120 सीबीएसई स्कूल राजधानी में

80 प्रतिशत में एनसीईआरटी की किताबें नहीं

500 करोड़ तक है स्कूली किताबों का कारोबार

- हर स्कूल को प्रकाशकों की ओर से दिया जा रहा 30 से 40 प्रतिशत का कमीशन

- स्कूल प्रकाशकों को दो सौ करोड़ रुपए का कमीशन हर साल

- वहीं प्रकाश और बुक डिपो मिलकर तीन सौ करोड़ का कमीशन का खेल करते है

LUCKNOW :

सीबीएसई स्कूल एनसीईआरटी की किताब की जगह निजी प्रकाशकों की किताबें ही क्यों चलाते हैं। इसकी वजह है मिलने वाला तगड़ा कमीशन। प्रकाशकों से लेकर बुक सेलर तक सभी से स्कूलों को जनवरी से कमीशन के ऑफर मिलने लगते हैं। कौन सा स्कूल किस प्रकाशक की किताब चलाएगा यह यह मिलने वाले कमीशन से तय होता है। कमीशन के इस खेल में 50 रुपए की किताब 400 रुपए तक में बेची जा रही है। यही वजह है कि जिले में स्कूली किताबों का कारोबार 450 से 500 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है।

40 प्रतिशत कमीशन स्कूलों को

राजधानी में 120 के करीब सीबीएसई स्कूल हैं। इनमें 80 प्रतिशत में एनसीईआरटी की किताबें नहीं चल रही हैं। इनके स्थान पर सीबीएसई के सिलेबस पर आधारित किताबें चल रही हैं। कारण यह है कि बुक डिपो स्कूलों को इसके लिए 40 प्रतिशत तक कमीशन देते हैं। इससे इन स्कूलों को तकरीबन 200 करोड़ तक का कमीशन मिलता है.वहीं प्रकाश और बुक डिपो मिलकर तीन सौ करोड़ का कमीशन का खेल करते हैं।

कुछ इस तरह होता है खेल

इतना ही कमीशन प्रकाशकों और बुक डिपो के मालिकों में बंटता है। वहीं राजधानी में पहली से दसवीं तक पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के पैरेंट्स को लगभग 500 करोड़ रुपए सिर्फ किताबों पर खर्च करने पड़ते हैं। क्लास सात की एनसीईआरटी की किताबों का जो कोर्स 420 रुपए में मिल रहा है। वही मिशनरी स्कूलों के बच्चों को तय बुक स्टॉल से खरीदने में 4500 रुपए तक का पड़ रहा है। एक प्राइवेट स्कूल के क्लास थर्ड की किताबों का सेट 4070 रुपए, क्लास आठ का 5020 रुपए और हाईस्कूल का 4099 रुपए में पड़ रहा है।

पहले से तय हो जाता है कमीशन

सीबीएसई स्कूलों में नए सेशन की शुरुआत अपै्रल में होती है, लेकिन निजी प्रकाशकों के डीलर जनवरी-फरवरी में ही स्कूलों से कमीशन का रेट फिक्स कर लेते हैं। इसके साथ ही कई बार तो स्कूल प्रबंधकों को विदेश घुमाने तक का ऑफर दिया जाता है। निजी प्रकाशक बुक सेलर्स को भी अपनी किताबें बेचने के एवज में 20 प्रतिशत तक कमीशन देते हैं। जबकि बुक सेलर स्कूलों को 2.50 से 3 लाख रुपए सिर्फ इसलिए देते हैं ताकि स्कूल पैरेंट्स को उनकी चुनिंदा दुकानों में किताब खरीदने के लिए भेजे।

सारा खेल सेटिंग का

इस पूरे खेल के बारे में कुछ बुक सेलर्स का कहना है कि कुछ चुनिंदा बुक सेलर्स की मोनोपोली के कारण यह हो रहा है। उनकी सेटिंग के कारण ही सस्ती और एनसीईआरटी की किताबें सीजन में नहीं बिक पाती हैं।

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100 रुपए की किताब ऐसे होती है 400 की

- एक निजी प्रकाशक की 7वीं की साइंस की किताब 469 रुपए की है

- 140 रुपए यानी 30 प्रतिशत कमीशन स्कूलों को जाता है

- 94 रुपए यानी 20 प्रतिशत कमीशन बुक सेलर को किताब बेचने का मिलता है

- 70 रुपए यानी 15 प्रतिशत निजी प्रकाशक मार्केटिंग में खर्च करते हैं

- 65 प्रतिशत कमीशन, मार्केटिंग में खर्च करने के बाद 165 रुपए बचते हैं

- यदि एक किताब पर प्रकाशक ने 65 रुपए कमाए तो किताब की कीमत 100 रुपए ही आ रही है।

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बात एनसीईआरटी की

- 50 रुपए ही है एनसीईआरटी की 7वीं की साइंस की किताब

- 30 प्रतिशत ही बिक पाती हैं क्लास एक 1 से 8 तक की किताबें

- एनसीईआरटी स्टूडेंट्स की संख्या के हिसाब से किताबों की छपाई और वितरण नहीं हो पाता

- निजी प्रकाशक और स्कूल एनसीईआरटी की किताबों को मार्केट में टिकने नहीं देते

1 से 8 तक सर्वाधिक मुनाफा

क्लास 1 से 8 तक के कोर्स में जीके, मोरल साइंस, कंप्यूटर, ग्रामर जैसे विषयों की 215 रुपए से 300 रुपए तक की किताबों से बुक सेलर और स्कूल सबसे ज्यादा मुनाफा कमाते हैं। यही वजह है कि इन क्लासों में एनसीईआरटी की किताबों की सेल करीब 30 प्रतिशत ही है, वहीं 9वीं और 12वीं में यही सेल 60 प्रतिशत तक है।

कोट

सभी सीबीएसई स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें लागू करने का नियम है। लेकिन शासन स्तर पर ही ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जिससे स्कूलों में प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें चल रही हैं।

- पीके श्रीवास्तव, अभिभावक कल्याण संघ

सीबीएसई स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों के लिए कैरिकुलम जारी किया गया है। सभी किताबें ओपन मार्केट में उपलब्ध हों, इसके निर्देश दिए गए हैं। अगर कहीं से शिकायत मिलती है तो कार्रवाई होगी।

- डॉ। मुकेश कुमार सिंह, डीआईओएस