नुकसान का लेखा-जोखा जुटाने पहुंची लेखपालों की टीम

आग के हवाले हो गए 11 लाख रुपए नकद, रिपोर्ट के आधार पर बंटेगा मुआवजा

संगम किनारे सड़क पटरी पर फूल-माला, प्रसाद की दुकानें लगाने वालों को देखकर आपके मन में उनकी चाहे जो इमेज क्रिएट हो लेकिन सरकारी अमला जब इससे रूबरू हुआ तो चौंक गया। आग बुझने के बाद लेखपालों की टीम नुकसान का आकलन करने के लिए पहुंची तो पता चला कि इन 44 घरों में 11 लाख रुपए कैश मौजूद थे जो जलकर राख हो गए। गहनो के अलावा हर झोपड़ी में पंखा, फ्रिज, टीवी, गैस चूल्हा आदि सब कुछ था। कुछ के पास अपनी बाइकें भी थीं। फाइनली नुकसान का जो आकलन किया गया है वह करोड़ के आंकड़े को पार कर रहा है। अफसरों के निर्देश पर तैयार रिपोर्ट मुआवजे के लिए जल्द ही प्रशासनिक अधिकारियों को सौंप दी जाएगी।

हर कोई था लखपति?

संगम क्षेत्र में स्थित इस बस्ती को मलिन बस्ती (चमनगंज) के नाम से जाना जाता है। मलिन बस्ती में गरीब नहीं बल्कि लखपति कारोबारी रहते थे। रिपोर्ट के अनुसार कुल 44 घर स्वाहा हुए हैं। इसमें एक करोड़ रुपए से ज्यादा सम्पत्ति को नुकसान पहुंचा है। हलका लेखपाल अनूप कुमार श्रीवास्तव के नेतृत्व में रामसेवक, बृजलाल, सुशील श्रीवास्तव, कमर आलम, घनश्याम मिश्र ने सर्वे करके यह रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट के अनुसार रमेश निषाद की लाखों की संपत्ति जली, इसमें 40 हजार रुपया नकद था। इसके अलावा हरिशंकर के 40 हजार, आशा के 20 हजार, निर्मला के 60 हजार, जानू निषाद के 30 हजार, सूर्यनारायण के 30 हजार, बर्फीलाल के 40 हजार, पप्पू वर्मा के 50 हजार, जूलपत्ती के 30 हजार, सत्यापन के 50 विजय वर्मा के 30 हजार, अशोक निषाद के दो लाख समेत 26 लोग ऐसे हैं जिनकी झुग्गी में हजारों रुपया नकद व लाखों रुपये कीमत का जेवर रखा था। पीडि़तों ने जले हुए सामान का एक-एक ब्योरा दिया है।

पटरी पर दुकान लगाना है पेशा

मौके पर मिले साक्ष्यों के अनुसार इस बस्ती के ज्यादातर लोग पटरी दुकानदार हैं। संगम एरिया में वे दुकान लगाकर माला-फूल, पूजा सामग्री, कपड़ा आदि बेचते हैं। इनकी झुग्गियों में लाखों रुपये का सामान डंप था। शुक्रवार को आधी रात के बाद आग लगी तो किसी को इतना भी मौका नहीं मिला कि वह झोपड़ी के भीतर रखा सामान निकाल सके। हवा ने आग को विकराल बना दिया तो यहां रहने वाले लोगों की आंखों के सामने ही उनका सबकुछ जलकर राख हो गया। घटना के समय इनके पास छाती पीटने के आलावा कोई चारा नहीं था। अपने हिसाब से कीमती सामानों को उन्होंने प्रवेश द्वार से दूर रखा था और जब तक उनकी नींद खुली और वे बाहर निकले जान बचाने के अलावा कुछ सोचने को नहीं था। तीन घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू पा लिया गया। आग तो दमकल ने बुझा दी लेकिन इन घरों का चूल्हा कैसे जलेगा? यह सोचकर यहां रहने वाले लोगों का कलेजा फट रहा था् महिलाएं बिलख रही थी। बच्चों की आंखों में आंसू था। इन्हें समझाने और दिलासा देने की कोशिश करने वाले खुद चौंक जा रहे थे।

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दाने-दाने को मोहताज हुए

प्रशासन ने पीडि़तों में बंटवायी राहत सामग्री

आग बुझने के बाद बस्ती के लोगों के पास तन पर मौजूद कपड़ों को छोड़ दिया जाय तो कुछ भी शेष नहीं बचा था। ये अब दाने-दाने को मोहताज हो चुके थे। महिलाओं से लेकर बच्चों तक की आंखों में आंसू थे जो थमने का नाम नहीं ले रहे थे। पुरुष भी यह सोचकर मायूस थे कि जिंदगी की गाड़ी अब कैसे पटरी पर लौटेगी।

तहसीलदार के साथ पहुंची राहत

सुबह ही दौरा करने के बाद डीएम और कमिश्नर ने तहसील की टीम को पीडि़तों के बीच राहत सामग्री बंटवाने के लिए एलर्ट कर दिया था। तहसीलदार सुशील चौबे व हलका लेखपाल अनूप कुमार श्रीवास्तव टीम के साथ खाने-पीने का सामान के अलावा राशन लेकर पहुंचे। सूची बनाकर लोगों को सामान वितरित किया गया। खाद्य सामग्री पकी हुई नहीं थी। बड़ी समस्या ये थी कि आखिर खाना बनेगा कैसे? अधिकारियों ने इसका भी हल निकाला। पंडाल लगवाकर साझा चूल्हा जला। इसके बाद पीडि़तों के घरों की महिलाओं व लड़कियों ने बेमन से खाना बनाना शुरू किया। दोपहर तीन बजे के बाद भोजन बना तो बच्चों ने खाना खाया। इसके पहले एक संस्था के लोगों ने पूड़ी-सब्जी आदि वितरित किया था, जिसे पाकर बच्चे खुश थे। आग बुझाने के चक्कर में सुनीता निषाद, कोमल, जानकी के अलावा गुड्डू, कल्लू, रोहित आदि झुलस गए थे। इन लोगों के प्राथमिक उपचार की व्यवस्था भी की गई।

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बिटिया के हाथ कैसे पीले होंगे?

भीषण आग में खाक हो गया दहेज का सामान

आग बुझाने के चक्कर में खुद के हाल जला बैठे बस्ती के रहने वाले हरिशंकर और उनके परिवार की पीड़ा बिल्कुल अलग थी। पूछने पर फफक पड़े। बताया बिटिया की शादी तय हो चुकी है। जुलाई में उसके हाथ पीले करने का मुहूर्त निकला था। थोड़ा-थोड़ा करके बिटिया की बिदाई के लिए सामान जुटाया था। आफत बनकर आई आग सब कुछ जला गई। बिटिया के हाथ अब कैसे पीलें होंगे?

बोझ कम करने की जगह बढ़ गया

हरिश्चन्द्र के मुताबिक वर अच्छा मिला तो उन्होंने बेटी कोमल की शादी तय कर दी थी। उनके साथ बेटा भी कमाता है। एक की कमाई से घर चल रहा था और दूसरी की कमाई से बेटी को देने के लिए सामान जुटाया जा रहा था। दहेज का सामान सहेज कर झोपड़ी में रखा गया था। कोशिश थी कि जून तक यह काम पूरा कर लिया जाय ताकि बेटी की डोली हंसी-खुशी के माहौल में विदा हो जाय। उन्हें क्या पता था कि किस्मत क्या खेल खेलने वाली है। हरिश्चन्द्र की पीड़ा यह थी तो इसी बस्ती में रहने वाले कल्लू की पीड़ा कुछ और थी। सुनीता के बेटे कल्लू की शादी बीते अप्रैल माह में हुई थी। शादी में दहेज में काफी कुछ मिला था। दहेज का पूरा सामान झोपड़ी के भीतर ही रखा हुआ था। इसमें से एक भी सामान अब शेष नहीं बचा है।

कैसे रचेगी माया के हाथों पर मेंहदी

बस्ती की सूरजकली की उम्र करीब 62 साल है। वह अपने दो बेटे अशोक व छोटू के साथ रहती हैं। पांच में से तीन बेटियों की शादी कर चुकी हैं। आरती व माया का ब्याह करना है। आग की चपेट में आने से इनका भी सबकुछ खाक हो चुका है। आंसू पोंछते हुए हुए सूरजकली ने बताया कि वह इसी बस्ती में पैदा हुई हैं। आग में उनका सबकुछ जल गया है। कोई मदद नहीं करेगा, वह जानती हैं। अब तो उनकी मदद महराज ही करेंगे। पूछने पर कहने लगीं महराज के विनाशलीला का पता चल गवा हय। ऊ उज्जैन से आवय वाले हय। वही हमका सबका संभालिहें।

खाक हो गई गृहस्ती

बच्चीलाल

विजमा देवी

मनोज

दिलीप

सकुन

राजेश निषाद

दशरथ

कल्लू निषाद

सूरजकली

रमेश निषाद

हरिशंकर

रमेश

चंद्रन

विनोद निषाद

आशा

निर्मला देवी

जमुना निषाद

संतोष निषाद

जानू निषाद

सुषमा

कृष्णा देवी

अशोक

सूर्यनारायण

बर्फीलाल

पप्पू वर्मा

जूलपत्ती

सत्यवान

विजय वर्मा

राजकुमार वर्मा

अशोक निषाद

शिव प्रसाद

बिट्टी देवी

सुरेश चंद्र सोनकर

शिवचरन निषाद

अंबिका प्रसाद

मुन्नी देवी

सविता देवी

ननकी देवी

मंगलदास

सुनीता देवी

प्रेमलाल

खन्ना

रानी देवी

शार्ट सर्किट से आग लगने के कारण यह हादसा हुआ है। इस अग्निकांड में जलकर कुल 41 झोपडि़यां नष्ट हो गयी है। दमकल कर्मियों को आग पर काबू करने में काफी मशक्कत करना पड़ा।

-लाल जी गुप्ता

सीओ फायर डिपार्टमेंट