RANCHI : झारखंड के बहुचर्चित फर्जी नक्सली सरेंडर मामले में पुलिस ने फाइल क्लोज नहीं की है, बल्कि उस कांड का अनुसंधान तकनीकी कारणों से बंद कर दिया गया है। इस मामले की मॉनिटरिंग हाईकोर्ट खुद कर रही है। इस बाबत लोअर बाजार थाना प्रभारी सुमन कुमार सिन्हा ने बताया कि सीआरपीसी की धारा 173 के क्लॉज-8 के तहत पुलिस को अधिकार है कि वह किसी भी मामले में अनुसंधान बंद कर सक सकती है। पर बाद में उसे लगता है कि उस मामले में कोई क्लू मिल रहा है तो पुन: उसे खोल सकती है।

यह है पूरा मामला

गौरतलब हो कि दिग्दर्शन इंस्टीट्यूट के जरिए साल 2014 में 514 छात्रों को नक्सली बताकर फर्जी तरीके से सरेंडर कराया गया था। इस प्रकरण की जांच सीआईडी और पुलिस के वरीय अधिकारियों से की गई थी। जांच में बड़े अधिकारियों ने भी पाया था कि इनमें से सिर्फ 10 युवकों का ही नक्सली गतिविधियों से संबंध होने की बात सामने आई थी।

चार माह की बच्ची का पैरेंट बना प्रशासन

रांची जिला प्रशासन इन दिनों चार माह की श्वेता (काल्पनिक नाम) के पैरेंट की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहा है, जबकि बच्चे की देखभाल बाल कल्याण समिति कर रही है। गौरतलब है कि पिछले साल 28 सितंबर को धुर्वा के सेक्टर टू के पास स्थित हर्बल ब्यूटी पार्लर के पास एक विक्षिप्त उसे जन्म देकर कहीं चली गई। इसके बाद से बच्ची की देखभाल जिला प्रशासन की ओर से की जा रही है।

60 दिनों की मोहलत

डीसी ऑफिस की ओर से इश्तेहार जारी किया गया है कि उक्त बच्ची से संबंधित माता-पिता 60 दिनों के अंदर दस्तावेज के साथ संपर्क कर जिला बाल संरक्षर्ण कार्यालय से संपर्क करें। यदि 60 दिनों के अंदर उसके गार्जियन नहीं आते हैं तो उसे कानूनी रूप से मुक्त कर दत्तक ग्रहण प्रक्रिया से जोड़ दिया जाएगा।