सभी धर्मो में व्यवस्था

मौसम बदलने के साथ ही शरीर में दोष यानी बीमारियां पनपती हैं। ऐसा हमेशा ही होता है। इससे बचने के लिए साप्ताहिक उपवास अपनी सुविधा अनुसार रखना चाहिए। मौजूद समय हाई वायरल का है, इसलिए नौ दिन के उपवास को धर्म के साथ जोड़ा गया है। धर्म के साथ जुड़ी हुई चीजों का कोई विरोध नहीं करता। इसमें पूजा और उपवास दो चीजें मुख्य हैं। ये व्यवस्था सभी धर्मो में अपने अपने हिसाब से की गई है।

पूर्ण शुद्धिकरण

लंघन का मतलब कम खाना लेकर ज्यादा तरल पदार्थ लेने चाहिए। तरल ज्यादा लेने से हमारे शरीर के मेटाबॉलिज्म सिस्टम पर कम से कम प्रेशर पड़ेगा। इससे शरीर की शोधन प्रक्रिया आसानी से हो सकेगी। इन नौ दिनों में कम से कम खाएं और ज्यादा से ज्यादा तरल ग्रहण करें। कम खाने से शरीर को उर्जा भी कम मिलती है। इससे शरीर भारी काम करने लायक नहीं रहता है। इसी कारण व्रत के साथ पूजा पाठ को जोड़ा गया है। पूजा में हम जितना समय देते हैं, मन को उतनी ही शांति मिलती है और मन शुद्ध होता है। यानी की कम खाने से शरीर शुद्ध हो गया और पूजा पाठ से मन।

स्पिरिचुअल हेल्थ

फिजिकल एंड मेटल हेल्थ के साथ ही स्पिरिच्युल यानि आध्यात्मिक हेल्थ भी होती है। ये भी उतनी ही जरूरी है। स्पिरिच्युल हेल्थ के विषय को वल्र्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन ने भी एक्सेप्ट किया है। हलके खानपान से हम शरीर में हलकापन महसूस करते हैं। इससे फिजिकल और स्पिरिच्युल बल को उर्जा मिलती है। इसी से हमारे शरीर में इम्यूनिटी सिस्टम स्ट्रांग होता है। इसके बाद भी अगर कोई दोष या बीमारी होती है तो उसके निवारण के लिए आयुर्वेद समेत अन्य पैथी का सहारा लिया जा सकता है। जिसमें प्रचलित रोगों का समाधान मौजूद है।

स्वाद पर ना जाएं

साल में दो बार होने वाले नवरात्र या साप्ताहिक अवकाश में विधि यानी प्रोसेस पर ध्यान देना जरूरी है। उपवास का अर्थ हलका खाना और ज्यादा तरल पदार्थ ग्रहण करना होता है। इस दौरान दूध, फल, रस या पानी का इस्तेमाल किया जा सकता है। पर आज के समय में उपवास के असली उद्देश्य को लोगों ने अपने हिसाब से बदल दिया है। सिर्फ स्वाद के चक्कर में व्रत के दौरान रोज नए व्यंजन पकाए और खाए जाते हैं। नवरात्रों से लगाव के चलते परंपरा तो निभाई जा रही है लेकिन परंपरा का मकसद कहीं पीछे छूट गया है।

भटक रहे उद्देश्य से

आलू वायु वर्धक होता है, कूटू की तासीर गर्म होती है, तले पदार्थ देर से हजम होते हैं। इन सभी से पेट में जलन और पित्त बढ़ता है। इस दोष बढ़ाने वाले भोजन को उपवास में लेकर हम अर्थ का अनअर्थ कर देते हैं। धर्म से जुड़े लोगों का काम है कि वो समाज को परंपरा और उसके उद्देश्य के बारे में भी बताएं ताकि व्यक्तिगत और समाजिक स्वास्थ्य बना रहे।

इनका यूज करें

उपवास के दौरान शरीर को कम से कम सूप, रस, पानी जैसी चीजों की कम से कम तीन लीटर मात्रा दिन में लें। साथ में लौकी, कच्चा पपीता, गाजर, टमाटर, चुकुंदर, खीरा, मौसमी फलों के साथ अपने खाने की प्लानिंग करें। मेहनत ज्यादा करने वाले लोग खाने में कार्बोहायड्रेट की मात्रा ज्यादा लें। ये लोग सूप, सेंदा नमक, गुड़, चीनी का इस्तेमाल पानी या किसी अन्य तरल पदार्थ में कर सकते हैं। तुलसी, त्रिफला, मुलैठी, काली मिर्च, छोटी पीपल, अदरक का यूज भी खाने या पीने में करें। इससे हमारे शरीर में रोजमर्रा में जमा होने वाले टॉक्सिन पसीने और मल के रास्ते अपने आप बाहर निकल जाते हैं।

कितने तरह का उपवास

प्रातकालीन उपवास - केवल सुबह के समय कुछ न खाना।

रसोपवास - पूरा दिन सिर्फ फलों के जूस पर रहना।

दुग्धोपवास - सिर्फ दूध का सेवन करना।

एकाधरोपवास - दिन में केवल एक समय भोजन करना।

मठोपवास - दिन भर केवल मटठे का सेवन करना।

फलोपवास - दिन भर केवल फलों का सेवन करना।

साप्ताहिक उपवास - सप्ताह में एक दिन उपवास करना।

लघु उपवास - दो-तीन दिन लगातार उपवास करना।

दीर्घ उपवास - लंबे समय तीस से चालीस दिन तक उपवास करना।

जल उपवास - सिर्फ जल पीकर उपवास करना।

"उपवास और नवरात्रों को फैशन बना दिया गया है। जनता बाजारवाद की चमक धमक और स्वाद के चक्कर में सिर्फ परंपरा निभा रही है। पर उपवास का मूल उद्देश्य अभी भी अधूरा है."

-डॉ। वाई पी सिंह, आयुर्वेदाचार्य

"उपवास के दौरान चाय और काफी जैसी चीजों से दूर रहना चाहिए। इन चीजों से पेट में ऐसिड बनता है."

-डॉ। साधना मित्तल, नेचुरोपैथ

"उपवास के दौरान कम से कम खाना और ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिए। इससे शरीर के टॉक्सिन अपने आप निकल जाते हैं."

-डॉ। भावना गांधी, डायटीशियन