RANCHI: झारखंड में बनी क्षेत्रिय फिल्मों में काम करने वाले कलाकारों का लगातार शोषण हो रहा है। शनिवार को नागपुरिया भाषा में बनी फिल्म मोर गांव मोर देश के आर्टिस्ट और अन्य सहयोगियों को मिले चेक बाउंस होने का खुलासा हुआ है। इतना ही नहीं, जब आर्टिस्ट बाउंस चेक की जानकारी देते हुए कैश भुगतान के लिए प्रोड्यूसर को फोन कर रहे हैं, तो उन्हें गाली-गलौज सुनने को मिल रहा है। राजधानी में बनने वाली फिल्मों के खिलाफ पेमेंट नहीं करने की शिकायतें जोर पकड़ती जा रही हैं।

क्या कहा विक्टिम ने

मैं धमर्ेंद्र कुमार ठाकुर, मैंने नवम्बर में नागपुरी फिल्म मोर गांव मोर देश में काम किया। इस फिल्म के डायरेक्टर और प्रोड्यूसर अश्विनी कुमार हैं। फिल्म 13 जुलाई को रिलीज होने वाली है। मेरा काफी पेमेंट बकाया है, इसलिए जब मैंने रुपए के लिए प्रेशर बनाया तो 1 लाख का चेक मुझे दिया गया। एक 54000 का और एक 46000 का। लेकिन, ये चेक बाउंस हो गए। मैंने इसके बदले कई बार कैश भुगतान की बात कही, लेकिन अभी तक पेमेंट नहीं किया गया है।

फिल्म सब्सिडी की लाइन में

विक्टिम धर्मेन्द्र का कहना है कि इस फिल्म की शूटिंग के लिए फिल्म एडवाइजरी कमिटी की अनुमति मिली थी। फिल्म रीलिज होने के बाद इसकी स्क्रीनिंग की जाएगी और यह फिल्म सब्सिडी की लाइन में लगी है। सब्सिडी के लिए आवेदन करने और अनुमति प्राप्त होने के बावजूद भी ऐसी फिल्मों के निर्माता-निर्देशक का आर्टिस्ट को रुपया नहीं देना, फिल्म पॉलिसी के लिए बड़ी चुनौती है।

कई प्रोड्यूसर के खिलाफ कंप्लेन, नहीं दे रहे पेमेंट

प्रोड्यूशरों के खिलाफ लगातार शिकायतें मिल रही हैं। इसकी छानबीन में खुलासे हो रहे हैं कि प्रोड्यूसरों की माली हालत ऐसी नहीं रहती कि वे लोग पूरी फिल्म का निर्माण कर रीलिज की तैयारी कर सकें। उनका सीधा टारगेट रहता है कि फिल्म को किसी तरह पूरा करके सब्सिडी का पैसा वसूल लें।

वर्जन

काम कराने के बाद पेमेंट के लिए लगातार दौड़ाया जा रहा है। चेक दिया गया जो बाउंस हो गए। पैसा मांगने पर कहा जाता है कि एसोसिएशन के सदस्य हैं, कुछ नहीं कर पाओगे। राज्य में आर्टिस्ट्स से काम कराकर पेमेंट नहीं करने का चलन बन गया है। इन प्रोड्यूसर के पास यदि पेमेंट के लिए रुपए नहीं हैं, तो इन्हें फिल्म बनाने की अनुमति क्यों दी जाती है।

-धर्मेन्द्र कुमार, विक्टिम