- फुटबॉल ग्राउंड्स पर बिल्डिंग्स बनने से दूर होने लगी है प्रैक्टिस

- इसकी वजह से नहीं इकट्ठा हो पा रही है खिलाडि़यों की भीड़

GORAKHPUR: फुटबॉल का जादू तो गोरखपुराइट्स पर खूब सिर-चढ़कर बोलता है। एक वक्त था जब छोटे से मैच को देखने के लिए भी लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता था। हर मैच में दोनों ही टीम्स के कद्रदान भी थे और फैन भी, मगर ग्राउंड की मार से न सिर्फ इस गेम का दायरा सिमटा है, बल्कि जैसे-जैसे ग्राउंड दूर हुए जा रहे हैं, इसकी फैन फॉलोइंग भी सिर्फ टीवी सेट तक ही सिमट कर रह गई है। हालत यह है कि अब फुटबॉल मैचेज तो होते हैं, लेकिन इन्हें देखने वालों की जबरदस्त कमी रहती है। ऑर्गनाइजर, टीम्स और ऑफिशियल के अलावा एक्का-दुक्का लोग वहां पहुंच जाते हैं और खिलाडि़यों की हौसला अफजाई कर देते हैं।

सिर्फ सेंट एंड्रयूज और रीजनल ओपन

गोरखपुर में फुटबॉल ग्राउंड तो बहुत हैं, लेकिन बरोक-टोक प्रैक्टिस करने वाले ग्राउंड सिर्फ दो हैं, एक सेंट एंड्रयूज और एक रीजनल स्टेडियम। यहां भी खिलाडि़यों को अपना रजिस्ट्रेशन कराना ही पड़ेगा। इसके अलावा शहर में जो भी ग्राउंड मौजूद हैं, वहां सिर्फ चुनिंदा खिलाडि़यों की एंट्री है। जिसकी वजह से वहां आसपास टैलेंट होने के बाद भी उन्हें प्रैक्टिस के लिए जगह नहीं मिल पाती है। सेंट एंड्रयूज कॉलेज पर प्रिंसिपल डॉ। जेके लाल ने भी खिलाडि़यों को ग्राउंड दे रखा है, लेकिन यहां सिर्फ आसपास के लोग ही प्रैक्टिस और मैच देखने के लिए पहुंच पाते हैं। जबकि फुटबॉलर्स की असल और पुरानी पौध नंदानगर के आसपास रहा करती है, जहां से कई खिलाडि़यों ने नाम भी रोशन किया है।

यह हैं कुछ ग्राउंड

- रीजनल स्पो‌र्ट्स ग्राउंड

- सेंट एंड्रयूज कॉलेज

- एमपी इंटर कॉलेज

- एमजी इंटर कॉलेज

- किसान इंटर कॉलेज

कोट्स

ग्राउंड की कमी होने की वजह से खेल कम हो गए हैं, जिससे इसकी फैन फॉलोइंग भी काफी कम होती जा रही है। अब कोई बड़ा टूर्नामेंट होता है, तो उस टीम के चाहने वाले ग्राउंड पर नजर आ जाते हैं।

- मनु क्षेत्री, नेशनल फुटबॉल प्लेयर एंड कोच

पहले लोग टाइम पास के लिए शाम को ग्राउंड में पहुंचते थे और फुटबॉल मैचेज का लुत्फ लेते थे। मगर धीरे-धीरे ग्राउंड पर स्कूल और बिल्डिंग्स बन गई, जिसकी वजह से लोगों का इंटरेस्ट कम होने लग गया।

मोहम्मद नसीम, नेशनल फुटबॉलर एंड कोच

लोगों को फुटबॉल का शौक है, लेकिन वह टीवी सेट के सामने बैठकर अपना यह शौक पूरा करते हैं। पहले छोटे-छोटे मैच को देखने के लिए भी सैकड़ों की भीड़ हो जाती थी, अब बड़े टूर्नामेंट में भी पब्लिक की कमी खलती है।

- मो। हमजा खां, सेक्रेटरी प्लेयर्स एसोसिएशन