- कैग की रिपोर्ट में हुआ खुलासा

- उजागर हुई वन विभाग की लापरवाही

- कई वन प्रभागों ने फायर सीजन के बाद खरीदे आग बुझाने के उपकरण

DEHRADUN: सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने वाली कहावत वन महकमे पर पूरी तरह से फिट बैठती है। यह विभाग वनों में लगी आग बुझाने के उपकरण या तो आग लगने के बाद खरीदता है या फिर आग बुझ जाने के बाद। विभाग के इस कारनामे का खुलासा हुआ है कैग की रिपोर्ट में।

जांच में मिली लेट-लतीफी

नियम है कि जंगलों की आग बुझाने के उपकरण फायर सीजन शुरू होने, यानी क्भ् फरवरी से पहले ही खरीदे जाने चाहिए। लेकिन, ख्0क्म् में चार प्रभागों की जांच करने पर तीन में उपकरण या तो आग लगने के बाद खरीदे गए या फिर आग बुझ जाने के बाद। ख्0क्म् में वनों में आग लगने की घटनाएं ख्0 अप्रैल के बाद तेज हुई थीं और फ् मई को राज्यभर में हुई बारिश के बाद आग बुझ गई थी। कैग की रिपोर्ट कहती है कि बागेश्वर में भ् मई को उपकरण खरीदे गये, जबकि रुद्रप्रयाग में ख्फ् अप्रैल से ख्7 जून तक और उत्तरकाशी में ख्7 अप्रैल से फ् मई के दौरान उपकरण खरीदे गए। उत्तरकाशी वन प्रभाग में तो अप्रैल में खरीदे गये उपकरण अगस्त तक भी संबंधित रेंजों को वितरित नहीं किये गए थे। रिपोर्ट के अनुसार उत्तरकाशी वन प्रभाग में जनवरी ख्0क्फ् में फ्ख् फायर किट खरीदीं गई थीं, जिन्हें सात महीने बाद रेंजों में भेजा गया। इस दौरान आग लगने की ख्म् घटनाएं हुईं जिनमें ब्ख्.फ्भ् हेक्टेयर वन सम्पदा खाक हो गई थी।

ढाई साल बाद भी अमल नहीं

कैग ने अपनी रिपोर्ट में वन विभाग की एक और कारगुजारी का खुलासा किया है। रिपोर्ट कहती है कि राज्य सरकार ने वन विभाग को जनवरी ख्0क्ब् में आदेश दिये थे कि वन अनुसंधान संस्थान देहरादून द्वारा तैयार किये गये हल्के वजन वाले सर्चलाइट, हेडलाइट, अग्निरोधक जैकेट, ड्रेस, औजार आदि उपकरण खरीदें जाएं। ढाई वर्ष बाद सैम्पल जांच में बागेश्वर में ये उपकरण भ्9 प्रतिशत, अल्मोड़ा में 8क् प्रतिशत, रुद्रप्रयाग में ब्फ् प्रतिशत और उत्तरकाशी में फ्क् प्रतिशत कम मिले। अल्मोड़ा वन प्रभाग में तो पानी की बोतलें, टार्च-सर्चलाइट, फायर किट, बैग, जूते, हेलमेट और अग्निरोधक ड्रेस जैसा जरूरी और प्राथमिक सामान भी उपलब्ध नहीं था।

वाहनों की भारी कमी

रिपोर्ट में यह भी साफ किया गया कि आग के लिए बेहद संवेदनशील बागेश्वर, अल्मोड़ा, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी प्रभागों में फायर सीजन में वाहनों की भी भारी कमी रहती है। बागेश्वर में फायर सीजन में ख्9 वाहनों की जरूरत होती है, लेकिन वहां एक भी वाहन नहीं है। अल्मोड़ा में क्7 वाहन चाहिए, जबकि केवल भ् उपलब्ध हैं। रुद्रप्रयाग में क्8 वाहनों की जरूरत के बावजूद क् वाहन उपलब्ध था जबकि उत्तरकाशी में 9 वाहनों की जरूरत है और वहां म् वाहन उपलब्ध थे।

घटनाएं दर्ज करने में भी लीपा-पोती

वर्ष ख्0क्म् में जब फॉरेस्ट फायर की घटनाएं चरम पर थीं, तब मास्टर कंट्रोल रूप में रखे रजिस्टर में इन घटनाओं को दर्ज करने में भी लापरवाही की गई। इस दौरान रुद्रप्रयाग प्रभाग में 7फ् घटनाएं हुई, लेकिन रजिस्टर में मात्र ख् घटनाएं ही दर्ज की गईं। हालांकि इन घटनाओं की सूचना हल्द्वानी स्थित मुख्य वन संरक्षक को भेज दी गई थी। अल्मोड़ा और बागेश्वर प्रभाग तो इससे भी आगे निकल गये, यहां आग लगने की घटनाओं को आने वाली तिथि में दर्ज किया जा रहा था। कुछ घटनाएं तीन-चार दिन बाद दर्ज की जा रही थीं। उत्तरकाशी में भी इस दौरान आग की 7क् घटनाएं रजिस्टर में दर्ज नहीं की गई।