सबसे ज्यादा गल्र्स वोटर

बीसीबी में स्टूडेंट्स यूनियन इलेक्शन 24 अक्टूबर को कंडक्ट किया जाएगा। सभी रेग्यूलर स्टूडेंट्स अब वोटर्स की भूमिका में हैं। 13 पदों के लिए कुल 68 कैंडीडेट्स ने नॉमिनेशन कराया है। जिनका फ्यूचर 15,541 वोटर्स के हाथ में है। इसमें गल्र्स की संख्या सबसे ज्यादा है। बीसीबी में 8,547 गल्र्स और 6,994 ब्वॉयज हैं। प्रतिनिधित्व की बात आती है तो भले ही गल्र्स को किनारे कर दिया जाता है लेकिन वोटिंग का सारा दारोमदार अब गल्र्स वोटर्स पर टिका हुआ है।

महज 4 girls candidates

बीसीबी में ब्वॉयज के मुकाबले 1,553 गल्र्स स्टूडेंट्स की संख्या ज्यादा है। लेकिन स्टूडेंट्स यूनियन इलेक्शन में इनको रिप्रेजेंट करने वाली गल्र्स कैंडीडेट्स की संख्या 1 परसेंट भी नहीं है। प्रेसीडेंट, वाइस प्रेसीडेंट पर एक भी गल्र्स कैंडीडेट्स नहीं है। वहीं जनरल सेक्रेट्री पर सिर्फ 1 और पुस्तकालय मंत्री पद पर 5 कैंडिडेट में से 3 गल्र्स कैंडिडेट हैं। कुल मिलाकर चार गल्र्स इलेक्शन में हैं।

लास्ट ईयर ज्यादा नॉमिनेशन

लास्ट ईयर के इलेक्शन की बात करें तो बीसीबी में 11 कैंडीडेट्स ने नॉमिनेशन कराया था। जिसमें से एक का पर्चा खारिज हो गया था और एक ने नाम वापस ले लिया था। ऐसे में टोटल 9 कैंडीडेट्स इलेक्शन के मैदान में थीं। वाइस प्रेसीडेंट, जनरल सेक्रेट्री, साइंस और बीसीए के लिए 1-1 और पुस्तकालय मंत्री के लिए 5 कैंडीडेट्स मैदान में थीं।

Voting परसेंटेज भी कम

गल्र्स कैंडीडेट्स को बढ़ावा देने का एक रीजन यह भी है कि गल्र्स स्टूडेंट्स वोटिंग में कम इंट्रेस्ट लेती हैं। लास्ट ईयर के इलेक्शन में टोटल 37.88 वोटिंग परसेंटेज रहा था। जिसमें गल्र्स का वोटिंग परसेंटेज महज 27.74 परसेंटेज ही रहा। जबकि लास्ट ईयर की गल्र्स स्टूडेंट्स      ज्यादा थीं। लास्ट ईयर के इलेक्शन में ब्वॉयज वोटर्स 7,313 और गल्र्स वोटर्स 9,108 थीं।

अराजकता मेन रीजन

पॉलीटिक्स में गल्र्स को बढ़ावा न देना एक रीजन तो है ही साथ ही कैंपस में अराजकता का माहौल भी एक मेन रीजन माना जाता है। न केवल कैंपस पॉलीटिक्स बल्कि रेग्युलर दिनों में भी गल्र्स को काफी प्रॉब्लम्स का सामना करना पड़ता है। ताजा मामला ट्यूजडे को हुए नॉमिनेशन का ही है, जब शालिनी अरोड़ा को किस तरह से सछास के विरोध और अभद्रता का सामना करना पड़ा। कैंपस में गल्र्स कली अधिकांश प्रॉब्लम्स तो रिपोर्ट ही नहीं होती। गल्र्स खुद ही बवाल से बचती हैं। पर्स से रुपए चोरी हो जाना, मोबाइल चोरी हो जाना और ईव टीजिंग तो आम बात हो गई है। यही नहीं कैंपस में महिला शिक्षकों के साथ भी आए दिन अभद्र व्यवहार की घटनाएं होती रहती हैं। डॉ। वंदना शर्मा का प्रकरण सटीक एग्जाम्पल है।

घर में भी असहमति

गल्र्स का कैंपस की पॉलीटिक्स में तो जबरदस्त विरोध रहता ही है, घर में भी इनके इलेक्शन में शामिल होने पर असहमति रहती है। यही वजह है कि गल्र्स के पेरेंट्स भी को-एड कॉलेज की पॉलीटिक्स में बेटियों को उतारने के फेवर में नहीं होते और सिक्योरिटी को लेकर अनसिक्योर महसूस करते हैं।

Daring तो बनना ही होगा

गल्र्स कैंडीडेट्स का भी मानना है कि उन्हें मौका नहीं दिया जाता है। साथ ही माहौल अराजकता से भरा होने की वजह से गल्र्स इधर आने में सेफ महसूस नहीं करतीं। लेकिन उनका यह भी मानना है कि माहौल बदलना है तो डेयरिंग दिखाना ही होगा। मौका मिलने की वेट न करते हुए खुद ही इस तरफ स्टेप उठाना होगा और गलर्स का इस पुरुष प्रधान समाज में दमदार रिप्रेजेंट करना होगा। जितना पीछे हटेंगे उतना ही दबाया जाएगा।

'प्रेजेंट टाइम में पॉलीटिक्स का स्तर काफी हद तक गिर चुका है। इसलिए गल्र्स इस तरफ आने में हिम्मत नहीं जुटा पातीं। उनमें जागरूकता की कमी है। पीछे हटने से काम नहीं चलेगा। खुद ही आगे आना होगा और दूसरे गल्र्स के लिए सेफ और हेल्दी माहौल क्रिएट करना होगा। हम जितना पीछे हटेंगे हमें और दबाया जाएगा.'

-ज्योति मेहरा, कैंडीडेट, पुस्तकालय मंत्री

'गल्र्स यह सोचकर अपना कदम पीछे कर लेती हैं कि मैं पॉलीटिक्स के इस अराजक माहौल में एडजस्ट नहीं कर पाउंगी। लेकिन डेयरिंग तो दिखाना ही होगा। उन्हें एनक्रेज करने की जरूरत है। प्रतिनिधित्व करने की क्षमता का विकास करना ही होगा। इसलिए मैने यह स्टेप उठाया है कि बाकी गल्र्स भी पहल करें और सभी पदों के लिए लड़ें.'

-प्रेरणा मौर्य, कैंडीडेट, पुस्तकालय मंत्री