कैसे हुई मुलाकात

23 साल की तुमोको मुशीगा टोक्यो यूनिवर्सिटी की रिसर्च स्कॉलर हैं। उसने हिंदू मैथोलॉजी में श्राद्ध को बतौर सब्जेक्ट सेलेक्ट किया है। वर्ष 2010 में वह पहली बार पितृपक्ष के दौरान संगम किनारे आई थी। इस दौरान वह श्राद्ध करने वालों से बातचीत करने की कोशिश कर रही थी। लोगों की फोटो खींचते देख कर्मकांडी आचार्य राजेंद्र मिश्रा ने इसका कारण जानना चाहा। उसने बताया कि उसे अपनी रिसर्च के लिए श्राद्ध के बारे में जानकारी लेनी है. 

Surprising है ये श्राद्ध

इंडिया में भले ही श्राद्ध संस्कार में शामिल हो लेकिन फॉरनर्स के लिए काफी सरप्राइजिंग टास्क है। तुमोको कहती हैं कि जब उसने हिंदू मैथोलॉजी के बारे में पढ़ा तो श्राद्ध, पिंडदान, पितृपक्ष व गया जैसे शब्द उसे सरप्राइजिंग लगे। जब इन शब्दों के पीछे गई तो पता चला कि इंडिया में इनका बहुत महत्व है। लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति के लिए उन्हें जल अर्पण करते हैं। यह कार्य साल में पितृपक्ष में ही किया जाता है। उसे यह सब सरप्राइजिंग लगता है, क्योंकि उनके देश में ऐसी कोई मान्यता नहीं है। यही कारण है कि उन्होंने अपनी रिसर्च के के लिए इस सब्जेक्ट को चुना और वह हर साल पितृपक्ष के दौरान इसीलिए संगम पर आती है.

Help के लिए हमेशा तैयार

आचार्य राजेंद्र भी तुमोको की हेल्प के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। जापानी स्टूडेंट द्वारा उन्हें गुरु मान लिए जाने के बाद उन्होंने हिंदू मैथोलॉजी पर बेस्ड कई बुक्स उसे पढऩे को दी हैं। बीएचयू और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के कुछ प्रोफेसर्स ने तुमोको को थ्योरीकली श्राद्ध के बारे में जरूर बताया था लेकिन आचार्य की संगत में उसने प्रैक्टिकली लोगों को श्राद्ध करते हुए देखा तो दांतों तले उंगली दबा ली। इसके बाद वह बिहार के गया जिला भी गई। वहां पर उसने देखा कि लोग कैसे अपने पूर्वजों की आत्मा को विदा करते हैं. 

कुंभ मेले के बाद बाढ़ को भी देखा

अपनी रिसर्च के दौरान जब रिसर्च स्कॉलर ने कुंभ मेले की जानकारी मिली तो उसने देखने की इच्छा जाहिर की। बुलावे पर तुमोको ने 2013 की शुरुआत में लगे कुंभ मेले में कई दिन बिताए। वह कहती हैं कि इतने बड़ा मेला उसने लाइफ में पहली बार देखा। करोड़ों की भीड़ को मैनेज करने वाला एडमिनिस्ट्रेशन वाकई तारीफ के काबिल है। एक महीने पहले गंगा-यमुना में आई बाढ़ मेंं भी तुमोको इलाहाबाद में मौजूद रहीं। उसकी मानें तो इस साल के लास्ट में उसकी रिसर्च पूरी हो जाएगी लेकिन वह इसके बाद भी संगम नगरी आना नहीं छोड़ेगी। यहां के लोग और आबोहवा में उसे अपनापन फील होता है.