देवगुरु बृहस्पति
आज भी जब हम भक्ति कथाओं के बारे में पढ़ते हैं तो सबसे पहले याद करते हैं देवताओं के गुर बृहस्पति को जो त्रिदेव विष्णु, शंकर और ब्रह्मा में से एक हैं। महाभारत के आदि पर्व में बताया गया है कि बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र थे। देवगुरु बृहस्पति अपनी शिक्षा और नीतियों से ही नहीं रक्षोघ्र मंत्रों के प्रयोग से भी देवताओं का पालन और रक्षा करते रहे हैं। वही देव असुर संग्राम में देवताओं को प्रशिक्षित करते हैं।

दैत्यगुरु शुक्राचार्य
जिस तरह बृहस्पति देवों के गुरू हैं उसी तरह दैत्यों को गुरु शुक्राचार्य से ज्ञान प्राप्त होता है। वास्तव में शुक्र उशनस नाम वाले शुक्राचार्य हिरण्यकशिपु की पुत्री दिव्या के पुत्र थे। मान्यता है कि भगवान शिव ने इन्हें मृत संजीवनी विद्या का ज्ञान दिया था, जिसकी सहायता से वे यह मृत दैत्यों को पुन: जीवित कर देते थे। हालाकि गुरु शुक्राचार्य असुरों के गुरू थे परंतु कई बार इन्होंने देवों को भी विद्या दान किया है क्योंकि वही उनका कर्म और गुरुधर्म है। यहां तक कि देवगुरू बृहस्पति के पुत्र कच ने भी शुक्राचार्य से ही शिक्षा ग्रहण की थी।
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परशुराम
परशुराम की गिनती प्राचीन भारत के महान योद्धा और गुरुओं में होती है। कहते हैं कि आज भी वे महेंद्र गिरी पर्वत पर तपस्या लीन हैं और कल्कि पुराण के अनुसार परशुराम, भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरु होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे। वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिये कहेंगे। इसीलिए जन्म से ब्राह्मण किंतु स्वभाव से क्षत्रिय परशुराम अत्यंत प्रासंगिक हैं। कथा है कि उन्होंने अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए हैहय वंश के क्षत्रिय राजाओं का संहार कर दिया था। प्राचीन ग्रंथों की माने तो परशुराम को भगवान विष्णु का अंशावतार माना जाता है। गुरु परशुराम के पिता का नाम ऋषि जमदग्नि तथा मां रेणुका थीं। परशुराम के शिष्यों में भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महान विद्वानों और शूरवीरों का नाम शामिल है। परशुराम केरल के मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु की उत्तरी शैली वदक्कन कलरी के संस्थापक आचार्य एवं आदि गुरु माने जाते हैं।
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द्रोणाचार्य
आज भी गुरू द्रोणाचार्य के नाम से भारत सरकार एक पुरस्कार प्रदान करती है। यह पुरस्कार खिलाड़ियों और टीमों को प्रशिक्षण प्रदान करने में बेहतरीन कार्य करने वाले खेल प्रशिक्षकों को प्रदान किया जाता है। द्रोणाचार्य की गिनती महान धनुर्धरों में होती है। महाभारत काल में इन्होंने 100 कौरवों और पांच पांडवों को इन्होंने ही शिक्षा दी थी। गुरू द्रोण के पिता महर्षि भारद्वाज थे। उन्हें देवगुरु बृहस्पति का अंशावतार भी माना जाता है।
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गुरु सांदीपनि
जहां श्रीराम को विश्वामित्र से ज्ञान मिला वहीं भगवान श्रीकृष्ण के गुरू थे महर्षि सांदीपनि। सांदीपनि ने श्रीकृष्ण को 64 कलाओं की शिक्षा दी थी। मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में आज भी गुरु सांदीपनि का आश्रम मौजूद है।

 

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