नई दिल्ली (पीटीआई)। टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और अन्य आतंकी सगठनों को पैसे मुहैया कराने पर रोक लगाने में सरकार की विफलता के लिए पाकिस्तान को फिर से अपनी 'ग्रे' लिस्ट में रखने का फैसला किया है। सूत्रों ने बताया है कि इसके साथ ही पाकिस्तान को टेरर फंडिंग पर रोक लगाने के लिए सितंबर 2019 तक तक आखिरी मोहलत दिया गया है। एफएटीएफ ने पाकिस्तान से कहा है कि वह आतंकवाद और टेरर फंडिंग से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय चिंताओं को दूर करने के लिए अपने देश में विश्वसनीय, सत्यापित, अपरिवर्तनीय और ठोस कदम उठाये।

अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने जाहिर की चिंता

एफएटीएफ के प्रवक्ता ने अपने बयान में कहा, 'पाकिस्तान को आतंकवाद पर सख्त कार्रवाई और टेरर फंडिंग पर रोक लगाने के लिए जनवरी से मई 2019 का समय दिया गया था लेकिन इसमें वह विफल रहा। इसलिए हमने उसे फिर से 'ग्रे' लिस्ट में रखने का फैसला किया है।' बता दें कि एफएटीएफ का यह कदम पाकिस्तान की आर्थिक समस्याओं को और बढ़ा देगा, जो सभी अंतरराष्ट्रीय संस्था से वित्तीय सहायता मांग रहा है। इसके साथ एफएटीएफ ने यह भी कहा, 'हमें उम्मीद है कि पाकिस्तान इस साल सितंबर तक आतंकवाद और टेरर फंडिंग पर लगाम कसने के लिए हर तरह के कदम उठाएगा। अगर वह इस बार भी विफल साबित होता है तो उसे इसका नतीजा जाहिर तौर पर भुगतना ही होगा।' बता दें कि मसूद अजहर और हाफिज सईद के खिलाफ पाकिस्तान में एंटी टेरर लॉ के तहत मुकदमा नहीं दर्ज होने और आतंकवाद व टेरर फंडिंग पर रोक नहीं लगाए जाने को लेकर अमेरिका, लंदन और फ्रांस ने गहरी चिंता भी जाहिर की है।

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पिछले साल ग्रे लिस्ट में शामिल हुआ पाकिस्तान

बता दें कि पिछले साल फरवरी में एफएटीएफ ने पाकिस्तान को टेरर फंडिंग लिस्ट में शामिल कर लिया था। इससे पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा था। तब चीन, सउदी अरब और तुर्की ने भी पाकिस्तान का साथ दिया था लेकिन अमेरिका और भारत के आगे पाकिस्तान के तीनों दोस्त काम न आ सके। इससे पहले 2012 में भी पाकिस्तान को इस सूची में डाला जा चुका है।

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