GORAKHPUR: जेल की सलाखों के पीछे भोजपुरी बोली का विकास हो रहा है। विकास इसलिए कि यहां भोजपुरी, विदेशी बंदियों के मुंह से सुनने को मिल रही है। यहां बंद इन विदेशियों ने भाषा की दीवार तोड़ दी है। आमतौर पर लैंग्वेज की प्रॉब्लम को लेकर परेशान रहने वाले ये लोग अन्य कैदियों की तरह ही सामान्य बातचीत कर रहे हैं। सोमवार को जेल परिसर में विदेशी बंदी के मुंह से भोजपुरी सुन जेल अफसर भी हैरान रह गए। जेल के राइटर ने एक ऑस्ट्रेलियाई नागरिक से पूछा कि हाऊ आर यू माई डियर विक्टर तो उसका जवाब था, सब अच्छा बा.सब अच्छा बा। एक विदेशी के मुंह से निकली भोजपुरी बोली की मिठास से मुलाकाती भी मुस्कुरा पड़े।

 

दिक्कत हुई तो सीख ली भाषा

आमतौर पर जेल में विदेशी बंदियों को लैंग्वेज की प्रॉब्लम से कई समस्याएं उठानी पड़ती हैं। वह ठीक से तालमेल नहीं बिठा पाते हैं। अपनी समस्याएं भी अन्य बंदियों को नहीं बता पाते हैं। जेल अधिकारियों और कर्मचारियों से बात करने में लैंग्वेज आड़े आती है। मंडलीय कारागार में गोरखपुर, देवरिया, महराजगंज, संतकबीर नगर, सिद्धार्थनगर सहित कई जिलों के बंदी हैं। इसलिए ज्यादातर भोजपुरी में ही बातचीत करते हैं। मंडलीय कारागार में एक महिला सहित चार विदेशी नागरिक निरुद्ध हैं। इनमें जर्मनी के मेनफ्रेंड ब्रेंड और ऑस्ट्रेलिया के विक्टर लॉरेंस भी शामिल हैं। शुरू में इन लोगों को भी लैंग्वेज की वजह से काफी दिक्कत होती थी। लेकिन अन्य बंदियों से बेहतर तालमेल के लिए इन विदेशी बंदियों ने भी भोजपुरी बोली सीखनी शुरू कर दी। धीरे-धीरे वह भोजपुरी बोली सीख गए। अब तो वे बकायदा भोजपुरी में पूछे सवालों के बराबर जवाब भी दे लेते हैं। साथ ही भोजपुरी सीखने के चलते अन्य कैदियों से बात कर इन लोगों का टाइम भी पास हो जाता है।

 

लॉरेंस की भोजपुरी का जवाब नहीं

जेल में ऑस्ट्रेलिया का नागरिक विक्टर लॉरेंस बंद है। दो साल पूर्व उसे महराजगंज जिले से गोरखपुर भेजा गया था। नेपाल बॉर्डर पर सुरक्षा एजेंसियों ने उसे मादक पदार्थ के साथ पकड़ा था। सोमवार दोपहर विक्टर लारेंस जेल के लॉन में टहल रहा था। वहां बंदियों पर निगरानी रख रहे राइटर शेषनाथ सिंह उर्फ ढाढ़ी चाचा ने बंदी को देखकर पूछा कि हाऊ आर यू माई डियर विक्टर लारेंस। उसने पलटकर तपाक से जवाब दिया कि सब अच्छा बा.सब अच्छा बा। उसकी बात सुनकर कैंपस में मौजूद मुलाकाती भी हंस पड़े। जेल कर्मचारियों ने बताया कि विदेशी बंदियों को हमेशा भाषा की समस्या उठानी पड़ती है। इसका उपाय खोजते हुए बंदियों ने खुद ही भोजपुरी बोली सीखना शुरू कर दिया।

 

विदेशी बंदियों को भाषा, बोली की बहुत समस्या होती थी इसलिए वे धीरे-धीरे भोजपुरी सीख गए हैं। इससे वह अपनी समस्याएं अन्य बंदियों को बता सकते हैं। बंदी रक्षक और राइटर भी उनसे बातचीत कर लेते हैं।

- आरके सिंह, जेलर