वैशाख शुक्ल की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है, जो इस बार 26 अप्रैल को रविवार केे दिन है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किया गया कोई भी धार्मिक कार्य अक्षय होता है, उनका फल कभी समाप्त नहीं होता। ज्योतिषाचार्य पं. राजीव शर्मा बता रहे हैं कि यह तिथि इस बार विशेष क्यों है और इस दिन का धार्मिक महत्व क्या है।

1. परशुराम जयंती: विष्णु अवतार की पूजा

इस दिन भगवान विष्णु के नर-नारायण और परशुराम जी का अवतरण भी हुआ था। इस दिन श्री परशुराम जयंती भी मनायी जाएगी। मंगलवार में रोहिणी नक्षत्र होने से बनने वाला मातंग योग कुल वृद्धि करने वाला श्रेष्ठ कहा जाता है। धर्म शास्त्र के अनुसार, इस दिन सांयकाल में सायं 06ः31 से रात्रि 08ः41 तक में श्री परशुराम जयंती का पूजन करना श्रेष्ठ रहेगा। सांय कालीन तृतीया में पूजन पूर्ण रूपेण उपयुक्त रहेगा क्योंकि इसी प्रदोष बेला में भृगुकुल शिरोमणि, ब्राह्मण कुल महागौरव, ब्रह्मऋषि भगवान परशुराम (विष्णु अवतार) का जन्म हुआ था। भगवान परशुराम की जन्म तिथि होने के कारण यह “विजय तिथि“ भी कही जाती है।

2. बद्रीनाथ की पूजा

इस दिन बद्रीकाश्रम में भगवान बद्रीनाथ के पट खुलते हैं। इस तिथि को श्री बद्रीनाथ की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है तथा लक्ष्मीनारायण के दर्शन किए जाते हैं। इस तिथि को गंगा स्नान के लिए अति पुण्यकारी माना जाता है।

3. देवी पार्वती की पूजा से मनोकामनाएं पूरी होंगी

इसी तृतीया को शिव प्रिया-अर्धांगिनी देवी पार्वती की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। मिट्टी के कलश या घड़े में जल, फल, पुष्प, गंध, तिल, अन्न के साथ दान करने का विधान भी है। इससे मनोकामनाओं की पूर्ति होना सम्भव है।

4. मात्र आज ही होते हैं बिहारी जी के चरणों के दर्शन

वृन्दावन में केवल आज के ही दिन बिहारी जी के चरणों के दर्शन होते हैं। इस बार महासिद्ध योग होने के कारण पूरा दिन शुभ रहेगा।

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5. ब्रह्मा जी के पुत्र का अविर्भाव

इसी तृतीया के दिन ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अविर्भाव भी हुआ था, इसलिए भी यह तिथि विशेष है। इस दिन रोहिणी व्रत एवं मातंगी जयन्ती भी है।

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