वन विभाग के अफसर बाघ के शावकों की मौत को सामान्य बात बता रहे हैं, वहीं केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण को इस घटना की जानकारी ही नहीं है. मामला बिलासपुर के कानन पेंडारी चिड़ियाघर से जुड़ा हुआ है.

पिछले महीने की 13 अक्टूबर को कानन पेंडारी में चेरी नाम की बाघिन ने चार शावकों को जन्म दिया था. लेकिन चिड़ियाघर में उनके स्वास्थ्य की जरूरी देख-रेख नहीं होने से एक-एक कर के सभी शावक बीमार होते चले गए.

आखिरकार 19 नवंबर को दो शावकों ने दम तोड़ दिया. अगले दिन एक अन्य शावक की मौत हो गई. अब चौथा शावक की गंभीर हालत में ज़िंदगी और मौत से चिड़ियाघर में जूझ रहा है. आखिर इन शावकों की मौत कैसे हुई, इसका ठीक-ठीक जवाब अभी तक नहीं मिल पाया है.

बिलासपुर के ज़िला वन अधिकारी हेमंत पांडेय बार-बार संपर्क करने के बाद भी बात करने से बचते रहे. राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्यप्राणी रामप्रकाश का दावा है कि इन शावकों को बचाने के लिए डॉक्टर ने हरसंभव कोशिश की.

वायरल इंफेक्शन

छत्तीसगढ़: क्यों मर रहे हैं बाघ?

रामप्रकाश कहते हैं, "जिन शावकों की मौत हुई थी, वे पेनल्यूकोपिनिया से ग्रस्त थे. इस बीमारी में मांसपेशियां काम करना बंद कर देती हैं. इसी कारण इनकी मौत हुई. इस तरह के मामलों में बाघ शावकों की मौत सामान्य बात है."

वहीं इन शावकों का इलाज कर रहे कानन पेंडारी चिड़ियाघर के चिकित्सक डॉक्टर पी के चंदन स्वीकारते हैं कि इन शावकों को टीका नहीं लगाया गया था. उनका कहना है कि संभवतः वायरल इंफेक्शन के कारण शावकों की मौत हुई है.

यहां वन्य प्राणियों के इलाज के लिए दक्ष विशेषज्ञों की मदद ली जाती रही है. बरेली का इंडियन वेटेनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट इसके लिए खास तौर पर पशु चिकित्सकों को प्रशिक्षण देता है. लेकिन छत्तीसगढ़ में कानन पेंडारी चिड़ियाघर समेत 11 अभयारण्य और तीन राष्ट्रीय उद्यान में गाय-भैंसों का इलाज करने वाले पशु चिकित्सक ही वन प्राणियों का भी इलाज करते हैं.

केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण, दिल्ली के डॉक्टर बृजकिशोर गुप्ता छत्तीसगढ़ में तीन शावकों की मौत से अनभिज्ञता जताते हुए कहते हैं, "अगर शावक बीमार थे तो समय पर छत्तीसगढ़ सरकार को सूचना देनी थी. ऐसा होने पर हम यहां से विशेषज्ञ चिकित्सकों को भेज सकते थे और शावकों को बचाया जा सकता था."

शिकार

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गैर सरकारी संगठन 'नैचर क्लब' के सुबीर राय का आरोप है कि कानन पेंडारी में न तो अनुभवी डॉक्टर हैं और ना ही ज़रुरी दवाएं. छत्तीसगढ़ में वन विभाग का महकमा बाघों को लेकर बेहद लापरवाह है.

वे कहते हैं, "बाघों का शिकार होता रहा है और बाघों को पीट-पीट कर मार डालने की घटनाएं भी होती रही हैं लेकिन वन विभाग दोषियों को सजा देने के बजाये नई-नई कहानियां गढ़ते रहता है. 24 सितंबर 2011 को मुख्यमंत्री रमन सिंह के इलाके में एक बाघिन को सैकड़ों लोगों की भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था."

वो कहते हैं, "यह सब कुछ तब हुआ जबकि उस बाघिन की सुरक्षा में पूरा वन विभाग लगा हुआ था. मामले की जांच में अफसरों को दोषी पाया गया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसी तरह पंडरिया में मरे हुए बाघ को वन विभाग लकड़बग्घे की लाश बताता रहा. वन्यप्राणी विशेषज्ञों के हस्तक्षेप करने पर सरकार ने बाघ की मौत की बात स्वीकार की."

कंज़र्वेशन कोर सोसायटी की मीतू गुप्ता कहती हैं, "वन्यजीवों के शिकार के मामले लगातार सामने आते रहते हैं लेकिन वन विभाग में अफसरों का एक बड़ा तबका कार्रवाई करने के बजाय इन मामलों को छुपाने में जुटा रहता है. जब तक दोषियों पर कार्रवाई नहीं होगी तब तक जानवर मरते रहेंगे."

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