- गरीब और अनाथ बच्चों को रखने वाले अनाथालय में कभी 20 प्लेयर्स की थी टीम

- फुटबाल प्लेयर बनकर अनाथालय से पहुंचे हॉस्टल, नेशनल प्लेयर बनकर कमाया नाम और अब कर रहे जॉब

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BAREILLY :

कभी एक दौर ऐसा था कि एक साथ कई नेशनल प्लेयर शहर में मौजूद थे। वह भी अनाथालय में। बात दस वर्ष पहले की है, उस समय अनाथालय को फुटबाल प्लेयर्स का अड्डा कहा जाता था। इसी अनाथालय से निकलकर एक दर्जन से अधिक झारखंड क्षेत्र के आदिवासी हॉस्टल में पहुंचे। जिसके बाद उन्होंने नेशनल प्लेयर बनकर फुटबाल के दम पर जॉब भी पाई, लेकिन राजनीति का शिकार हुए अनाथालय में फुटबाल गेम को दस वर्ष पहले ही बंद कर दिया। जिससे अब अनाथालय में रहने वालों को भी गेम में आगे आने का मौका मिलना बंद हो गया।

अनाथ बच्चों को देते थ्ो ट्रेनिंग

झारखंड क्षेत्र के आदिवासी अपने बच्चों को गरीबी के कारण अनाथालय में छोड़ देते थे। जिससे वह वहां पर रहकर प्लेयर और पढ़ लिखकर अच्छे इंसान बन सके। इसके लिए शहर की फुटबाल एसोसिएशन और कुछ लोग फंडिंग कर अनाथालय के बच्चों को प्लेयर्स बनाने में भी मदद करते थे। फुटबाल एसोसिएशन ने अनाथालय से करीब 20 बच्चों को फुटबाल का प्लेयर्स बनाकर पूरी टीम खड़ी कर दी। डीएवी कॉलेज में पढ़ाई के साथ स्टेट अच्छा प्रदर्शन किया तो उन्हें सरकार ने हॉस्टल में रहने का मौका दिया। हॉस्टल में रहने और कठोर मेहनत के बाद 20 प्लेयर्स नेशनल में पहुंचे और मेडल भी पाए। जिसके बाद उनकी जॉब भी लगी, और आज सभी सरकारी जॉब कर रहे हैं।

कोई लोको पायलट तो कोई बना टीटी

फुटबाल एसोसिएशन के अध्यक्ष मून राबिन्सन ने बताते हैं कि अनाथालय के ही पुत्तू उरांव, सोमपाल उरांव, बंधानू उरांव, अर्जुन भगत, विनोद उरांव और गौरी शंकर के अन्य साथी भी वर्ष 2007 में अनाथालय की टीम में फुटबाल खेलते थे। प्लेयर्स ने मेहनत की और स्टेट स्तर पर चैम्पियनशिप तक पहुंचे, और बाद में नेशनल तक पहुंचे। उस समय शहर से रेलवे के स्पोर्ट सुपरवाइजर एल फ्रेंक थे। वह हॉकी में गोल्ड मेडलिस्ट थे। उन्होंने सभी प्लेयर्स के नाम रेलवे के लिए स्पो‌र्ट्स कोटे में जॉब के लिए भेजे। जिसमें से पुत्तू उरांव, सोमपाल उरांव का लोको पायलट, बंधानू उरांव को आईवीआरआई, अर्जुन भगत को टीटी, विनोद उरांव और गौरी शंकर को रेलवे में जॉब मिली।