उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार राज्य में हर वर्ग के साथ बातचीत के माध्यम से 'असहमति' को 'सहमति' में बदलने की कोशिश करेगी. अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा हासिल है.

पहली बार सांसद बने 57 वर्षीय जितेंद्र सिंह ने स्पष्ट किया कि भारतीय जनता पार्टी अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने के पक्ष में थी, लेकिन इसके साथ ही पार्टी चाहती थी कि लोगों को इस बारे में सहमत किया जाए और इस समस्या के समाधान के लिए लोकतांत्रिक नज़रिया अपनाया जाए.

उन्होंने कहा कि प्रदेश भाजपा विभिन्न पक्षों से बात कर रही थी. उन्होंने कहा, ''हमने घाटी में बैठकें बुलाईं और इनमें से कुछ लोगों को अनुच्छेद 370 को समाप्त किए जाने को लेकर समझाने में हम सफल रहे.''

हालांकि अपने बयान पर विवाद बढ़ता देख कुछ घंटे बाद ही जितेंद्र सिंह ने इस पर सफाई भी दे दी.

उन्होंने एक बयान जारी कर कहा, ''मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि अनुच्छेद 370 के बारे में मेरे बयान को तोड़ मरोड़ कर मीडिया में पेश किया गया. मैंने माननीय प्रधानमंत्री के हवाले से कुछ भी नहीं कहा. यह सारा विवाद निराधार है.''

'अनुच्छेद 370 एक मात्र संवैधानिक कड़ी'

जितेंद्र सिंह के बयान के तुरंत बाद तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने ट्वीट कर कहा, ''तो सरकार के राज्यमंत्री कहते हैं कि अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने की प्रक्रिया/बातचीत शुरू हो चुकी है. बहुत बढ़िया, यह एक जल्दबाज़ी भरी शुरुआत है, लेकिन यह तय नहीं है कि कौन बात कर रहा है.''

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"मेरे शब्दों को ध्यान रखिए और इस ट्वीट को सुरक्षित रखिए- यदि धारा 370 हटा तो जम्मू-कश्मीर भारत का अंग नहीं रहेगा."

-उमर अब्दुल्लाह, मुख्यमंत्री, जम्मू-कश्मीर

अब्दुल्लाह ने ट्वीट में कहा, ''मेरे शब्दों को ध्यान रखिए और इस ट्वीट को सुरक्षित रखिए- जब मोदी सरकार महज याद बनकर रह जाएगी तब या तो जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं होगा या फिर अनुच्छेद 370 बरकरार रहेगी.''

उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कहा, ''अनुच्छेद 370 ही वो संवैधानिक कड़ी है जो जम्मू-कश्मीर को भारत से जोड़े है. इसे ख़त्म करने की बात करना न केवल जानकारी के अभाव का मामला है बल्कि गैर ज़िम्मेदराना भी है.''

जितेंद्र सिंह ने कहा कि पिछले साल दिसंबर में अपनी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनुच्छेद 370 की खूबियों और खामियों का विश्लेषण करने के लिए पूरे राज्य में बहस और सेमिनार आयोजित किए जाने का सुझाव दिया था.

वैसे जितेंद्र सिंह के मोदी सरकार में राज्य मंत्री बनने पर राजनीतिक हलकों में कई जगह हैरानी भी जताई जा रही है.

'मोदी ने कहा था....'

जितेंद्र सिंह ने कहा था, ''उनकी और सरकार की मंशा है कि बहस आयोजित करते हैं तो अनुच्छेद 370 की दिक्कतों के बारे में हम 'असहमत' लोगों को समझा सकते हैं.''

राज्यमंत्री के रूप में पर्सनल एंड ट्रेनिंग विभाग का कार्यभार ग्रहण करने के बाद उन्होंने कहा, ''यदि हम बहस और बातचीत नहीं करते हैं तो आप कैसे उन लोगों को बताएंगे जो यह समझने में असमर्थ रहे हैं कि अनुच्छेद 370 के नाम पर वे किस चीज से महरूम रहे.''

इसी विभाग के अंतर्गत सीबीआई का प्रशासनिक नियंत्रण आता है.

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मंत्री ने कहा, ''हम बहुत ही पेशेवराना ढंग से काम कर रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही कृपया यह भी बात ध्यान रखना चाहिए कि हम बहुत ही लोकतांत्रिक ढंग से काम कर रहे हैं. हम नहीं चाहते कि किसी पर अपने विचार थोपें और चीजें अपने स्वाभाविक तरीके घटित होंगी.''

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 वास्तविकता के मुकाबले मानसिक बाधा ज़्यादा है.

"पिछले साल दिसम्बर में अपनी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धारा 370 की खूबियों और खामियों का विश्लेषण करने के लए पूरे राज्य में बहस और सेमिनार आयोजित किए जाने का सुझाव दिया था."

-जितेंद्र सिंह, मोदी सरकार में राज्य मंत्री

उन्होंने कहा, ''प्रधानमंत्री ने कहा था कि हम चाहते हैं कि इस मुद्दे पर बहस हो. इसका यह मतलब नहीं कि हम बहस चाहते हैं क्योंकि मीडिया के एक वर्ग ने इस तरह पेश किया कि प्रधानमंत्री अपने नज़रिए से भटक गए थे. ऐसा नहीं है.''

मंत्री ने मोदी की एक चुनावी रैली का संदर्भ देते हुए कहा, ''उन्होंने ऐसा लोकतांत्रिक व्यवस्था के उच्च मूल्यों के तहत कहा था.''

अनुच्छेद पर विवाद

पेशे से चिकित्सक रहे जितेंद्र सिंह ने सुझाव दिया कि राज्य के लोग भी इस अनुच्छेद को ख़त्म करने के समर्थक थे.

उन्होंने कहा, ''यदि आप मतदाताओं की संख्या को लें तो मतदान में हमारी 50 प्रतिशत हिस्सेदारी है.''

उन्होंने पूछा, ''क्या मीडिया इसे समझा सकती है कि राज्य में 50 प्रतिशत लोग अनुच्छेद 370 को खत्म करना चाहते हैं?''

भाजपा राज्य की छह लोकसभा सीटों में से तीन पर विजयी रही.

जितेंद्र सिंह ने कहा कि राज्य के सभी संबंधित पक्ष से बातचीत होगी क्योंकि सभी महत्वपूर्ण हैं.

उन्होंने याद दिलाया कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का भी मानना था कि यह अनुच्छेद अस्थायी है.

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