लियोनेल मेसी भारत में हैं। शुक्रवार को कोलकाता में अर्जेंटीना की टीम वेनेज़ुएला से दोस्ताना मैच खेलने जा रही है। कोलकाता ही नहीं पूरे भारत में इस मैच को लेकर ख़ासा उत्साह है। इसके व्यावसायिक पक्ष से अलग चर्चा मेसी के स्टारडम की और इस स्टारडम के पीछे छिपे कुछ ऐसे सवाल, जिसका जवाब फ़ुटबॉल प्रेमी ज़रूर जानना चाहेगा।

मेसी सौभाग्यशाली हैं। वे ऐसे समय फ़ुटबॉल क्षितिज पर आए हैं, जब सूचना क्रांति ने विशाल दुनिया को छोटा और सीमित बना दिया है। फ़ेसबुक और ट्विटर के ज़माने में पसंद-नापसंद बाज़ार तय करने लगा है।

अनमोल खिलाड़ी

ब्रांड वैल्यू खिलाड़ी को अनमोल बना देती है और पलक झपकते ही हाथ भी खींच लेती है। इस दौर में मेसी एक ज़बरदस्त ब्रांड हैं और उनका किसी टीम का हिस्सा होना, किसी क्लब का हिस्सा होना और किसी मैच का हिस्सा होना इतना अहमियत रखता है कि कभी-कभी लगता है कि खिलाड़ी का खेल छिपने लगता है।

मिनी माराडोना, दुनिया का सर्वश्रेष्ठ फ़ॉरवर्ड प्लेयर, गेंद को अपने पैर से नचाने वाला खिलाड़ी और न जाने क्या-क्या। लेकिन इन सबके बीच आज भी खाटी फ़ुटबॉल प्रेमी मेसी से खरा-खरा सवाल पूछना चाहता है। आज मेसी का नाम अर्जेंटीना से ज़्यादा बार्सिलोना से क्यों जुड़ा लगता है।

इस विषय पर कई बार चर्चा हो चुकी है कि क्लब बड़ा या देश। लेकिन क्लब फ़ुटबॉल खेलते समय अपने देश को भी उपलब्धियों की ऊँचाई पर ले जाना एक चुनौती बन गई है।

पिछले साल के विश्व कप फ़ुटबॉल के दौरान कई स्टार युवा खिलाड़ी की चमक फींकी पड़ गई। वो चाहे क्रिस्टियानो रोनाल्डो हो, वेन रूनी हो या फिर मेसी।

बार्सिलोना से मेसी का रिकॉर्ड देखिए और अर्जेंटीना से। आप चौंक जाएँगे। वर्ष 2009-10 के सत्र में मेसी ने बार्सिलोना की ओर से 35 मैच खेले और 34 गोल किए। जबकि वर्ष 2010-11 के सत्र में उन्होंने 33 मैचों में 31 गोल किए।

सवाल

अब मेसी के अंतरराष्ट्रीय आँकड़ों पर नज़र डालिए। 2009 में अर्जेंटीना की ओर से 10 मैचों में तीन गोल, 2010 में 10 मैचों में दो गोल और 2011 में अभी तक आठ मैचों में दो गोल।

वर्ष 2010 के विश्व कप और इस साल के कोपा अमरीका कप में भी मेसी का प्रदर्शन बहुत ख़राब रहा। मेसी ने अभी तक 60 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं और सिर्फ़ 17 गोल मारे हैं।

मेसी के प्रशंसक कह सकते हैं कि सिर्फ़ गोल न करना उनकी प्रतिभा को कम नहीं करता। बात सही है। मेसी जैसा खिलाड़ी कई बार गोल के अवसर भी बनाता है। लेकिन इन आँकड़ों से इतर मेसी जब तक अपने रहते अपने देश को शानदार प्रदर्शन से रौशन नहीं करते, उनकी चमक फींकी ही रहेगी।

क्रिकेट में क्लब क्रिकेट का उतना रंग अभी नहीं जमा है और भारत के सचिन तेंदुलकर ने अपने देश के लिए न जाने कितनी मैच जिताऊ पारियाँ खेली हैं। उनके नाम असंख्य रिकॉर्ड हैं। लेकिन लोगों को याद होगा कि कैसे ये खिलाड़ी विश्व कप पर हाथ रखने के लिए तरस गया था।

इसलिए मेसी की बहती बयार के बीच एक सच ये भी है कि मेसी को अभी ब्राज़ील के रोनाल्डो, अपने आदर्श माराडोना, फ़्रांस के ज़िनेदिन ज़िदान और ब्राज़ील के पेले तक पहुँचने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़ेगे।

 

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