एशियाड, ओलम्पिक का लक्ष्य

सिटी में कई ऐसे ताइक्वांडो फाइटर्स हैं जिन्होंने स्टेट और नेशनल के कई ऑफिशियल इवेंट में प्रतिद्वंद्वियों को धूल चटाकर दर्जनों तमगे हासिल किए हैं। कम संसाधनों के बावजूद अपने हुनर के बल पर इंटरनेशनल इवेंट के लिए क्वालीफाई कर चुके हैं। सीमित फैसिलिटीज और किट भी इनके हौसलों को डिगा नहीं सके। आंखों में बस एक ही लक्ष्य तैर रहा है कि एक बार एशियाड और ओलंपिक में देश की तरफ से एक पंच मारने का अवसर मिल जाए, जिससे वह दिखा सकें कि छोटे शहरों के इन फाइटर्स के पंच कितने दमदार हैं।

नहीं है कोई सुविधा

सिटी के इन टैलेंटेड फाइटर्स को वो पहचान न मिलने का मेन रीजन काफी कम संसाधनों का होना है। फिर भी वे अवेलेबल रिसोर्सेज में जी जान से प्रैक्टिस कर रहे हैं। यहां के किसी भी स्टेडियम में ताइक्वांडो की प्रैक्टिस की सुविधा नहीं है और न ही कोई कोच। ये फाइटर्स मैट की बजाय घास पर प्रैक्टिस करने को मजबूर हैं। इक्विपमेंट्स की कमी के साथ-साथ किट की कमी भी बहुत खलती है।

न experts, न physician

सीमित संसाधनों में प्रैक्टिस करने से अक्सर ये चोटिल हो जाते हैं। इनको गाइड करने के लिए न तो टेक्निकल एक्सपट्र्स हैं और न ही फिजिशियन, जो इनकी टेक्निक्स को सुधार सकें। कैंप करने का अवसर मिलता है तभी कुछ समय के लिए इनको प्रॉपर ट्रेनिंग मिल पाती है लेकिन वह ट्रेनिंग इंटरनेशनल कॉम्पिटीशन में फाइट करने के लिए नाकाफी होती है। गवर्नमेंट की कोई क्लीयर खेल नीति न होने की वजह इन्हें आर्थिक मदद भी नहीं मिलती।

इन प्लेयर्स को जो भी कोचिंग और फैसिलिटीज प्रोवाइड की जाती हैं वह एसोसिएशन की तरफ से ही है। गवर्नमेंट तो इवेंट ऑर्गनाइज करने तक के लिए कोई फंड नहीं देती। बाकी सुविधाएं तो दूर की बात है। हमारे प्लेयर्स जब नेशनल इवेंट में मेडल हासिल करते हैं तभी खेल निदेशालय की तरफ से एकमुश्त कैश प्राइज दे दिया जाता है। लेकिन इन्हें जरूरत है ऐसी फैसिलिटीज की, जिसे रेग्युलर कोचिंग मिल सके।

- हरीश पाल, सेक्रेट्री

बरेली ताइक्वांडो एसोसिएशन