जहां साल 2009 में भारत में होने वाला प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश 36 अरब डॉलर था, वहीं 2010 में ये घट कर 25 अरब डॉलर हो गया, यानि प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश में 31 प्रतिशत की गिरावट आई है। दूसरी ओर भारतीय कंपनियों से विदेश में होने वाला निवेश जहां 2009 में 16 अरब डॉलर था, वहीं साल 2010 में ये आंकड़ा 15 अरब डॉलर रहा।

दिल्ली में एक प्रेस वार्ता में रिपोर्ट को लॉंच करते हुए नीति विश्लेषक डॉक्टर प्रेमिला नज़ारेथ सत्यानंद ने कहा कि भारत में पिछले दो सालों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में लगातार कमी देखी गई है, जो चिंता का विषय है। इसके लिए उन्होंने सरकार की नीतियों को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा कि सरकार का दावा है कि वो विदेशी निवेश को बढ़ावा देना चाहती है, लेकिन ज़मीनी स्थिति बिलकुल अलग है।

उनका कहना था, “भारतीय सरकार उन मसलों को संबोधित नहीं कर रही है, जो विदेशी निवेश के रास्ते का रोड़ा बन गए हैं। भूमि अधिग्रहण को ही ले लीजिए। हालांकि भूमि अधिग्रहण पर छिड़ा विवाद अब तक घरेलू सीमाओं तक ही सीमित है, लेकिन ऐसे फ़ैसलों का असर विदेशी निवेश पर ज़रूर पड़ता है। भारत में भूमि को लेकर चल रहे विवाद को देखते हुए लगता है कि जिन क्षेत्रों में भूमि की ज़रूरत पड़ती है, वहां निवेश करने से पहले निवेशक दो बार सोचेगा.” हालांकि उनका कहना था कि उद्योग जगत में विदेशी निवेश में बढ़त देखने को मिलेगी और मेडिकल क्षेत्र में भी विदेशी दिलचस्पी बढ़ती नज़र आ रही है।

भ्रष्टाचार का असर

भारत में विदेशी निवेश में आई कमी के लिए डॉक्टर प्रेमिला नज़ारेथ ने भ्रष्टाचार को भी ज़िम्मेदार ठहराया। उनका कहना था, “भ्रष्टाचार से विदेशी निवेश में एक अस्थिरता पैदा हो जाती है। जो कुछ भी भारत में हो रहा है, उसका विदेशी निवेशक की सोच पर एक नकारात्मक असर पड़ा है। जब तक सरकार पुख़्ता नियंत्रक कदम नहीं उठाती और विदेशी निवेशकों में विश्वास पैदा नहीं करती, तब तक निवेशकों के मन में अस्थिरता रहेगी। इसके अलावा सरकार को ऐसी नीति बनानी होंगी, जिससे भ्रष्टाचार पनपने की संभावना कम से कम रहे.”

ग़ौरतलब है कि गत मार्च में प्रबंध सलाहकार कंपनी केपीएमजी ने एक सर्वेक्षण में पाया था कि भारत में उद्योगपति मानते हैं कि भ्रष्टाचार देश की उन्नति के रास्ते में रुकावट पैदा कर रहा है। डॉक्टर प्रेमिला ने आंकड़ों में आई कमी के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्था में आई अनिश्चितता को भी ज़िम्मेदार ठहराया है। इन सभी नकारात्मक पहलुओं के बावजूद उनका कहना था कि भारत की तस्वीर वैश्विक स्तर पर उतनी ख़राब नहीं है, जितना आम तौर पर समझा जाता है।

चीन की लगातार उन्नति

उन्होंने बताया कि भारत आज भी विदेशी निवेश के लिए एक अच्छा देश माना जाता है। बीस साल पहले वैश्विक निवेश रिपोर्ट में भारत जैसी अर्थव्यवस्था की कोई जगह नहीं थी, लेकिन आज भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सूचि में 14वें स्थान पर है। हालांकि साल 2009 में भारत इस सूची में 8वें स्थान पर था।

जहां तक भारत से होने वाले विदेशी निवेश की बात है, तो उस सूची में भारत की रैंकिग 20वें स्थान पर आ गई है। भारत के पड़ोसी चीन की बात की जाए तो वहां के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में अच्छी बढ़त देखने को मिली है।

जहां भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में पिछले दो सालों में लगातार गिरावट देखने को मिली है, वहीं चीन में साल 2009 में गिरावट के बाद 2010 में फिर से तेज़ी देखने को मिली। इसके अलावा ये पहली बार है कि चीन ने विदेशी निवेश के मामले में जापान को पीछे छोड़ दिया है।

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