2 मई: प्रदोष व्रत।
3 मई: मास शिवरात्रि व्रत।
5 मई: गुरु अंगददेव जयंती।
7 मई: अक्षय तृतीया। परशुराम जयंती।
निर्झरिणी
जगाया तो उसी को जा सकता है, जो सो रहा है। जो जागते हुए भी जानबूझकर सोने का बहाना कर रहा है, उसे जगाने से क्या लाभ? -गोस्वामी तुलसीदास
यथार्थ गीता
सदृशं चेष्टते स्वस्या: प्रकृतेज्र्ञानवानपि। प्रकृतिं यांति भूतानि निग्रह: किं करिष्यति।।
सभी प्राणी अपनी प्रकृति को प्राप्त होते हैं। अपने स्वभाव से परवश होकर कर्म में भाग लेते हैं। प्रत्यक्षदर्शी ज्ञानी भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करता है। प्राणी अपने कर्मों में बरतते हैं और ज्ञानी अपने स्वरूप में। जैसा जिसकी प्रकृति का दबाव है, वैसा ही कार्य करता है। यह स्वयंसिद्ध है। इसमें निराकरण कोई क्या करेगा? यही कारण है कि सभी लोग मेरे मत के अनुसार कर्म में प्रवृत्त नहीं हो पाते। वे आशा, ममता, संताप, दूसरे शब्दों में राग-द्वेष का त्याग नहीं कर पाते। जिससे कर्म का सम्यक आचरण नहीं हो पाता।
जानें सभी मासों में क्यों उत्तम है वैशाख? मात्र जल दान से मिलते हैं ये पुण्य-लाभ