नहीं बचे की वह अगली फसल की बुआई की तैयारी कर सकें। शासन प्रशासन की बेरुखी ने उनकी बची-खुची उम्मीदों को भी दफन कर दिया है। बर्बादी ने किसानों को ऐसा तोड़ा कि अपनी कहानी बयां करते वक्त कभी फफक कर रो पड़ते हैं तो कभी आक्रोशित हो उठते हैं।

बर्बादी कितनी है, यह मत पूछिए

किसान छोटे लाल से जब नुकसान के बारे में पूछा तो कहा कि, साहब कितनी बर्बादी है यह मत पूछिए। यकीन नहीं होता। बताया कि इस बार बीघा भर की गेंहू की खेती की थी, पूरे खेत में ब्0-भ्0 किलो गेंहू निकल रहा है। स्थिति कितनी खतरनाक है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मजदूर बर्बाद फसल को दूर से देखकर भाग खड़े होते हैं। उनको भी सच्चाई का पता है कि खेत में इतनी भी फसल नहीं बची है कि किसान उनकी मजदूरी अदा कर सकें। ऐसे में खेत में पड़े फसल को न तो कोई काटने वाला मिल रहा है और न ही गेहूं की बालियों को खांदने वाला।

700 का गेंहू, आठ सौ मजदूरी दें क्या

फसल के नुक्सान से किसान को उबरने में काफी वक्त लगेगा। कुछ के हालात ऐसे भी हैं कि पता नहीं वे इस सदमे से उबर भी पाएंगे की नहीं। किसानों के अनुसार मजदूरी को रकम के हिसाब से अनुमान लगाएं तो एक मजदूर कम से कम ख्00 रुपए मजदूरी लेता है। एक बीघे में करीब ब् मजदूर लगते हैं। ऐसे में सीधे 800 रुपए एक दिन की मजदूरी चली जाती है। यह सोचकर ही किसान की आंखें डबडबा जाती हैं कि खेत में बमुश्किल 700 रुपए का ही गेहूं बचा है और कटाई की मजदूरी 800 रुपए पड़ रही है।

जो बच गया है वह भी है खराब

किसानों के अनुसार एक अनुमान के मुताबिक करीब 7भ् से 80 परसेंट फसल बर्बाद हो चुकी है। यदि गहर्रा गांव की ही बात करें तो यहां पर करीब फ्,म्00 लोगों की आबादी है। इनके परिवार का भरण-पोषण करने के लिए दातागंज और आंवला में करीब 900 बीघे खेत है। एक एवरेज के मुताबिक एक परिवार के लिए साल भर में करीब क्0 से क्ख् क्यूंटल गेहूं की खपत होती है। लेकिन फसल इस कदर बर्बाद हुई है कि परिवार का कुछ महीने भी पेट पालना भारी पड़ रहा है। किसानों ने बताया कि गेहूं के एक बाली में करीब 77 गेहूं के दाने निकलते थे। इस बार नुक्सान ने बालियों पर इस कदर कहर बरपाया है कि महज म् से क्0 गेहूं के दाने ही निकल रहे हैं। वह भी अच्छी क्वालिटी के नहीं हैं। उनसे पीसा हुआ आटा काला है और खाने में कड़वा लग रहा है।

प्रशासन के प्रति भरा है गुस्सा

एक तो मौसम की मार तो दूसरी तरफ शासन-प्रशासन की बेरुखी। किसान हर तरफ से मारा जा रहा है। दातागंज तहसील के किसानों ने बताया कि एक महीने पहले एसडीएम, लेखपाल और कानूनगो गांव में आए थे। सभी का हाल देखा और सर्वे भी किया। लेकिन उस सर्वे का क्या हुआ किसी को नहीं पता। तहसील पर पता करते हैं तो कोई इंफॉर्मेशन नहीं दी जाती है। जिसको लेकर किसानों में गुस्सा भरा हुआ है। उन्होंने बताया कि जिनकी फसल बर्बाद हुई उन किसानों की सूची बनाई गई थी। लेकिन वह सूची तहसील में अभी तक नहीं पहुंची है।

बाक्स- बर्बादी ने बदल की गणित

एक अनुमान के मुताबिक एक बीघे के खेत में गेहूं की कटाई के लिए मैक्सिमम चार मजदूर लगाए जाते हैं। एक बीघे में जितना गेहूं पैदा होता है कटाई के लिए उसका ब्0 किलो गेहूं तो मजदूरी में चली जाती है। उसके बाद खंदाई के लिए ट्रैक्टर वाला एक क्यूंटल में ख्भ् किलो गेहूं बतौर मजदूरी ले लेता है। किसानों के मुताबिक एक बीघे खेत में ज्यादा से ज्यादा फ्0 क्यूंटल गेहूं की फसल हो जाती थी। मौजूदा हाल में फसल इस कदर बर्बाद हुई है कि म्0 किलो गेहूं भी नसीब नहीं हो रही है।

इस बार फसल की ऐसी बर्बादी हुई है कि इसके सदमे से मेरे बेटे ने दम तोड़ दिया। उसके पांच बच्चे हैं। अब पूरे परिवार का भरण-पोषण कैसे होगा यही सोचकर दम निकला जा रहा है। घर में खाने का एक दाना नहीं है और सर पर कर्जा चढ़ा हुआ है। अब भगवान ही मालिक है।

- बाबूराम, किसान

जो फसल बच भी गई है वह भी किसी काम की नहीं रही। गेहूं की एक बाली में महज क्0 दाने ही निकल रहे हैं। वह भी इतनी खराब क्वालिटी की है पिसाई के बाद आटा काले रंग का निकल रहा है। खेत में इतना गेहूं भी नहीं बचा कि इसकी कटाई और काटने के बाद गेहूं निकालने की मजदूरी अदा कर सकें।

- ताराचंद, पूर्व प्रधान

एक बीघे खेत में पहले कुंतलों में गेंहू निकलता था। मौसम की ऐसी मार पड़ी कि इस बार बमुश्किल भ्0 से म्0 किलो गेहूं ही निकल पा रहा है। - छोटेलाल, किसान

एक महीने पहले प्रशासन से एसडीएम, लेखपाल और कानूनगो आए थे। पूरे गांव का सर्वे किया, लेकिन उसका कुछ नहीं हुआ। प्रभावित किसानों की लिस्ट बनाई गई थी लेकिन वहां गई किसी को नहीं पता।

- लालता प्रसाद, प्रधान