करोड़ों की होती है वसूली
झारखंड के विभिन्न नक्सली संगठन लेवी के पैसे से खुद को लगातार मजबूत बना रहे हैं। हर साल करोड़ों रुपए झारखंड से लेवी के रूप में नक्सलियों के पास पहुंच रहे हैं। नक्सली इन पैसों से कैडरों को वेतन देते हैं और सरकार के खिलाफ लड़ाई के लिए हथियार और गोला-बारूद खरीदते हैं। झारखंड के स्पेशल ब्रांच में पोस्टेड अधिकारी भी इस बात को मानते हैं कि इतने बड़े संगठन को चलाने के लिए काफी पैसे चाहिए, जो लेवी के रूप में वसूले जाते हैं।

कौन-कौन वसूलते हैं levy?
झारखंड के सबसे बड़े नक्सली संगठन भाकपा माओवादी, पीएलएफआई, झारखंड लिब्रेशन टाइगर्स, टीपीसी और झारखंड संघर्ष मोर्चा जैसे करीब दर्जन भर नक्सलियों के स्पिलंटर ग्रुप झारखंड से करोड़ों की लेवी वसूल रहे हैं। लेवी का ये पैसा विकास कार्यों में लगे ठेकेदारों, बिल्डरों और बड़ी कंपनियों के अधिकारियों को डरा धमका कर वसूला जा रहा है। जो कंपनियां लेवी देने से मना करती हैं, उन्हें नक्सलियों का दंश झेलना पड़ता है। लेवी नहीं देने पर कंपनियों के कर्मियों की हत्या कर दी जाती है और उनका काम रोक दिया जाता है। मशीनों को आग के हवाले कर दिया जाता है।

एक से बढ़कर हुए एक दर्जन
झारखंड में दस साल पहले तक केवल एक नक्सली संगठन भाकपा माओवादी हुआ करता था। लेकिन अब झारखंड में दर्जनों नक्सली संगठन सामने आ चुके हैं। इन्हें नक्सलियों के स्पिलंटर ग्रुप की संज्ञा दी गई है। ये स्पिलंटर ग्रुप रांची के आसपास के डिस्ट्रिक्टस में आतंक मचाए हुए हैं। रांची के खलारी, मांडर, लातेहार, गढ़वा, पलामू, लोहरदगा आदि में इन नक्सलियों की तूती बोलती है। छोटे संगठनों में 20 से 25 लोग शामिल रहते हैं। इसमें कई क्रिमिनल्स भी रहते हैं, जो खुद को मजबूत बनाने के लिए संगठन में शामिल हो गए हैं। ग्रामीण इलाकों में ये बाइक लूट से लेकर सुपारी लेकर हत्याकांड तक को अंजाम दे रहे हैं। इनका सबसे बड़ा निशाना कोयला कंपनियां रहती हैं। जहां से ये लोग लेवी नहीं मिलने पर कोयले की ढुलाई तक बंद करा देते हैं।

Levy को लेकर आपस में जंग
झारखंड के नक्सली संगठनों में लेवी वसूलने को लेकर आपस में ही जंग शुरू हो गई है। स्टेट के पलामू, लातेहार, चतरा,गढ़वा, गुमला और रांची में लेवी को लेकर नक्सली संगठनों के बीच आपस में ही जंग जारी है। कहीं छिटपुट, तो कहीं पर वृहद् पैमाने पर जंग हो रही है। इस जंग में नक्सलियों के बड़े-बड़े नेता मारे जा रहे हैं। नक्सली नेताओं का कहना है कि अब हमारा संघर्ष सीधे गवर्नमेंट के साथ है। इस चुनौती को जो नक्सली कैडर स्वीकार नहीं कर सके, वे संगठन से अलग होकर लेवी वसूलने के धंधे में लग गए हैं।