फिल्म थ्री इडियट में रणछौड़ दास का रोल तो आज भी आपके जहन में ताजा होगा। एग्जाम के फियर के चलते किस तरह वह अपनी जगह दूसरे को एग्जाम में बैठाकर डिग्री हासिल करता है, लेकिन ऐसे रणछौड़ दास तो तमाम हैं, जो कि अपनी जगह एग्जाम तो नहीं दिलवा रहे हैं, लेकिन एग्जाम के फियर से घर जरूर बैठ गए हैं। फिर चाहे वह उत्तराखंड बोर्ड हो या सीबीएसई बोर्ड। सब जगह एग्जाम से गायब होने वालों की संख्या निरंतर बढ़ती ही जा रही है।

यूके बोर्ड में सबसे ज्यादा

यूके बोर्ड एग्जाम शुरू हुए अभी महज तीन दिन ही बीते हैं लेकिन प्रदेश ही नहीं दून में भी एग्जाम से दूर भागने वालों की संख्या एक हजार का आंकड़ा छूने लगी है। डीईओ से मिली जानकारी के मुताबिक महज तीन दिन में ही यूके बोर्ड में 10वीं और 12वीं के तकरीबन एक हजार छात्र परीक्षा का बाय-बाय बोल चुके हैं। इसके अलावा सीबीएसई बोर्ड से तकरीबन 300 और आईसीएसई बोर्ड से तकरीबन 300 छात्र एग्जाम के फियर फैक्टर का शिकार हो चुके हैं।

हिंदी में गोल बिंदी

उत्तराखंड बोर्ड एग्जाम्स की शुरुआत हिंदी से हुई। अपनी ही मातृभाषा में परीक्षा से दूर भागने वालों की संख्या नौ सौ पार कर गई। दसवीं में तकरीबन 800 और 12वीं में तकरीबन 100 छात्रों ने हिंदी के पेपर में अपनी अनुपस्थिति दर्ज कराई। इसके अलावा 12वीं के गणित के पेपर में भी 500 से ज्यादा छात्र गायब रहे।

मेडिकल बोले तो फेल

एग्जाम से मुंह मोडऩे वाले स्टूडेंट अब मेडिकल का दांव चल रहे हैं। पर जानकारों की मानें तो इससे खास राहत नहीं मिल पाएगी। स्कॉलर्स होम स्कूल की प्रिंसिपल छाया खन्ना ने बताया कि मेडिकल के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन यह केवल दिलासा दिला सकते हैं पासिंग माक्र्स नहीं। उन्होंने साफ शब्दों में बताया कि इन एग्जाम्स में मेडिकल की वैल्यू सिर्फ फॉर्मेलिटी पूरी करने की है, इससे ज्यादा कुछ नहीं। अगर कोई स्टूडेंट या पैरेंट यह सोचता है कि मेडिकल देने से उसे पासिंग माक्र्स मिल जाएंगे तो वह गलत है। रिजल्ट में सीधे-सीधे वह उस सब्जेक्ट में फेल ही शो किया जाता है। यानी पेपर से बहाना बनाकर भागना पूरे साल को निगल सकता है। यूके बोर्ड में तो बिन बताए एग्जाम से भागने वाले स्टूडेंट्स की संख्या ज्यादा है।