जिसका खौफ कैंडीडेट्स के सिर चढ़कर बोलता है। इलेक्शन चाहे लोक सभा हो या विधान सभा का लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धाराओं का प्रयोग सबसे ज्यादा हो रहा है।

मंत्री-विधायक के खिलाफ दर्ज एफआईआर
यूपी एसेंबली इलेक्शन 2012 में अब तक हजारों एफआईआर दर्ज हो चुकी है। इसमें कुछ मंत्री शामिल हैं तो कई विधायक भी। लेकिन पुलिस के पास सिर्फ एफआईआर दर्ज करने का पावर है न कि किसी को अरेस्ट करने का। अरेस्ट करने के लिए कोर्ट का आदेश जरूरी है। तीन दिन पहले हजरतगंज कोतवाली में संसदीय कार्य मंत्री लालजी वर्मा और बीएसपी सांसद जुगल किशोर  के खिलाफ चुनाव आचार संहिता का मामला दर्ज किया गया।
वहीं अलीगंज में नगर विकास मंत्री नकुल दुबे के खिलाफ भी केस रजिस्टर हो चुका है। लेकिन किसी के खिलाफ फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं होने जा रही है. 

अबतक तीन हजार से ज्यादा एफआईआर
यूपी में इलेक्शन की डेट डिक्लेयर होते ही मॉडल कोड आफ कंडक्ट लागू हो गयी। इसके बाद से अब तक तीन हजार से ज्यादा लोगों के खिलाफ पीपुल रिप्रेजेंटेटिवएक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की जा चुकी है और आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में पांच लाख से अधिक मामलों पर कार्रवाई की जा चुकी है। जिसमें पोस्टर हटाना, बैनर हटाना और वाल पेंटिंग मिटाना शामिल है।

प्रेशर बनाने के लिए होती है एफआईआर
ज्यादातर चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में धारा 144 के तहत कार्रवाई की जाती है। यानी माहौल बिगाडऩे की कोशिश। इसमें कम ही लोग होंगे जिनको इस धारा का उल्लंघन करने के आरोप में सजा मिली हो। लेकिन यह भी सच है कि आचार संहिता के उल्लंघन के सबसे ज्यादा मामले इसी धारा के तहत दर्ज होते हैं। ऐसे में यह कहना गलत नही है कि चुनावों में होने वाली एफआईआर सिर्फ प्रेशर बनाने के लिए होती है।

खतावार हैं सजायाफ्ता नहीं
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत आचार संहिता के उल्लंघन के गुनहगार तो बड़े बड़े हैं, लेकिन सजायाफ्ता शायद ढूंढने से भी कोई न मिले। प्रदेश में चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के हजारों मामले हर चुनाव में दर्ज होते हैं। लेकिन मामला कोर्ट में जाने के बाद किसी के खिलाफ कार्रवाई की खबर यदा-कदा ही बाहर आ पाती है।
मामला वरुण गांधी के विवादास्पद भाषण का हो या फिर 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से जनता को लुभाने के लिए साडिय़ां बांटने का। कोर्ट में पहुंचने के बाद किसी भी केस की रफ्तार सुस्त पड़ जाती है। वहीं इस चुनाव में अब तक सिर्फ राजधानी लखनऊ में लालजी वर्मा, नकुल दूबे, प्रवीण तोगडिय़ा, श्याम किशोर, रीता बहुगुणा जोशी समेत कई बड़े नेताओं के खिलाफ, हजरतगंज, नाका, अलीगंज और गौतमपल्ली थाने में केस दर्ज हो चुके हैं।

क्या है आचार संहिता का उल्लंघन
-वोटर को पैसे दे कर अपने फेवर में वोट करने के लिए प्रेरित करना
-लिमिट से ज्यादा चुनाव में पैसे खर्च करना।
-धारा 144 का उल्लंघन करना
-चुनाव प्रभावित करने के दो पक्षों में दुश्मनी फैलाना
-चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद भी चुनाव प्रचार करना
-पर्चों की छपाई का यूज करना
-शराब बांटना
-असलहों का प्रदर्शन करना

क्या है प्रोसीजर
आचार संहिता के मामलों में पुलिस खुद पार्टी बनकर आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर सकती है। एफआईआर दर्ज होने के बाद इसकी सूचना निर्वाचन अधिकारी को दी जाती है। जो मामले को न्यायालय को भेज देता है। लेकिन कम ही मामलों में कोई कार्रवाई हो पाती है।
पिछले पांच साल की बात करें तो विधान सभा इलेक्शन 2009 के लोक सभा इलेक्शन की और इस इलेक्शन में हुई अब तक की कार्रवाई में शायद ही किसी नेता को कोर्ट ने आचार संहिता का दोषी माना हो।

ऐसा नहीं है कि आचार संहिता का उल्लंघन का मामला सिर्फ प्रेशर बनाने के लिए होता है। किसी भी एफआईआर की पूरी इंवेस्टीगेशन की जाती है, जिसके खिलाफ एफआईआर होती है वह  रिकार्ड में हमेशा के लिए दर्ज हो जाता है। पूरे मामले की इंवेस्टीगेशन की जाती है। उसके बाद फरदर प्रोसेसिंग के लिए केस कोर्ट में पहुंचता है। मामला कोर्ट में जाने के बाद समय लगता है। ऐसे में जब रिजल्ट आता है तो चुनाव खत्म हुए कई महीने हो चुके होते हैं। ज्यादातर मामले हल्के-फुल्के में ही निपट जाते हैं। बूथ कैपचरिंग और पीठासीन अधिकारियों के साथ अभद्र व्यवहार करने वालों के खिलाफ सीधे कार्रवाई करने का अधिकार निर्वाचन अधिकारी और आब्जर्वर को होता है।
-उमेश सिंहा, मुख्य निर्वाचन अधिकारी