1- भारत की पहली महिला बैरिस्टर कोर्नेलिया सोराबजी देश की पहली महिला हैं जिन्होंने बॉंबे यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट किया और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के समरविले कॉलेज से लॉ की पढ़ाई करनेवाली पहली भारतीय महिला भी थीं। कोर्नेलिया देश की पहली महिला हैं जिन्होंने देश में महिलाओं के लिए एक प्रोफेशन के रूप में कानून का दरवाजा खोला।

भारत की पहली महिला बैरिस्‍टर थी ब्रिटिश विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली पहली भारतीय

2- नासिक के पारसी परिवार में जन्मी कार्नेलिया का जन्म 1866 में 15 नवंबर को हुआ था। समाज सुधारक के रूप में सोराबजी ने महिलाओं के लिए कई दरवाजे खोले साथ ही महिलाओं और नाबालिगों के अधिकारों के लिए समाज में नए सुधार करवाए। सोशल रिफॉर्म कार्नेलिया के खून में था उनकी मां फ्रांसिना फोर्ड महिला शिक्षा की पक्षधर थीं उन्होंने पुणे में लड़कियों के लिए कई स्कूल भी खोले।

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3- कॉर्नेलिया कुल छह भाई बहन थे उनमें वो अकेली बहन थीं। लंदन में लॉ की प्रैक्टिस करनेवाली पहली बैरिस्टर भी हैं। कॉर्नेलिया छह भाइयों में इकलौती बहन थीं। सन् 1892 में वे लॉ की पढ़ाई के लिए विदेश गईं। उस जमाने में महिलाओं को लेकर बहुत सारी पाबंदियां थीं। भारतीय महिला वकील को कोर्ट में प्रैक्टिस की अनुमति नहीं थी। ऐसे में उन्हें इसके लिए काफ़ी संघर्ष करना पड़ा।

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4- लंबे संघर्ष के बाद 1904 में बंगाल कोर्ट में लेडी असिस्टेंट के रूप में जुड़ीं। 1907 में उन्हें असम, बिहार, उड़ीसा के कोर्ट में सहायक महिला एडवोकेट के पोस्ट पर काम करने को मिला। साल 1924 में उन्होंने कोलकाता व ब्रिटेन में भी प्रैक्टिस शुरू की। उन्होंने लंबी क़ानूनी लड़ाई लड़ते हुए अंततः महिलाओं को वकालत से रोकनेवाले क़ानून को कमजोर कर उनके लिए लॉ की प्रैक्टिस करने के रास्ते बनाएं।

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5- उन्होंने देश की क़रीब छह सौ महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने में सहायता की। अंत में 1929 में हाई कोर्ट के सीनियर एडवोकेट के रूप में रिटायरमेंट लिया। उन्होंने लॉ के अलावा सोशल वर्क व कई लेख, शॉर्ट स्टोरीज, बुक्स आदि भी लिखीं, जिनमें से उनकी ऑटोबायोग्राफी ‘इंडिया कॉलिंग’ सुर्ख़ियों में रही। देश में ही नहीं इंग्लैंड में भी कॉर्नेलिया सोराबजी को सम्मान के साथ याद किया जाता है।

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