1. पर्सनल इनकम टैक्स हो जाए खत्म
केंद्र सरकार जब जीएसटी (गुड्स सर्विस टैक्स) बिल को लेकर बात करती है तो ऐसे में पर्सनल इनकम टैक्स को बनाए रखना काफी हद तक उचित नहीं है। आम आदमी चाहता है कि पर्सनल इनकम टैक्स खत्म कर दिया जाए। यह सुनने में थोड़ा अटपटा लग सकता है लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद पर्सनल इनकम टैक्स का कोई ऑचित्य नहीं बनता। यही नहीं बीजेपी नेता सुब्रहमण्यम स्वामी भी इसका खुलकर समर्थन करते रहे हैं। मौजूदा बचत दर के हिसाब से देखें तो अगर लोगों को टैक्स से राहत मिलेगी तो करीब 83 हजार करोड़ रुपये तो बैंक, एलआईसी, म्यूचुअल फंड, शेयर बाजार आदि के जरिए बचत खाते में ही पहुंच जाएंगे। बाकी बचा पैसा लोग इलेक्ट्रोनिक सामान, कपड़े आदि की खरीदारी या पर्यटन आदि पर खर्च करेंगे। इन सबसे जीडीपी की रफ्तार बढ़ेगी जो करीब एक फीसदी तक हो सकती है। जब लोग खर्च करेंगे तो सर्विस टैक्स, वैट आदि जैसे इनडायरेक्ट टैक्स की मद में करीब 30 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त आ सकते हैं।

2. टैक्स स्लैब में चाहिए बदलाव

सरकार की तरफ से जितनी बार बजट पेश किया जाता है, लोगों की निगाह टैक्स स्लैब पर जरूर रहती है। इसमें हर बार कोई न कोई बदलाव जरूर किया जाता है। अगर सरकार इनकम टैक्स को पूरी तरह खत्म नहीं कर सकती तो टैक्स रेट यानी जिस दर पर कर वसूला जाता है उसमें कुछ कमी हो। अभी 10 लाख से ऊपर की आमदनी पर 30 फीसदी की दर से इनकम टैक्स लगता है, जोकि बहुत ज्यादा है। वेतनभोगी यानी नौकरीपेशा व्यक्ति के लिए हमारा सुझाव है कि दरों में कुछ बदलाव हो।

3. पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी हो खत्म
कच्चे तेल के दाम भले ही काफी कम हो गए हों लेकिन देश में पेट्रोल-डीजल आज भी मंहगा ही बिक रहा है। हालांकि कभी-कभार एक या दो रुपये कम कर दिए जाते हैं लेकिन जिस हिसाब से कच्चा तेल सस्ता होता है उस अनुपात में पेट्रोल-डीजल के दामों में कमी नहीं आती। ऐसे में सरकार को चाहिए कि पेट्रोल और डीजल पर स्पेशल एक्साइज ड्यूटी यानी उत्पाद शुल्क को खत्म कर दिया जाए।  

4. 80C के तहत निवेश की सीमा खत्म हो

इस धारा के तहत मिलने वाली छूट फिलहाल 1.5 लाख रुपये है जो नौकरी पेशा लोगों को टैक्स बचाने में मदद करती है। चूंकि 1.5 लाख से ज्यादा छूट नहीं मिलती तो पैसे होने के बावजूद लोग बचत योजनाओं में नहीं लगाते। अगर निवेश की सीमा 1.5 लाख रुपये से हटाकर एक्चुअल यानी जितना निवेश किया है उतनी कर दी जाए तो लोग ज्यादा बचत करेंगे और पैसा सर्कुलेशन में आएगा जो कि सरकार की मदद करेगा।

5. स्टैंडर्ड डिडक्शन फिर से लागू हो

स्टैंडर्ड डिडक्शन का मतलब प्रोफेशनल और कॉरपोरेट्स के बीच टैक्स की दरों में समानता करना है। हालांकि साल 2006 में उस वक्त की सरकार ने स्टैंडर्ड डिडक्शन खत्म कर दिया था। ऐसे में सरकार चाहे तो नौकरीपेशा लोगों के लिए इसे फिर से शुरू कर सकती है। कॉरपोरेट और प्रोफेशनल अपने खर्च को इस डिडक्शन में क्लेम कर सकेंगे और इस नेट इनकम यानी कुल आमदनी पर टैक्स की गणना हो सकती है।

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