स्कूलों की मनमानी के आगे पैरेंट्स हुए लाचार

हर साल बढ़ने वाली फीस से गड़बड़ाया घर का बजट

ALLAHABAD: मार्च का महीना आते ही पैरेंट्स की टेंशन बढ़ जाती है। ये महीना सबसे अधिक फाइनेंसियल टेंशन देने वाला होता है। इसमें सबसे अधिक टेंशन देती है बच्चों के एडमिशन की चिंता। ये पैरेंट्स की नींद उड़ा देती है। कुछ ऐसा ही नजारा इन दिनों सिटी में देखने को मिल रहा है। प्राइवेट व कांवेंट स्कूलों की लगातार बढ़ती फीस हर साल पैरेंट्स को आर्थिक रूप से परेशान करती है। लेकिन बच्चों के करियर और भविष्य के लिए पैरेंट्स मजबूरी में स्कूलों की मनमानी झेलते हैं।

वसूली के कई हैं फार्मूले

कांवेंट स्कूल बच्चों के पैरेंट्स से अलग-अलग मदों के नाम पर जमकर वसूली करते हैं। सबसे खास ये है कि इनकी रसीद भी पैरेंट्स को नहीं देते हैं। किसी पैरेंट्स ने रसीद मांगी तो धमकाया जाता है कि बच्चे का एडमिशन कहीं और करा लें। इसके बाद पैरेंट्स मजबूरी में स्कूल की मनमानी सहते हैं। स्कूलों की अवैध वसूली को लेकर दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के रिपोर्टर ने कुछ पैरेंट्स से बात की। आशुतोष श्रीवास्तव ने बताया कि इस वर्ष बेटी का नर्सरी में एडमिशन सिटी के फेमस स्कूल में कराया। वहां रजिस्ट्रेशन के नाम पर छ सौ रुपए वसूले गए, लेकिन रसीद पर सिर्फ सौ रुपए लिखा था। एडमिशन के समय एक हजार रुपए एडमिशन फीस के नाम पर लिया गया, लेकिन उसकी रसीद नहीं दी गई। इसके बाद स्कूल प्रशासन की ओर से एडमिशन के नाम पर फिर 26,520 रुपए लिए गए। इसकी रसीद कंप्यूटर से निकाल कर दी गई। इसमें भी सिर्फ 18000 रुपए का जिक्र था। अब वे इस बात को लेकर परेशान हैं कि आखिर स्कूल ने उनसे किस मद में कितने पैसे लिए हैं।

जहां बताएं, वहीं से लें किताब

स्कूलों की मनमानी सिर्फ फीस वसूलने तक ही सीमित नहीं है। स्कूल एडमिशन के समय ही बाकायदा उस बुक सेंटर का नाम बताते हैं जहां से बुक्स लेनी है। आशुतोष बताते हैं कि एडमिशन के बाद स्कूल की ओर से एक स्लिप दी गई। इसमें उस बुक वेंडर का नाम और पता था जहां से बुक्स खरीदनी थी। स्कूल की ओर से साफ कह दिया गया कि कहीं और से बुक्स नहीं लें। अगर कहीं दूसरी शॉप से बुक्स लेते हैं तो उसमें हुए बदलाव की जिम्मेदारी स्कूल की नहीं होगी। अनुपमा बताती हैं कि फीस और बुक्स तक ही नहीं, बच्चों के ड्रेस भी स्कूल खुद ही देते हैं। इसके लिए वे बाकायदा मार्केट से अधिक पैसे वसूलते हैं। अर्चना त्रिपाठी बताती हैं कि उनका भतीजा जिस स्कूल में पढ़ता है, वहां पर बुक्स से लेकर सभी कुछ स्कूल की ओर से ही दिया जाता है। पैरेंट्स हस्तक्षेप का प्रयास करते हैं तो स्कूलों का सीधा जवाब होता है कि कहीं दूसरी जगह एडमिशन करा लें।

वर्जन

स्कूल मनमाने ढंग से हर चीज की कीमत तय करते हैं। स्कूल में एडमिशन के दौरान पैरेंट्स किसी भी प्रकार हस्तक्षेप नहीं कर सकते। पैरेंट्स की मजबूरी होती है कि वे स्कूल की मनमानी सहन करें।

अनुपमा

हम स्कूलों की मनमानी का विरोध नहीं कर सकते, क्योंकि फिर हमारे बच्चे को स्कूल से निकालने का फरमान सुना दिया जाता है। ऐसे में हमारी मजबूरी है कि चुपचाप स्कूलों की मनमानी झेलते रहें।

अजय कुमार

लोकल एडमिनिस्ट्रेशन प्राइवेट स्कूलों पर कार्रवाई नहीं करता। ऐसा क्यों है ये तो वही बता सकते हैं। कई बार देखने में आता है कि अधिकारी खुद ही बच्चों के एडमिशन के लिए इधर-उधर टहलते नजर आते हैं।

लखपत सिंह

मार्च में तो इतनी दिक्कत हो जाती है कि पूछिए मत। बच्चों की फीस के साथ इंकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के साथ ढेरों आर्थिक लोड बढ़ जाता है। हाल ये हो जाता है कि टेंशन के कारण परिवार में तनाव बढ़ जाता है।

वीना