बरेली में डेंगू के खौफ और मलेरिया के डर के साथ जेई ने बढ़ाई उलझनें

बुखार के वायरल, डेंगू, मलेरिया और जेई की शिनाख्त में उलझे डॉक्टर-मरीज

फीवर में मलेरिया और डेंगू की जांचें कराने को मरीज मजबूर, डर नहीं हुआ कम

BAREILLY:

वायरल, मलेरिया, डेंगू और जापानी इंसेफेटाइटिस की दस्तक के साथ ही अब शहर में डर के बुखार चढ़ गया है। स्थिति यह है कि काफी हद तक एक जैसे लक्षण से मिलती जुलती इन बीमारियों ने डॉक्टर भी पूरी तरह से कंफ्यूज हो गए हैं। अब तपा हुआ शरीर लेकर हॉस्पिटल पहुंच रहे हर शख्स को जांच की लंबी चौड़ी पर्ची थमा दे रहे हैं। जिसका असर हॉस्पिटल की पैथोलॉजी और प्राइवेट लैब पर पड़ना शुरू हो गया है। यहां पर जांच की वेटिंग लिस्ट शुरू हो गई है। हालांकि डर को देखते हुए विभाग ने सावधानी बरतने के निर्देश भी जारी कर ि1दए हैं।

फीवर ने दिया कंफ्यूजन

अगस्त के आने के साथ ही शहर में मच्छरों के डंक का डर भी बढ़ गया। मलेरिया, डेंगू और जापानीज इंफेलाइटिस यह तीनों ही बीमारियां मच्छरों से होने वाली बीमारी हैं। इन तीनों ही बीमारियों में मरीज को तेज बुखार आता है। वहीं मानसून सीजन शुरू होते ही वायरल फीवर के केसेज में भी बढ़ोतरी हो गई है। ऐसे में यह क्लीयर नहीं हो पा रहा है कि बुखार वायलर है या फिर मलेरिया, डेंगू या नया खौफ जेई की बीमारी। यही वजह है कि बुखार की जांच कराए बगैर डॉक्टर्स भी वायरल फीवर कहने से बच रहे हैं। वहीं फरीदपुर में जापानी इंसेफेलाइटिस का सस्पेक्टेड केस मिलने के बाद डर का ग्राफ और बढ़ गया है।

करीब दो गुना तक बढ़ी जांच

यूं तो मानसून सीजन शुरू होते ही बुखार, वायरल फीवर और नजला -जुकाम के मरीजों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। मई-जून के मुकाबले जुलाई-अगस्त में डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की ओपीडी में रोजाना औसतन 35-40 फीसदी मरीजों की बढ़ोतरी हुई है। जो वायरल फीवर या किसी भी बुखार से पीडि़त हैं। निजी हॉस्पिटल्स व नर्सिग होम्स में भी बुखार से पीडि़त मरीजों का आंकड़ा तेजी से बढ़ा है। बुखार के मामले बढ़ने से डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की पैथोलॉजी पर भी दबाव बढ़ गया है। ओपीडी में बुखार के मरीजों की वजह महज वायरल फीवर कहकर टाली नहीं जा रही। बल्कि फीवर की वजह जानने को मलेरिया और डेंगू की जांच कराई जा रही। इससे पैथोलॉजी में होने वाली जांचों का रोजाना ग्राफ 250-270 से बढ़कर 380-400 तक पहुंच गया है। जानकार बताते हैं कि प्राइवेट पैथोलॉजी में भी जांच की बढ़ोत्तरी का कुछ यही हाल है।

बाक्स लगाए--

अदर साइड

मरीज भी कहते हैं जांच के लिए

डर का आलम यह है कि हॉस्पिटल में पहुंचने वाले ज्यादातर मरीज भी खुद डॉक्टर से जांच करा लेने की बात कहते हैं। डॉक्टर्स बताते हैं कि कई बार खुद मरीज ही कहने लगते हैं कि जांच करवा लीजिए। क्योंकि, लगातार मलेरिया और डेंगू की खबरों के आने से वह सहमे हुए हैं।

मौसम बना मच्छरों के लिए मुफीद

मानसून का यह सीजन मच्छरों के लिए बीमारियां फैलाने के लिए बेहद मुफीद साबित हो रहा। गर्मी और सर्दी में टेंप्रेचर बेहद गर्म या ठंडा होने से बैक्टीरिया व वायरस के पनपने की संभावना न के बराबर रहती है। लेकिन मानसून सीजन शुरू होते ही मौसम न गर्म रहता है, न ही ठंडा। यह टेंप्रेचर बैक्टीरिया, वायरस और मच्छरों के लिए भी अपनी तादाद बढ़ाने के लिए सबसे अच्छा होता है। वहीं इस मौसम में इंसान की इम्यूनिटी भी कमजोर पड़ जाती है। जिससे बीमारियों से लड़ने की ताकत कम होते ही बैक्टीरिया व वायरस तेजी से हमें अपनी चपेट में लेते हैं।

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रहे अवेयर, दूर रहेगा डर

मानसून सीजन में बुखार आने पर डरने या आशंका से घबराने की बजाय फीवर के लक्षणों पर खास ध्यान देने से भी समय रहते मरीज की जान बचाई जा सकती है। बुखार की जांच कराने व समय पर इलाज देने पर जोर रहना चाहिए। इसके लिए वायरल फीवर, डेंगू, मलेरिया और जेई बीमारी की पहचान करना, इससे बचाव के तरीके अपनाना और इलाज की अहम जानकारी रखने से काफी हद तक मच्छरों के आतंक से निपटा जा सकता है।

मलेरिया

लक्षण- यह बीमारी मच्छरों की स्पीशीज फीमेल एनाफिलीज के जरिए इंसान में फैलती है। इस बीमारी में मरीज को बहुत सर्दी लगने के साथ ही बार-बार तेज बुखार आता है। पसीना आने के बाद बुखार तेजी से उतर भी जाता है। शरीर में कंपकंपी होती है। ज्यादातर शाम को एक तय समय के बाद बुखार का आना लगा रहता है

टेस्ट- ब्लड स्मियर की स्लाइड तैयार कर खून में पैरासाइट होने की जांच होती है। ब्लड टेस्ट कार्ड से भी इसकी जांच होने लगी है।

बचाव - आसपास व घर में मच्छरों की तादाद न बढ़ने दे। इस मच्छर का लार्वा गंदे पानी में पनपता है। इसलिए घर की नालियां रोजाना साफ रखें। उनमें पानी का जमाव न होने दें। हफ्ते में एक बार पानी के बर्तनों, टंकी व कूलर का पूरा पानी खाली करें। साफ कर दोबारा स्टोर करें। टीन के खाली बर्तनों, टायर में बारिश का पानी इकट्ठा न होने दें। जहां पानी का जमाव होने को रोका न जा सके, वहां पानी में केरोसिन या जला हुआ डीजल मिला दें। मच्छरों से बचने के लिए सोते समय नीम या सरसों का तेल लगाएं। मच्छरदानी का यूज जरूर करें।

क्लोरोक्वीन की दवाएं डॉक्टर की सलाह पर रेगुलर खाएं।

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ेंगू

लक्षण- तेज बुखार होना, खांसी-जुकाम, तेज बदन दर्द, सिर दर्द, जोड़ों में दर्द, शरीर में लाल चकत्ते पड़ जाना।

सिचुएशन गंभीर होने पर मरीज को सांस लेने में तकलीफ, सांस फूलना, कमजोरी, शरीर में पानी की कमी और खून का रिसाव होना।

टेस्ट- ब्लड कार्ड से डेंगू की प्राइमरी जांच की जाती है। इससे वायरल फीवर या डेंगू की पुष्टि हो जाती है। एलाइजा रीडर मशीन से आईजीजी व आईजीएम एंटीजन की जांच पॉजिटिव आने पर डेंगू कंफर्म होता है। यदि आईजीजी व आईजीएम में सिर्फ एक ही पॉजिटिव निकले और दूसरा निगेटिव तो तीन बाद दोबारा टेस्ट कराना चाहिए। हेल्दी पर्सन में प्लेटलेट्स काउंट 1.5 से 4 लाख होते हैं। 1 लाख से कम प्लेटलेट्स काउंट होने पर डेंगू की आशंका हाेती है.

बचाव -

डेंगू का मच्छर बेहद साफ पानी में ही अपने अंडे देता है। यह घरों के अंदर पाया जाने वाला मच्छर है, जो दिन में काटता है। इसलिए घरों में कीटनाशक का छिड़काव करें। कूलर, पानी की टंकी व खाली बर्तनों में पानी जमा न होने दें। इन्हें रेगुलर समय पर बदलते रहें। घर के आसपास जहां पानी जमा हो, वहां मिट्टी डाल दें या पानी में केरोसिन या जला डीजल मिला दें। डेंगू का कोई वैक्सीन नहीं। मरीज को पैरासिटामोल दें लेकिन एस्प्रीन, क्रोसिन, फर्टीसोन या डेकाड्रान दवा बिल्कुल न दें। यह दवाएं तेजी से प्लेटलेट्स को कम करती हैं। मरीज को मच्छरदानी में ही सुलाएं। इस रोग में मलेरिया की दवाओं का असर नहीं होता, इसलिए यह दवाएं न दें। इलाके में फॉगिंग कराएं।

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दिमागी बुखार, जापानी इंफेलाइटिस

लक्षण-दिमागी बुखार या जेई एक जानलेवा बीमारी है। जो एक जापानीज इंसेफलाइटिस वायरस से होती है। यह बीमारी बच्चों में ज्यादा होती है। जो वायरस क्यूलेक्स विश्नुई मच्छर के काटने से इंसान में फैलता है। यह बीमारी नॉर्मली तराई एरियाज में, सुअर पालने वाले एरियाज और धान के पुआल वाले एरियाज में ज्यादा फैलती है। इस बीमारी में भी मरीज को तेज बुखार आता है। सिर में दर्द, सुस्ती, बेहोशी आना और मरीज का बहकी बहकी बातें करना इस बीमारी के लक्षण है। कई बार मरीज हिंसक भी हो जाता है.

टेस्ट - जापानी इंफेलाइटिस एक ऐसी बीमारी है, जो जांच कराए जाने पर भी निगेटिव ही आती है। इसलिए इस बीमारी की पहचान आसानी से नहीं हो पाती। बीमारी की पहचान के लिए मरीज के सीएसएफ यानि सेरिब्रो स्पाइनल फ्लूड मतलब रीढ़ की हड्डी का पानी निकालकर इसकी एलाइसा रीडर मशीन से जांच की जाती है।

बचाव - कस्बाई व रूरल एरियाज में घर में और आसपास नीम की पत्ती जलाकर धुआं करें। मच्छरदानी में ही सोंएं, सोते समय सरसों का तेल लगाएं। फुल आस्तीन के कपड़े पहनें। खुद को ढंककर रखें। घर में सुअर का बाड़ा न बनवाएं। सुअरों को जालीदार बाड़े में ही रखें। आसपास पूरी सफाई रखें। पानी की जमाव न होनें दें। बीमारी के लक्षण पहचानते हर नजदीकी सीएचसी, हॉस्पिटल या नर्सिग होम लें जाएं। इलाज में देरी न करें।

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मानसून के साथ ही बुखार के केसेज 30 फीसदी तक बढ़ गए हैं। बुखार के हर मरीज का प्रिकॉशनरी मलेरिया व डेंगू का टेस्ट जरूर कराया जा रहा।

- डॉ। अजय मोहन अग्रवाल, फिजिशियन डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल

यह मौसम बैक्टीरिया और वायरस के लिए ही नहीं बल्कि मच्छरों के रिप्रोडक्शन के लिए भी सबसे बेहतर है। ऐसे में वायरल फीवर और मलेरिया, डेंगू या डेंगू जैसा फीवर की पहचान करना बेहद जरूरी है। मच्छरों से बचाव करें और समय पर इलाज लें।

- डॉ। सुदीप सरन, फिजिशियन

बरेली में डेंगू या जेई का कोई कंफर्म मरीज नहीं मिला है। मलेरिया, डेंगू या जेई से निपटने को अलर्ट जारी किया गया है।

- डॉ। विजय यादव, सीएमओ